चतुर्मुखी प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान जो स्वयम् ब्रह्मर्षि थे वे भी प्रजापति कहलाते हैं।
इनमे दक्ष प्रजापति प्रथम और उनकी पत्नी प्रसुति, रुचि प्रजापति और उनकी पत्नी आकुति (इन्ही ने श्राद्ध चलाया जिसे सांकल्पिक नान्दिश्राद कहते हैं) और कर्दम प्रजापति और उनकी पत्नी देवहूति (जिनके पुत्र सांख्य दर्शन के रचयिता महर्षि कपिल हुए।)
शेष ब्रह्मर्षि (4) मरीची-सम्भूति, (5) भृगु-ख्याति, (6) अङ्गिरा-स्मृति, (7) वशिष्ट-ऊर्ज्जा, (8) अत्रि-अनसुया, (9) पुलह-क्षमा, (10) पुलस्य-प्रीति, (11) कृतु-सन्तति।
इनके अलावा नारद ने विवाह नहीं किया।
इन आठ मे से जिन्होंने गुरुकुल चलाए उन कुल गुरुओं के गोत्र चले।
फिर इनके योग्य शिष्यों के भी गुरुकुल चले उनके नाम पर भी गोत्र चले।
लेकिन एक महागुरु के जितने शिष्यों के गोत्र होते हैं वे एक ही प्रवर में माने जाते हैं। इसलिए समान प्रवर में भी विवाह नहीं होता है।
पिता का गोत्र तो विवाह में त्याज्य है ही, माता, दादी, पर दादी, वृद्ध परदादी का गोत्र भी त्याज्य है। नाना जी, नानी और माँ की दादी और नानी का गोत्र भी त्याज्य है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें