पञ्च महायज्ञ के अन्तर्गत ब्रह्म यज्ञ के अन्तर्गत अष्टाङ्ग योग में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूपी पाँच धर्म (यम) के बाद पाँच नियम शोच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय के बाद ईश्वर प्रणिधान आता है।
अर्थात पूर्णतः धर्मपालक व्यक्ति में ही ईश्वर प्रणिधान (ईश्वरीय व्यवस्था के प्रति पूर्ण समर्पण) होता है।
अर्थात जो परम आत्म (परमात्मा) को ही वास्तविक मैं समझ ले वही व्यक्ति आत्म विश्वास रखता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें