विश्वेदेवाः -
वेदों में नारायण, हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, प्रजापति ब्रह्मा, ब्रहस्पति, इन्द्र, ब्रह्मणस्पति, आदित्य, वाचस्पति, वसु, पशुपति, रुद्र गणपति, स्वायम्भुव मनु और सदसस्पति आदि सभी देवताओं को संयुक्त रूप से विश्वेदेवाः कहा है।
पुराणों में विश्वेदेवा: उन सभी नौ या दस देवताओं के समूह के लिए आता है जिनके नाम वेद, संहिता तथा अग्निपुराण आदि में दिए गए हैं। भागवत में इन्हें धर्म ऋषि तथा (दक्षकन्या), विश्वा के पुत्र बताया है और इनके नाम 1 दक्ष,2 व्रतु, 3वसु,4 काम,5 सत्य, 6 काल, 7रोचक, 8आद्रव, 9पुरुरवा तथा 10 कुरज दिए हैं। इन सबों ने राजा मरुत के यज्ञ में सभासदों का काम किया था।
मरुद्गण - मुख्य मरुत सात हैं। इनके छः छः पुत्र मिलकर उन्चास मरुद्गण कहलाते हैं।
सप्त मरुतः --- 1 आवह, 2.प्रवह, 3.संवह, 4.उद्वह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह है। ये सातों सैन्य प्रमुख समान गणवेश धारण करते है।
ये भी सुकर्मों के फलस्वरूप देवता श्रेणी में पदोन्नत हुए।अतः कर्मदेव कहलाते हैं।
इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है। ये 7 प्रकार हैं-
1.प्रवह, 2.आवह, 3.उद्वह, 4. संवह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह।
1. प्रवह : पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।
2. आवह : आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।
3. उद्वह : वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है।
4. संवह : वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
5. विवह : पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है।
6. परिवह : वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
7. परावह : वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
इन सातो वायु के सात सात के गण हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं- -
1 ब्रह्मलोक, 2 इन्द्रलोक, 3 अन्तरिक्ष, 4 भूलोक की पूर्व दिशा, 5 भूलोक की पश्चिम दिशा, 6 भूलोक की उत्तर दिशा और 7 भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह 7×7=49 अर्थात कुल 49 मरुत हैं जो देव रूप में विचरते रहते हैं।
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