ब्रह्मायु, प्रजापति की आयु -कल्प, सृष्टि संवत,सर्ग-प्राकृत, नैमित्तिक और जैविक प्रलय, मन्वन्तर, महायुग और युग व्यवस्था।
(विष्णु पुराण प्रथम अंश/ अध्याय तीन से पाँच तक।
मनुस्मृति प्रथम अध्याय।
सूर्य सिद्धान्तोक्त मतानुसार।)
सायन मतानुसार दिनांक 20 मार्च 2021 को पुर्वाह्न 15:07 बजे (तथा निरयन मतानुसार दिनांक 13 उपरान्त 14 अप्रेल 2021 को उत्तर रात्रि में पूर्वाह्न 02:33 बजे ) नवीन कलियुग संवत्सर 5122 के आरम्भ होनें के समय के अनुसार संवत्सर संख्या दी जा रही है। ——
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की आयु -- हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के कुल शत वर्ष (100 वर्ष) की ब्रह्मायु रहती है। जिसे एक पर कहते हैं। ब्रह्मायु को दो परार्ध भी कहते हैं।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की कुल आयु मानव वर्ष अर्थात सायन सौर वर्षानुसार 31,10,40,00,00,00,000 वर्ष है।
इसमें से वर्तमान हिरण्यगर्भ ब्रह्मा अपनी आयु के पचास वर्ष (अर्धायु) पूर्ण कर चुके हैं इसलिए वर्तमान में द्वितीय परार्ध चल रहा है।
ब्रह्मायु के पचास वर्ष पूर्ण होने के पश्चात द्वितीय परार्ध में अर्थात 51 वें वर्ष के प्रथम दिन (कल्प) का भी लगभग 45.67% भाग (छः मन्वन्तर) व्यतीत हो चुके हैं। अर्थात वर्तमान प्रजापति की आयु भी 45 वर्ष 08 माह 01 दिन पूर्ण हो चुकी है।
वर्तमान कल्प के छः मन्वन्तर व्यतीत होकर सातवें मन्वन्तर के अट्ठाइसवें महायुग का कलियुग के 5120 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।
एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं। एक मन्वन्तर में सन्धि संन्ध्यांश सहित 71 महायुग होते हैं। 43,20,000×71 = 30,67,20,000 सायन सौर वर्ष का मन्वन्तर होता है।
वर्तमान हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के आयु 31,10,40,00,00,00,000 सायन सौर वर्ष में से
15,55,21,97,29,49,122 सायन सौर वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। तथा हिरणगर्भ ब्रह्मा के जीवन के 15,55,18,02,70,50,878 सायन सौर वर्ष शेष रहेंगे।
इसके बाद हिरण्यगर्भ ब्रह्मा अपने कारण जीवात्मा अपरब्रह्म विराट (नारायण - श्रीलक्ष्मी) में लीन हो जायेंगे और प्राकृत प्रलय होजायेगा। प्राकृत प्रलय की अवधि भी ब्रह्मायु के बराबर ही होती है ।अर्थात 31,10,40,00,00,00,000 सायन सौर वर्ष प्राकृत प्रलय रहेगा। इसके बाद ही दुसरे हिरण्यगर्भ ब्रह्मा प्रकट होंगे।
इसी प्रकार वर्तमान हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की उत्पत्ति के पहले भी 31,10,40,00,00,00,000 सायन सौर वर्ष का प्राकृत प्रलय ही था।
प्रजापति ब्रह्मा की कुल आयु अर्थात हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के एक अहोरात्र अर्थात एक कल्प के बराबर होती है। हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के एक दिन अर्थात एक कल्प की कुल अवधि 4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष होती है।
वर्तमान हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के वर्तमान दिन का नाम श्वेत वराह कल्प है।
जिसमें से वर्तमान प्रजापति को उत्पन्न हुए अर्थात कल्पारम्भ हुए 1,97,29,49,122 वर्ष पुर्ण हो चुके होंगे। तथा प्रजापति की शेष आयु अर्थात कल्प समाप्त होने को 2,34,70,50,878 वर्ष शेष रहेंगे । इसके बाद 4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष की हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की रात्रि में प्रजापति ब्रह्मा अपने कारण भूतात्मा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा विश्वकर्मा में लय होजायेंगे परिणाम स्वरूप नैमित्तिक प्रलय होगा जिसकी अवधि प्रजापति की आयु या कल्प के बराबर 4,32,00,00,000 वर्ष ही रहेगा।
