सोमवार, 16 जून 2025

क्वोरा लेखक श्री राहुल गुप्ता जी के अनुसार जैन परम्परा के गणधर गोतम बुद्ध

राहुल गुप्ता जी का मत है कि, शान्तिनाथ, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ की परम्परा जिसमें वर्धमान महावीर हुए उसी परम्परा के अन्तर्गत सिद्धार्थ को गोतम बुद्ध कहा गया। 
लेकिन उस श्रमण परम्परा में बुद्ध और अर्हत दो अवस्थाएँ हैं। लेकिन उस गोतम बुद्ध ने कोई नया पन्थ बौद्ध पन्थ का प्रवर्तन नहीं किया था।
उस गोतम बुद्ध की मृत्यु के लगभग डेढ़ सौ से तीन सौ वर्ष बाद उनके शिष्यों ने बौद्ध मत प्रतिपादित किया।

सिद्धार्थ एक व्यक्ति था, उसे अर्हत वादी श्रमण परम्परा में गोतम की उपाधि मिली, और माना गया कि, उन्हें बोध हुआ इसलिए बुद्ध भी कहा गया। लेकिन बुद्ध के रूप में सर्वसम्मति या मान्यता नहीं मिली। उस परम्परा में अर्हत महत्वपूर्ण होता है, बुद्ध नहीं। और तीर्थंकर नियत निर्धारित होते थे।

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