बुधवार, 4 अगस्त 2021

यज्ञ, योग और तप से देवताओं की उन्नति होती है इसकारण इन्द्र, आदित्य, वसु आदि देवता गण यज्ञ, योग और तप में सहायक होते हैं बाधक नही।

यज्ञ, योग और तप से देवताओं की उन्नति होती है,इन्द्र का सिंहासन नही डोलता।
वेदों और महाभारत/ अध्याय 27 (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय) /03/ 09 से 16 के अनुसार सृष्टि के आदि में प्रजापति ने देवताओं और मनुष्यों को रच कर कहा कि, मनुष्यों, तुम वेदिक विधि से यज्ञ करके देवताओं को यज्ञभाग देकर देवताओं की उन्नति करो, इसके बदले देवता गण तुम्हें भोग्य सामग्री देंगे। उनके द्वारा प्रदत्त भोग्य सामग्री का आवश्यक्तानुसार भोग ही उचित है। बिना देवताओं के दिये और अनावश्यक भोग निश्चित ही चोरी मानी जायेगी।

अतः इन्द्र द्वारा यज्ञकर्ता ऋषियों के यज्ञ में विघ्न डालना केवल पुराणकारों का नीजीमत है। अन्य प्रमाणों से पुष्ट नही होता। रामायण में राक्षसों द्वारा यज्ञ में विघ्न डालने का उल्लेख है। महाभारत में सभापर्व अध्याय 12 (लोकपाल सभाख्यानपर्व) 29 में नारदजी के कथनानुसार भी लिखा है कि, ब्रह्मराक्षस यज्ञ में विघ्न डालनें के लिए छिद्र ढूँढते रहते हैं। महाभारत/ शान्ति पर्व/ मौक्षपर्व/ ज्वर उत्पत्ति/ अध्याय 283 में दक्ष यज्ञ रुद्रगणों द्वारा विध्वंस करनें का उल्लेख है।

जब इन्द्रादि देवताओं के विकास के लिए यज्ञ किया जाता है, यज्ञ में देवताओं को यज्ञभाग अर्पित किया जाता है तो; देवता यज्ञ में बाधा क्यों डालेंगे। वस्तुतः अ वेदिक, वेद विरुद्ध तान्त्रिक हवनादि में वेदों के रक्षक देवता बाधा डालें यह तो समझ आता है।जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमानजी द्वारा राक्षसों की कुलदेवी निकुम्भला के मन्दिरों को नष्ट करना, लक्ष्मण द्वारा मेघनाद का तान्त्रिक यज्ञ विनाश करना, श्रीराम द्वारा रावण द्वारा किये जारहे तान्त्रिक यज्ञ में बाधा डालना तो समझ आता है। क्योंकि, यह तो देवताओं, देवांशों और अवतारों का कर्तव्य ही है। वैदिक यज्ञों में देवतागण सहयोग ही करते हैं बाधा नही डालते। रागद्वेष जैसी आसुरी प्रवृत्तियों से उपर उठे आदतन परम सदाचारी जीवों को ही देवता पद मिलता है। देवता लगभग वितरागी ही होते हैं। उपनिषदों में केनोपनिषद, छान्दोग्योपनिषद आदि में इन्द्र ,अग्नि और वायु को ब्रहज्ञानी बतलाया गया है। अतः ये रागद्वेष से परे हैं। संशय और भ्रम से मुक्त हैं यह सिद्ध है।

महर्षि वेदव्यास महाभारत में कुछ और लिखे और पुराणों में कुछ और लिखें यह सम्भव नही है। पुराणों में आपसी मतान्तर अत्यधिक है जबकि महाभारत तुलनात्मक अधिक प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। इस कारण गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत के प्रमाण सन्दर्भ सहित दिये हैं। मिलान कर सकते हैं।

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