सोमवार, 16 जून 2025

सनातन धर्म के मत पन्थ, सम्प्रदाय

भारत में दो परम्परा रही है।
1  निवृत्ति मार्ग - ये वेदों के प्रति आस्थावान होने से आस्तिक कहलाये। इसमें सनक, सनन्दन, सनत्कुमार, सनातन, नारद, भरत मुनि और शुकदेव आदि प्रसिद्ध हैं

परवर्ती काल में श्रमण परम्परा इसी से विकसित हुई। इसमें वेदों के प्रति आस्थावान सिद्ध गण कहलाते हैं। इसमें  कपिल देव और पतञ्जली मुख्य रहे।
इसी श्रमण परम्परा वेदों के प्रति नास्तिक तन्त्र मार्गी हुए इनमें मुख्य अर्धनारीश्वर महारुद्र एवम् उनके एकादश रुद्र, तथा इनके अनुयाई  शुक्राचार्य, शुक्राचार्य के पुत्र त्वष्टा और पौत्र विश्वरूप, अत्रि पुत्र दत्तात्रेय , दधीचि आदि हुए। 
इसी परम्परा में आगे चलकर वर्धमान महावीर के अनुयाई जैन कहलाई।

2 प्रवृत्ति मार्ग - ये वेदों के प्रति आस्थावान होने से आस्तिक कहलाये। यह वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करते थे।
इसमें भी दो शाखाएँ है - 
(क) ब्राह्मण - प्रजापति के पुत्र 1 दक्ष प्रजापति (प्रथम) इनकी पत्नी प्रसुति, 2 रुचि प्रजापति इनकी पत्नी आकुति और 3 कर्दम प्रजापति मुख्य थे। इनके अलावा 
(4)मरीची-सम्भूति, (5) भृगु-ख्याति, (6) अङ्गिरा-स्मृति, (7) वशिष्ट-ऊर्ज्जा, (8) अत्रि-अनसुया, (9) पुलह-क्षमा, (10) पुलस्य-प्रीति, (11) कृतु-सन्तति। मुख्य रहे हैं।
(ख)  क्षत्रिय - स्वायम्भुव मनु और उनके पुत्र उत्तानपादासन और प्रियव्रत, और पौत्र ध्रुव और उत्तम। तथा प्रियव्रत शाखा में आग्नीध्र ->  या अजनाभ या नाभी -> ऋषभदेव -> भरत चक्रवर्ती और बाहुबली। (बाद में बाहुबली  श्रमण परम्परा में दिक्षित हो गये।)
वृद्धावस्था आने पर ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती भी सन्यस्त हो गये थे। लेकिन ये श्रमण नहीं हुए।
उक्त सभी स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुए थे।
वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर के ब्राह्मणों और क्षत्रियों के लिए ये आदर्श हुए।

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