नैमित्तिक प्रलय में आकाशादि समस्त ब्रह्माण्ड अपने कारण प्रजापति में बीज रूप में लय होकर प्रजापति भी अपनें कारण हिरण्यगर्भ ब्रह्मा में लीन रहेंगे।
तथा 4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष बाद पुन्ः हिरणगर्भ ब्रह्मा के दिनोदय में नवीन कल्पारम्भ होगा। फिर नवीन सृष्टि सृजन होगा।
अर्थात वर्तमान प्रजापति ब्रह्मा की आयु भी 45 वर्ष 08 मास 01 दिन व्यतीत हो चुके हैं और छियालीसवें वर्ष के नौवे मास का दुसरी रात्रि यानी दुसरा अहोरात्र चल रहा है। अर्थात सायन सौर 1,97,29,49,122 वर्ष व्यतीत हो चुके और 2,34,70,50,878 सायन सौर वर्ष कल्प समाप्ति को शेष है। इसके बाद नैमित्तिक प्रलय होजायेगा। सम्पूर्ण भौतिक जगत प्रजापति में बीज रूप में लय हो जायेगा और प्रजापति अपने कारण हिरण्यगर्भ में लय हो जायेगा।
फिर एक ब्रह्मरात्रि 4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष तक नैमित्तिक प्रलय बना रहेगा। इसके बाद नवीन कल्प (हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के नये दिन) में नये प्रजापति उत्पन्न होंगे और नवीन सर्ग आरम्भ करेंगे। हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के केन्द्र / चित्त में बीज रूप में स्थित स्थावर जङ्गम जगत पुनः नये सिरे से सृष्टि के रूप में प्रकट होगा।
प्रजापति का एक अहोरात्र 1,20,000सायन सौर वर्ष का होता है। और 60,000 सायन सौर वर्ष का एक दिन होता है और 60,000 सायन सौर वर्ष की ही एक रात्रि होती है।
कल्प संवत्सर गणना मन्वन्तर गणनानुसार -- पहले कृतयुग तुल्य (17,28,000 वर्ष की) संधि, फिर (30,67,20,000 वर्ष का) मन्वन्तर, फिर सन्धि फिर मन्वन्तर इस क्रम में
(17,28,000 वर्ष की) 7 (सात) सन्धि = 1,20,96,000 वर्ष की सात सन्धि हुई।और 30,67,20,000 वर्ष के छः मन्वन्तर व्यतीत हो गये अर्थात (30,67,20,000×6) = 1,84,03,20,000 वर्ष। सातवें (वैवस्वत) मन्वन्तर के 27 महायुग व्यतीत हो चुके (43,20,000×27)= 11,66,40,000 वर्ष।
अट्ठाइसवें महायुग के कृतयुग / सतयुग 17,28,000 वर्ष + त्रेतायुग 12,96,000 वर्ष+ द्वापरयुग 8,64,000 वर्ष + कलियुग के 5122 वर्ष व्यतीत हो गये। अर्थात वर्तमान महायुग के 38,93,122 वर्ष व्यतीत हो चुके।
सात सन्धियाँ,+ छ मन्वन्तर+ सत्ताइस महायुग + वर्तमान महायुग के व्यतीत वर्ष = कल्प संवत⤵️
1,20,96,000 वर्ष सन्धियाँ
+1,84,03,20,000 वर्ष मन्वन्तर
+ 11,66,40,000 वर्ष महायुग
+ 38,93,122 वर्ष वर्तमान महायुग
----------------------------
=1,97,29,49,122 वर्ष कल्प ।
कल्प संवत 1,97,29,49,122 सायन सौर वर्ष।
मान्यता है कि, कल्पारम्भ के बाद सृष्टि सृजन में 1,70,64,000 लगे। अतः सृष्टि संवत कल्प संवत से 1,70,64,000 वर्ष छोटा है। सृष्टि के आरम्भ से 1,95,58,85,122 वर्ष पुर्ण हो चुके होंगे। इसकारण कल्प संवत 1,97,29,49,122 है तो सृष्टि संवत 1,95,58,85,122 है।
एक मन्वन्तर की अवधि 30,67,20,000 वर्ष में से सप्तम मन्वन्तर यानि वैवस्वत मन्वन्तर आरम्भ हुए 12,05,33,122 वर्ष होचुके होंगें। अर्थात वैवस्वत मनु की अवस्था 39 वर्ष 03 मास 17 दिन से अधिक हो चुकी है।
तथा वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर समाप्त होने को 18,61,86,878 वर्ष शेष हैं। इसके पश्चात वैवस्वत मनु, इन्द्र,तथा देवगण, सप्तर्षिगण अपने कारण सुत्रात्मा प्रजापति विश्वरूप में लय होजायेंगे। तथा
