वेदों के सभी मन्त्र मिलकर भी बहुत सीमित है। लेकिन वेदों में प्रत्येक विषय का सम्पूर्ण ज्ञान समाहित है।
हजारों ब्रह्मचारियों को जो नित्य पञ्च महायज्ञ और ब्रह्म यज्ञ के अन्तर्गत अष्टाङ्ग योग के पूर्ण अभ्यासी हो उन्हें चारों वेद, सभी ब्राह्मण ग्रन्थ, शिक्षा (फोनेटिक्स), व्याकरण, निरुक्त (भाषाशास्त्र), निघण्टु, छन्द शास्त्र, मीमांसा, ज्योतिष, कल्प सूत्र, श्रोत सूत्र, गृह्यसूत्र धर्म सूत्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, शिल्पवेद (स्थापत्य वेद), गन्धर्ववेद और अर्थशास्त्र, न्याय दर्शन , वैशेषिक दर्शन, योग दर्शन, सांख्य दर्शन, पूर्व मीमांसा दर्नश और उत्तर मीमांसा दर्शन, प्राचीन इतिहास-पुराण, बौद्ध, जैन और नास्तिक दर्शन के सब ग्रन्थ भली-भाँति पढ़ादो, समझा दो, सिखादो, फिर उसे वर्तमान प्रचलित गणित, ब्रह्माण्ड विज्ञान, रोबोटिक्स, भुगोल , खगोल, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, सभी प्रकार की तकनीकी शिक्षा, सभी प्रकार के चिकित्सा शास्त्र, गृह शास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शन शास्त्र, गृह शास्त्र समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, लेखाकर्म, मुद्रा और बेंकिंग आदि सभी विषयों में पारङ्गत कर दो, जो यह सभी समझ जाएगा वह विद्वान कहलाएगा। उसके बाद उन्हें वेदों का भाष्य करने को कहो, तो उनमें जो सभी विषयों के अनुसार प्रत्येक वेद मन्त्र का अलग-अलग अर्थ और व्याख्या कर देगा। वह भाष्यकार वेदव्यास कहलाता है।
फिर उसे वह भाष्य वर्तमान विद्वानों को सिखाने के लिए कहोगे तो जो व्यक्ति जिस विषय का ज्ञाता होगा उसे वही अर्थ और व्याख्या समझ आएगी। शेष अधिकांश या तो गलत लगेगी या थोड़ी बहुत ही ठीक लगेगी।
इस प्रकार सबकी राय अलग-अलग हो जाएगी।
पूर्वकाल में भी यही हुआ।देवताओं, मानवों और असुरों ने वेदों के अर्थ अपनी अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ही समझे थे।
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