मंगलवार, 13 सितंबर 2022

समय की कमी - सत्य या आवश्यक कार्य केवल टालने की प्रवृत्ति?

समय की कमी - सत्य या आवश्यक कार्य केवल टालने की प्रवृत्ति?
प्रत्येक व्यक्ति दिनभर व्यर्थ की परिचर्चा में बहुत सा समय व्यतीत कर देता है। आदि से अन्त तक एक ही बात की बारम्बार पुनरावृत्ति करना, या अपनी त्रुटियों/गलतियों को स्वीकार कर सुधारनें का निश्चय करने के स्थान पर, नये नये आधारों और तर्कों से अपनी त्रुटियों/गलतियों को उचित ठहराया जानें का प्रयत्न करते रहने, और इसका प्रारुप तैयार करनें हेतु अत्यधिक सोच विचार करनें में हम अधिकतम समय, शक्ति और सामर्थ्य व्यर्थ करते हैं।
जबकि विश्व की विभूतियों नें इन विषयों पर न कभी विचार किया न चर्चा की। त्रुटि स्वीकारी, सुधारी या भविष्य के लिए सावधान रहे। जो भी कार्य किया पूर्ण जानकारी प्राप्त कर कुशलतापूर्वक एक ही प्रयास में पूर्ण किया। वे बारम्बार सुधारने की गुंजाइश नही रखते हैं। इसलिए सफल होते हैं।
जबकि,  वास्तविक कार्य के लिए हमारे पास प्राथमिकता ही नही रहती और हम व्यर्थ विचार और चर्चाओं में इतने मशगूल रहते हैं कि, उस वास्तविक कार्य करने के लिए समय ही नहीं रहता।
यदि वास्तव में समय की कमी होती तो बड़े-बड़े राजनेताओं, राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमन्त्री - मन्त्रियों, सचिवों, बड़ी-बड़ी कम्पनियों के स्वामियों, चेयरपर्सन, सी.ई.ओ. संचालकों को तो कभी समय ही नही मिलता। लेकिन वे अपने कार्य विस्तार करते रहते हैं। कभी - कभार ही उलझन अनुभव करते हैं। उनके विचार प्रायः सुलझे हुए ही होते हैं।
लेकिन इससे विपरीत समय की कमी उन्हीं को रहती है जो उक्त लोगों की तुलना में नगण्य कार्य करते हैं।  कोई बड़ा व्यवसायी किसी छोटे व्यवसायी को उसके उद्यम के साथ कुछ पूरक उद्यम का सुझाव देता है तो छोटा व्यवसायी उत्तर देता है, इस काम से ही फुर्सत नही मिल पाती, टेमीज नी है भिया। कहाँ से करूँ, एकला पड़ जाता हूँ। जबकि वह यह भूल जाता है कि, सामनें वाला भी अकेला ही बहुत से उद्यम संचालित करते हुए नित नई प्रगति कर रहा है।
घर में बैठे अधिकांश कार्मिकों, गृहणियों, अकुशल श्रमिकों यहाँ तक कि, भिखारियों को कहते सुना जा सकता है कि, समय ही नही मिलता, टेम नी है भिया।

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