वर्तमान संघ, जनसंघ और भाजपा को अपनी इन कमजोरियों से सबक लेकर कट्टर वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म को ही अपना आधार बनाकर समत्व वादी आर्थिक नीतियों और वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म हितेषी, संस्कृत और प्राचीन वैदिक संस्कृति और अभ्युत्थानम् धर्मस्य, विनाशाय च दुष्कृताम् तथा विप्र, धैनु, सुर, सन्त हितकारी और कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप को भारत राष्ट्र राज्य बनानें का लक्ष्य लेकर राष्ट्रवादी नीतियों वाले साहसिक निर्णय लेकर तुरन्त कार्यक्रम तैयार कर लागू करने वाला दल बनना चाहिए। अन्यथा निकट भविष्य में भा.ज.पा. कांग्रेस का रूपांतरित वर्ज़न से अधिक कुछ नहीं रहने वाली है।
अभी तो भाजपा की वास्तविकता यह है। ---
दासता मूलक और सनातन धर्म विरोधी कानूनों को स्वतन्त्र भारत में बनाए रखने, संविधान संशोधनों तथा सनातन धर्म विरोधी एवम् मुस्लिम पक्षधर नवीन कानूनों को लाने और बनाये रखने का दोषी नेहरू था। न कि, गान्धी।
सावरकर पन्थियों का मानना है कि, सावरकर अपनी लाइन बड़ी नही कर पाये और गान्धी की लाइन बड़ी होती रही इसके लिए गांधी ही दोषी हैं। उनको भ्रम है कि, सावरकर को गान्धी नें आगे नही बढ़ने दिया।
जबकि वास्तविकता यह है कि, इसमें पूर्ण रूपेण दोषी केवल सावरकर स्वयम् थे, न कि, गान्धी। सावरकर स्वयम् नास्तिक थे, और स्वयम् को नास्तिक ही कहते थे, वेदों, गौ, गंगा, ब्राह्मण और वर्णाश्रम धर्म में उनकी आस्था नहीं थी। लेकिन भारतीय मूल के लोगों को हिन्दू कहते थे और ऐसे हिन्दुत्व की बात करते थे। सावरकर कभी कोई युक्ति संगत लोगों को अपील करे ऐसा कोई कार्यक्रम नही दे पाये। इस कारण सावरकर जनता में अपनी पैठ नही बना पाये।
जब कि, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, अशफाक उल्ला खां अपनी पैठ जनता में जमा पाये। जिननें अंग्रेजी खजाना लूटने और दुष्ट अंग्रेज अधिकारियों की हत्या तक की। फिर भी जनता में उनकी पैठ थी।
सुभाष चन्द्र बोस जन नेता बन गये। नेताजी ने आजाद हिन्द फौज बनाली, विदेशी सहयोग जुटा लिया। युद्ध भी जीते। सरकार भी बना ली।
कम्युनिस्टों नें नेवी में अपनी जबरदस्त पकड़ बना ली और हड़ताल तक करवानें में समर्थ रहे।
अम्बेडकर और जिन्ना तक ने अपनी जात बिरादरी में ही सही पर गहरी पैठ बना ली।
सरदार पटेल लोकप्रिय नेता रहे। पूर्ण जनमत उनके साथ रहा।
नेहरू नें गांधी के बल पर पैठ बना ली तो,
लाला लाजपत राय, और प. मदनमोहन मालवीय की हिन्दू सभा और हिन्दू महासभा का नेतृत्व और उत्तराधिकार मिलने के बावजूद अकेले सावरकर को ही जन सहयोग क्यों नहीं मिला?