एक कृतयुग तुल्य अवधि 17,28,000 वर्ष तक जैविक प्रलय रहेगा। फिर आठवें मनु सावर्णि मनु नवीन जैविक सृष्टि करेंगे।
कलियुग की कुल आयु 4,32,000 वर्ष है।कलियुग आरम्भ हुए 5122 वर्ष हो चुके होंगे। तथा कलियुग समाप्त होने को 4,26,878 वर्ष शेष रहेंगे। इसके बाद उन्तीसवाँ सतयुग (कृतयुग) आरम्भ होगा।
भारतीय गणना पद्यति 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11 के क्रम में चलती हैं।इस कारण संवत्सर भी गताब्ध में दिये जाते हैं क्योंकि जब संवत्सर आरम्भ हुआ होता है तब संवत 00 कहलाता है। आरम्भ हुए एक वर्ष पुर्ण होने पर संवत 01 कहलाता है।अस्तु मारतीय संवत गताब्ध में दर्शाये जाते हैं। तदनुसार — —
कल्प संवत 01अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 122 चल रहा है।
सृष्टि संवत 01अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 122 चल रहा है।
एवम् कलियुग संवत 5122 चल रहा है।
31,10,40,00,00,00,000 सायन सौर वर्ष की हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की आयु में सर्ग (सृष्टि) रहती है और इतनी ही अवधि के प्राकृत प्रलय रहता है। इस अवधि में
4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष के प्राकृत, वैकृत और प्राकृत-वैकृत नौ सर्ग होते हैं। और 4,32,00,00,000 का नैमित्तिक प्रलय रहता है। सृष्टि में एक ब्राह्मदिन यानी एक कल्प या सृष्टि काल 4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष में पन्द्रह सन्धि- सन्ध्यांश सहित चौदह मन्वन्तर होते है।
(30,67,20,00,000×14= 4,29,40,80,000 सायन सौर वर्ष कल्पावधि।
17,28,000×15= 2,59,20,000 सायन सौर वर्ष सन्धियाँ।)
4,29,40,80,000 चौदह मन्वन्तर अवधि
+ 2,59,20,000 पन्द्रह सन्धि अवधि
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4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष कल्पावधि।
पहले कृतयुग तुल्य 17,28,000 वर्ष की सन्धि फिर 30,67,20,000 सायन सौर वर्ष का मन्वन्तर फिर 17,28,000 वर्ष की सन्धि फिर 30,67,20,000 सायन सौर वर्ष का मन्वन्तर फिर 17,28,000 वर्ष की सन्धि इस क्रम में चौदह मन्वन्तर होते है। भौतिक सृष्टि में यह जैविक सृष्टि और सन्धि सन्ध्यांश अवधि में जैविक प्रलय होते रहते हैं। यह सृजन प्रलय की कालगणना है।
ब्राह्मदिन यानी कल्प को मनोवैज्ञानिक कालावधि में भी विभाजित किया गया है। जिसे महायुग और युगों में विभाजित किया गया है। क्रमशः व्यक्ति आत्म केन्द्रित होने लगते हैं और धर्म कम होने लगता है और अधर्म बड़ने लगता है। एक सीमारेखा पार होनें पर आपसी संघर्ष इतना बड़ जाता है कि, जनसंख्या बहुत कम बचती है। कुछ विरक्ति और बची हुई जनसंख्या के अनुपात में संसाधन बड़जाने और प्रतिस्पर्धी नही बचने के कारण पुनः धर्म प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और कलियुग के अन्त में सतयुग आ जाता है। यही युग व्यवस्था है।
4,32,00,00,000 सायन सौर वर्ष के एक कल्प में 43,20,000 सायन सौर वर्ष के 1000 महायुग होते हैं।
प्रत्येक महायुग में 4:3:2:1 के अनुपात वाली कालावधि 17,28,000ः12,96,000:8,64,000:4,32,000 वर्षावधि वाले कृतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग होते हैं। 1,44,000 वर्ष की सन्धि, फिर 14,40,000 वर्ष का मूल कृतयुग फिर 1,44,000 वर्ष का सन्ध्यांश = कुल17,28,000 सायन सौर वर्ष का कृतयुग होता है।
कृतयुग में सभी सदाचारी रहते हैं। धर्म शत प्रतिशत रहता है। अतः इसे सतयुग भी कहते हैं।
इसके बाद मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 75% धर्म (और 25% अधर्म) वाला 12,96,000 सायन सौर वर्ष का त्रेता युग रहता है। यह भी 1,08,000 वर्ष सन्धि, फिर 10,80,000 वर्ष का मूल त्रेतायुग फिर 1,08,000 वर्ष का सन्ध्यांश कुल 12,28,000 सायन सौर वर्ष का त्रेतायुग होता है।
