१ देश (स्थान) और काल (दिनांक और समय) का उल्लेख एक साथ होना आवश्यक है।तीनों में से एक भी चीज नही लिखी तो समय या स्थान की कोई सार्थकता सिद्ध नहीं होती है।
जैसे आज दिनांक २५ सितम्बर २०२२ रविवार को २२:३० बजे राऊ (इन्दौर) में यह आलेख लिखा गया।
पत्र लेखन और समाचार लेखन में यह बात प्रचलित है।
जैसे १४ /१५ अगस्त १९४७ को रात्रि ००:०० के पहले का भारत का नक्षे में हम पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत कहते हैं। और १४ /१५ अगस्त १९४७ को रात्रि ००:०० के बाद का भारत का नक्षे में भारत और पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान अलग अलग है। जबकि बांग्लादेश को मान्यता प्रदान करने के पश्चात वही क्षेत्र भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश कहलाता है।
सिक्किम विलय के पूर्व भारत और सिक्किम दो देश थे जबकि आज सिक्किम भारत का प्रदेश है।
बर्लिन की दीवार बननें के पहले, और दीवार तोड़ने तक पूर्वी बर्लिन और पश्चिम बर्लिन थे। जबकि बर्लिन की दीवार बननें के पहले और दीवार तोड़ने के बाद केवल बर्लिन नगर है। अर्थात दिनांक और समय के बिना देश (स्थान) का कोई अर्थ नही।
२ उज्जैन (भारतवर्ष) पूर्व देशान्तर ७५°४६' में २१ मार्च को सुर्योदय के समय सायन मेष लग्न उदय हो रहा होता है तभी / ठीक उसी समय
उज्जैन के ९०°पूर्व में परभद्राश्ववर्ष यमकोटि पत्तनम पूर्व देशान्तर १६५°४६' में मध्यान्ह हो रहा होता है और सायन कर्क लग्न उदित हो रहा होता है ।
उज्जैन के १८०° पर कुरुवर्ष सिद्धपुर (मेक्सिको का लियोनेल द्वीप) पश्चिम देशान्तर १०४°१४' सूर्यास्त हो रहा होता है एवम सायन तुला लग्न उदित हो रहा होता है।
उज्जैन के २७०° पर यानी उज्जैन के ९०° पश्चिम में केतुमालवर्ष रोमक पत्तनम। (सहारा/ मोरिटेनिया का सिसिस्नेरोस) पश्चिम देशान्तर १४°१४' में मध्य रात्रि हो रही होती है और सायन मकर लग्न उदित हो रहा होता है।
अर्थात स्थान के बिना समय का कोई अर्थ नही होता।
अतः देश (स्थान) और काल (समय) का उल्लेख एक साथ होना आवश्यक है।
३ जहाँ भी लग्न का उल्लेख हो या स्थानीय सूर्योदय सूर्यास्त पर आधारित अभिजित मुहूर्त या विजय मुहुर्त, या ब्रह्म मुहूर्त (वाले दो घटि वाले मुहुर्त) या प्रदोष काल, या महानिशिथ काल या उषा काल, या चौघड़िया आदि का उल्लेख आये वहाँ स्थान का नाम अत्यावश्यक है।
मैरे सभी सन्देशों में स्पष्ट लिखा है कि, ये मुहुर्त इन्दौर के लिए है। ये इन्दौर, राऊ, महू, बेटमा शिप्रा (उज्जैन रोड पर) धरमपुरी साँवेर तक ही चलेंगे।
धार उज्जैन में लगभग दो मिनट खरगोन में एक मिनट का अन्तर पड़ता है।
लेकिन सब स्थानों पर नही चलेंगे।
४ चौथी विशेष बात मुहुर्त में मुख्यता प्रातः काल/ मध्यान्ह काल/ प्रदोष काल/ महानिशिथ काल, उषा काल, अरुणोदय या अभिजित मुहूर्त/ विजय मुहुर्त, ब्रह्म मुहूर्त, आदि दो घड़ि मुहुर्त का तथा इनके साथ वृष, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ लग्न अर्थात स्थिर लग्न के साथ मिथुन, कन्या,धनु, और मीन लग्न अर्थात द्विस्वभाव लग्न अथव मेष, कर्क,तुला और मकर लग्न अर्थात चर लग्न के साथ मिथुन, कन्या,धनु, और मीन लग्न अर्थात द्विस्वभाव लग्न का ही महत्व है।
धर्मशास्त्र में चौघड़िया का कोई महत्व नहीं है। यह केवल परम्परागत पद्धति है।
पाँचवी विशेष बात यह है कि, मैंरे सन्देश में प्रायः गणितागत, वास्तविक, धर्मशस्त्रोक्त सूर्योदय सूर्यास्त के आधार पर ही गणना अंकित रहती है। जहाँ कहीँ भी आभासी दृश्य सूर्योदय सूर्यास्त या आभासी दृश्य सूर्योदय सूर्यास्त पर आधारित गणना अंकित होंगे तो वहाँ मैं स्पष्ट उल्लेख करता हूँ।
सूर्योदय सूर्यास्त दो प्रकार के होते हैं।
गणितागत, वास्तविक, धर्मशस्त्रोक्त सूर्योदय सूर्यास्त। और दुसरा आभासी दृश्य सूर्योदय सूर्यास्त।
आभासी दृश्य सूर्योदय की तुलना में यह गणितागत, वास्तविक , धर्मशस्त्रोक्त सूर्योदय बाद में होता है। जबकि आभारी दृश्य सूर्यास्त से गणितागत, वास्तविक, धर्मशस्त्रोक्त सूर्यास्त पहले होता है। इसलिए गणितागत, वास्तविक, धर्मशस्त्रोक्त दिनमान छोटा और रात्रिमान बढ़ा होता है। जबकि आभासी दृष्य दिनमान बड़ा और रात्रिमान छोटा होता है।
यह वायु मण्डल में सूर्य का अप वर्तन होने के कारण होता है। जैसे पानी से भरी बाल्टी में पड़ा सिक्का उपर दिखता है और छड़ टेढ़ी दिखती है वैसे ही सूर्योदय के पहले सूर्य दिखने लगता है और सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखता रहता है।
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