जो गलती आरम्भ में बाल ठाकरे ने की थी सबसे प्रमुख कारण वही थे।
सावरकर ने केवल न्यूज पेपर निकालने के अलावा जन सम्पर्क कभी नहीं रखा। भारत भ्रमण नही किया। महाराष्ट्र और मराठी तक सीमित रहे। शिवाजी के अलावा विक्रमादित्य, राजा भोज, पृथ्वीराज चौहान, छत्रसाल, राणा सांगा, महाराणा प्रताप, राजेन्द्र चौल जैसे राजाओं का महिमा मण्डन नही किया। इसलिए केवल महाराष्ट्र के क्षेत्रीय नेता बन कर रह गये।
जिनका उत्तराधिकार मिला वे लाला लाजपतराय स्वयम् लाठियों से पीट पीट कर अंग्रेजों द्वारा बलिदान कर दिए गए लेकिन डटे रहे, डरे नही।
सावरकर एक बार जेल हो आये तो जेल की यातनाओं से इतना डर गये कि, उसी जेल यात्रा की यातनाओं को भुनाते रहे। लगातार आन्दोलन चलाने का साहस नही जुटा पाये। कहा भी है कि,"जो डर गया वो मर गया।"
सुभाष चन्द्र बोस कभी नही डरे, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, अशफाक उल्ला खान कभी नही डरे। बस केवल सावरकर ही डरे। जिन्हें वीर सावरकर कहलाना पसन्द था। लेकिन वीरता दिखाना नही।
सावरकर ने हिन्दू महासभा जैसे राष्ट्रीय दल को शिवसेना जैसा छोटा स्थानीय दल बना दिया। इतने बड़े दल का नेतृत्व सम्हालना भी सबके वश में नही होता।
जिन सावरकर जी को वर्तमान में संघ परिवार अपना पितृ पुरुष घोषित करना पसन्द करता है वे ही सावरकर रा. स्व.से. संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार जी को खुलेआम अंग्रेजों का एजेण्ट और देशद्रोही कहते थे। सुभाष चन्द्र बोस सहयोग की आशा लेकर मिले हेडगेवार जी नें सुभाष चन्द्र बोस को भी अंग्रेजों से लड़ना छोड़ हिन्दू एकता के लिए कार्य करने का गुरु मन्त्र देनें की कोशिश की तो सुभाष चन्द्र बोस अत्यन्त ही निराश होकर लौटे। हेडगेवार जी पर्व में पं. रामप्रसाद बिस्मिल चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह जी को भी अंग्रेजी शासन से आजादी का क्रान्तिकारी कार्यक्रम त्याग कर हिन्दू एकता के लिए काम करनें का उपदेश दे चुके थे। हेडगेवार जी नें भी कभी वेदों, गौ, गंगा, ब्राह्मण और वर्णाश्रम धर्म को अपना लक्ष्य घोषित नही किया। वे भी भारतीय मूल के लोगों को हिन्दू कहते थे और ऐसे हिन्दुत्व की बात करते थे।
फिर भी जनसंघ और भाजपा कभी चन्द्रशेखर भगतसिंह, सुभाष चन्द्र बोस जैसे मार्क्सवादियों को अपना आदर्श बतलाते हैं, कभी सरदार पटेल जैसे गांधी वादियों अपना आदर्श बतलाते हैं, (संकटकाल के बाद) कभी गांधीवादी समाजवाद को अपना अजेण्डा घोषित करते हैं। मोदीजी का गांधी जी के प्रति स्पष्ट आदर सम्मान प्रदर्शित कर अपना रथ बढ़ाते हैं।
इनके पास अपनी कोई विचारधारा ही नहीं है, अपना कोई कार्यक्रम भी नहीं है।
पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेई जी आजीवन नेहरू को फॉलो करते रहे और इन्दिरा गांधी की स्तुति तक कर चुके।
वर्तमान प्रधानमन्त्री मोदी जी भी जवाहर लाल नेहरू की वेशभूषा और व्यक्तित्व से प्रभावित हैं। और नेहरू, नरसिंहा राव और मनमोहन सिंह के घोषित कार्यक्रमों को फॉलो कर रहे हैं।
पं. दीनदयाल उपाध्याय के बाद अटल बिहारी वाजपेई ने भी भारतीय जनसंघ की ऐसी ही दुर्दशा कर दी थी कि, लोकसभा में दो सीट पर सिमट गये थे। फिर भी जनसंघी उनको वैसे ही पूजते रहे जैसे अभी मोदी जी को पूज रहे हैं।
संघ परिवार की विशेषता है कि, उननें केशव (बलिराम हेडगेवार) - माधव (सदाशिव गोलवलकर),
पं.दीनदयाल उपाध्याय- बलराज मधौक, अटल- अड़वानी, मोदी - योगी की जोड़ी को पूजा। इनमें से केवल मोदी - योगी ही इसलिए सफल दिख रहे हैं क्योंकि,विपक्ष में कोई दमदार विकल्प ही नही बचा इस कारण वे संयोग से सफल हो रहे हैं।
जबकि बैचारे नितिन जयराम गडकरी और हेमन्त बिस्वा सोरेन को भाजपा में वह महत्व नही मिला जिसके वे अधिकारी हैं।
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