हरियाणा का धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र (थानेसर जिला) वाला क्षेत्र प्राचीन ऋषि देश कहलाता है ।क्योंकि, प्रजापति ब्रह्मा नें एवम् १अर्धनारीश्वर महारुद्र २ सनक, ३ सनन्दन, ४ सनत्कुमार, ५ सनातन, ६ नारद, ७ इस क्षेत्र के राजा धर्म, ८ अग्नि - स्वाहा की जोड़ी, ९ पितरः (अर्यमा) - स्वधा की जोड़ी, के अलावा तीन प्रजापति - १० दक्ष प्रजापति (प्रथम) - प्रसुति की जोड़ी, ११ रुचि प्रजापति - आकुति की जोड़ी, १२ कर्दम प्रजापति - देवहूति की जोड़ी उत्पन्न किए। इनके अलावा ब्रह्मर्षि गण उत्पन्न किए जिनका विवाह दक्ष- प्रसूति की पुत्रियों से हुआ और जिनकी सन्तान ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण हुए) -- १३ महर्षि भृगु - ख्याति (जो मैरे आदि पूर्वज हैं) तथा १४ मरिची - सम्भूति, १५ अङ्गिरा - स्मृति, १६ वशिष्ट-ऊर्ज्जा, १७ अत्रि - अनसुया, १८ पुलह - क्षमा, १९ पुलस्य - प्रीति, २० कृतु - सन्तति आदि ऋषियों तथा २१ स्वायम्भू मनु - शतरुपा की जोड़ी को कुरुक्षेत्र में ही उत्पन्न किया था ।
इसे गोड़ देश भी कहते हैं। पञ्जाब - हरियाणा का मालव प्रान्त भी इससे लगा हुआ है। और कुछ क्षेत्र तो कॉमन ही है।
विक्रमादित्य के दादा जी महाराज नबोवाहन जो सोनकच्छ के निकट गन्धर्वपुरी में आकर बसे थे, उनके पुत्र गन्धर्वसेन ने गन्धर्वपुरी को राजधानी बनाया। कहा जाता है कि, चूँकि,नबोवाहन पञ्जाब हरियाणा के मालवा प्रांत के राजा थे इसलिए उसकी स्मृति में मालवा के पठार का नाम मालवा रखा गया।
आद्यगोड़, श्रीगोड़, गुजरगोड़ आदि पञ्चगोड़ ब्राह्मण यहीँ उत्पन्न हुए थे। हमारे पूर्वज इस गोड़ देश/ ऋषि देश से श्रीनगर में बस गए इसलिए श्रीगोड़़ कहलाए। औरंगजेब के अत्याचारों से त्रस्त होकर मालवा आ गये तो मालवी श्रीगोड़़ कहलाये।
मैरे पूर्वजों की भूमि श्रीनगर के निकट देवगढ़ नामक स्थान है, इसलिए हमारे पूर्वज देवगढ़ के व्यास कहलाते थे। वहाँ जानें की बचपन से इच्छा रही है। पर अभी तक जा नही पाया।
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