ऐसे ही इसके बाद फिर मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 50% धर्म (और 50% अधर्म) वाला 72,000 वर्ष की सन्धि, फिर 7,20,000 वर्ष का मूल द्वापर युग फिर 72,000 वर्ष का सन्ध्यांश सहित कुल 8,64,000 सायन सौर वर्ष का द्वापर युग रहता है।
फिर मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 25% धर्म (और 75% अधर्म) वाला 36,000 वर्ष की सन्धि फिर 3,60,000वर्ष का मूल कलियुग फिर 36,000 वर्ष के सन्ध्यांश सहित 4,32,000 सायन सौर वर्ष का कलियुग रहता है।
पुनः इसी क्रम में मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 100% धर्म (और 00% अधर्म) वाला 17,28,000 सायन सौर वर्ष का कृतयुग आजाता है।
फिरसे मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 75% धर्म (और 25% अधर्म) वाला 12,96,000 सायन सौर वर्ष का त्रेता युग आजाता है।
फिर मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 50% धर्म (और 50% अधर्म) वाला 8,64,000 सायन सौर वर्ष का द्वापर युग आजाता है।
फिर मान्सिक दशा परिवर्तन होकर 25% धर्म (और 75% अधर्म) वाला 4,32,000 सायन सौर वर्ष का कलियुग होजाता है।
पुनः मान्सिक दशा परिवर्तन होकर शतप्रतिशत धर्म (और शुन्यप्रतिशत अधर्म) वाला 17,28,000 सायन सौर वर्ष का कृतयुग आजाता है।
तदनुसार अभी 36,000 वर्ष की कलियुग सन्धि में से मात्र 5122 सायन सौर वर्ष व्यतीत हुए हैं। और 30880 सायन सौर वर्ष की कलियुग सन्धि व्यतीत होने के बाद मूल कलियुग आयेगा।
हमे तो इस कलियुग सन्धि में ही जीवन दुभर लगता है तो मूल कलियुग कैसा होगा? उस कलिकाल से तो प्रभु ही बचाए।
सुचना - 1यह वर्णन स्मृतियों, रामायण, महाभारत, लगभग सभी पुराणों में, सूर्य सिद्धान्त, सिद्धान्त शिरोमणि, संहिताओं आदि ज्योतिष ग्रन्थों में विस्तार से देखा जा सकता है। यहाँ केवल गणीतिय भाग की ही व्याख्या ही प्रस्तुत की गई है।
2 कुछ आग्रही जन आपत्ति लेंगे कि, पुराणों और सिद्धान्त ग्रन्थों में नाक्षत्रीय वर्ष/ निरयन वर्ष के स्थान पर सायन वर्ष क्यों लिखे गये?
इसका उत्तर यह है कि, प्राचीन ग्रन्थों में जहाँ भी मानवीय वर्ष का उल्लेख है या व्रत, पर्वोत्सवों का वर्णन है उनको सदैव अयन और ऋतुओं से सम्बन्धित बतलाया गया है।ऋतु और अयन सायन गणना से ही सिद्ध होते हैं निरयन या नाक्षत्रीय गणना से नही। नाक्षत्रीय/ निरयन सौर संवत्सर से सदा जन्माष्टमी वर्षा ऋतु में नही आ सकती, और न रामनवमी वसन्त में। न आषाढ़ मास में होनें वाले कोकिला व्रत में सदा कोयल की आवाज सुन कर व्रत खोलना सम्भव है। क्योंकि, साढ़े छः हजार वर्ष में ये व्रतोत्सव तीन मास (एक/दो ऋतु) पहले और तेरह हजार वर्ष में छः माह (तीन ऋतु) पहले होनें लगेंगे।
इसी कारण शास्त्रों में कहीँ माघ मास से संवत्सर आरम्भ बतलाया जाता है तो कहीँ, मार्गशीर्ष मास से तो कहीँ कार्तिक मास से तो कहीँ वैशाख मास से तो वर्तमान में चैत्र मास से आरम्भ होता है। ऐसे ही कहीँ कृतिका को प्रथम नक्षत्र मानते हैं तो कहीँ मघा को तो कहीँ, धनिष्टा को तो कहीँ चित्रा को और वर्तमान में अश्विनी को प्रथम नक्षत्र मानते हैं। ये सब प्रमाण सायन सौर वर्ष को ही मानव वर्ष मानने के प्रमाण है। लेकिन यह तथ्य केवल सिद्धान्त ज्योतिष गणिताध्याय और गोलाध्याय के जानकार (एस्ट्रोनॉमर्स) ही समझ पायेंगें। जिनको एस्ट्रोनॉमी (सिद्धान्त ज्योतिष) की जानकारी और समझ ना हो कृपया वे दिमाग को कष्ट न दें।
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