समुचित स्थान का चयन ही वास्तुशास्त्र है, समुचित समय का निर्धारण ही मुहूर्त शास्त्र है, और व्यवस्थित प्रयत्न करने की कला ही धर्मशास्त्र (हिन्दी में नीतिशास्त्र) है।
धर्मशास्त्र में आचरण के नियमों और निषेधों का उल्लेख होता है। कर्मकाण्ड की क्रियाओं का धर्मशास्त्र में कोई उल्लेख नहीं मिलता।
धर्मशास्त्र को ब्रह्माण्ड में खगोल-भुगोल के माध्यम से उचित स्थान और पञ्चाङ्ग की सहायता से उचित समय की जानकारी के लिए सिद्धान्त (गणित) ज्योतिष की सहायता लेना पड़ती है, इसलिए ज्योतिष को धर्मशास्त्र का नेत्र कहा जाता है।
जबकि, लोग कर्मकाण्ड को ही धर्म समझते हुए लिखते हैं कि, धर्म से बड़ा कर्म है।
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