आदरणीय ग. वा. कवीश्वर जी ने ही गहन अध्ययन कर महाभारत के गुढ़ रहस्य और महाभारत के तेरह वर्ष एवम् गीता तत्व मीमान्सा जैसी कालजयी पुस्तकों में महाभारत के ऐसे बहुत से रहस्यों पर से पर्दा उठाया इसमें ---
गीता प्रवचन अमान्त कार्तिक (पूर्णिमान्त मार्गशीर्ष) कृष्ण अमावस्या को हुआ। और युद्ध में परस्पर भिड़न्त दुसरे दिन मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ हुआ।
युद्ध एक दिन छोड़ कर होता था। कुल अठारह बार दोनों सेनाएँ भिड़ी किन्तु एक दिन छोड़कर युद्ध होने से अमान्त कार्तिक पूर्णिमान्त मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या से पौष शूक्ल चतुर्थी तक कुल पैंतीस दिन युद्ध चला।
महाभारत युद्ध में प्रथम दिन युद्धाभ्यास रखा, दुसरे दिन प्रत्यक्ष युद्ध हुआ। तीसरे दिन युद्धक्षेत्र की सफाई,और मरहम-पट्टी हेतु विश्राम दिवस रखा। चौथे दिन फिर प्रत्यक्ष युद्ध हुआ। ऐसे एक दिन युद्ध एक दिन विश्राम दिवस रखा जाता था।
दो अपवाद -
कुरुक्षेत्र में सेना आने के सत्ताईसवें दिन और प्रत्यक्ष लड़ाई के चौदहवें दिन की लड़ाई में जयद्रथ वथ के बाद रात्रि में बिना विश्राम के मशालों के प्रकाश मेंं युद्ध जारी रहा और कुछ देर विश्राम पश्चात चन्द्रोदय के बाद पुनः युद्धारम्भ हुआ जो दुसरे दिन भी चलता रहा।
ऐसे ही दुर्योधन वध के बाद भी अन्तिम दिन रात्रि में भी युद्ध चला। कुल मिलाकर अठारह लड़ाइयाँ पैंतीस दिन में लड़ी गई।
महाभारत युद्ध में वास्तविक युद्धारम्भ के एक दिन पहले अर्थात अमान्त कार्तिक पुर्णिमान्त मार्गशीर्ष कृष्ण अमास्या को प्रथम बार व्युह रचनाकर तैयार कर युद्धाभ्यास के लिए सेना खड़ी की गई थी । बिना युद्ध वाले दिन अर्थात मात्र युद्धाभ्यास वाले दिन अमान्त कार्तिक (पुर्णिमान्त मार्गशीर्ष) कृष्ण अमास्या को गीताप्रवचन हुआ था।
उसके अगले दिन मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से प्रत्यक्ष लड़ाई से व्यावहारिक युद्ध आरम्भ हुआ था।
(न कि मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को। )
दुर्योधन वध एवम् युद्ध समाप्ति पैंतीसवें दिन पौष शुक्ल चतुर्थी को हुआ। उस दिन सूर्य ज्यैष्ठा नक्षत्र पर एवम् चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र पर था।
उन्नीसवें दिन अर्थात प्रत्यक्ष लड़ाई के दसवें दिन अमान्त मार्गशीर्ष (पूर्णिमान्त पौष) कृष्ण तृतीया को शरशय्या पर भीष्म का पतन हुआ। सञ्जय नें स्वयम् पूरे युद्ध में प्रत्यक्ष लड़ाइयाँ लड़ी। और युद्ध में सञ्जय ने कुछ पाण्डवपक्षी योद्धाओं का वध भी किया था।
कौरव सेना के सेनापतियों के पतन पर दुसरे दिन अवकाश होनें के कारण हस्तिनापुर जाकर (भीष्मपर्व, द्रोण पर्व, कर्णपर्व और शल्य पर्व) सुनाया था।भीष्म के शरशय्या पर पतन के बाद भी विश्राम दिवस होने के कारण सञ्जय नें हस्तिनापुर जाकर धृतराष्ट्र को महाभारत का भीष्मपर्व सुनाया। और फिर लौट आया। (भीष्मपर्व में ही अध्याय 25 से 42 तक अमान्त मार्गशीर्ष (पूर्णिमान्त पौष) कृष्ण चतुर्थी को सञ्जय वें धृतराष्ट्र को श्रीमद्भगवद्गीता भी है सुनाई थी।)
कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता प्रवचन अमान्त कार्तिक (पुर्णिमान्त मार्गशीर्ष) कृष्ण अमास्या को दिया था। और सञ्जय वें धृतराष्ट्र को अमान्त मार्गशीर्ष (पूर्णिमान्त पौष) कृष्ण चतुर्थी को श्रीकृष्ण अर्जून संवाद रूप श्रीमद्भगवद्गीतासुपनिषद सुनाया था। अतः मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को गीता जयन्ती मनाने का कोई तुक नहीं है।
अर्जुन का मोह -
अर्जून को भ्रम हुआ कि, युद्ध में उसके भाग लेने के कारण कुरुवंश के पुरुषों के वध से उन योद्धाओं विधवाओं में व्यभिचार पनपेगा इस पाप का दोषी मैं भी होऊँगा; इस पाप भय के भ्रम/ सम्मोह से अर्जुन युद्ध से विरत हो रहा था।
श्री ग. वा. कविश्वर नें श्रीमद्भगवद्गीता के भी कई कूट स्पष्ट किये जैसे अर्जुन को लग रहा था कि,
इस महायुद्ध के अन्त में लगभग सभी पुरुवंशी पुरुषों का वध हो जायेगा तो उनकी विधवाओं में व्यभिचार पनपेगा और संकर / वर्णसंकर जन्मेंगे जो पितरों के भी पतन का कारण बनेंगें। इस कारण उसके स्वयम् के साथ ही सभी योद्धा इस पाप के दोषी होंगे। इस पाप से बचने के लिए अर्जून युद्ध नही करना चाहता था। श्रीकृष्ण नें अर्जुन को यह बात समझाया कर युद्ध के लिए तैयार किया कि, यदि युद्ध में तेरे भाइयों का वध होगा और लोग तुम पर भय वश युद्ध से विरत होनें का आक्षेप लगायेंगे तब तुम विवश होकर या भाइयों के वध से उत्तेजित होकर युद्ध में उतरोगे तो तुम्हारे इस कर्म से तुम्हारा और तुम्हारे कुल का अपयश फैलेगा अतः इसके बजाय क्षत्रिय धर्म पालन कर कर्तव्य पालनार्थ युद्ध करो। यह बात जब अर्जुन को समझ आई तभी वह अपने क्षात्रधर्म निर्वहनार्थ युद्ध करने को तैयार हुआ।
जयद्रथ वध --
कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़ी पाण्डव सेना का मुख पश्चिम की ओर तथा कौरव सेना का मुख पुर्व की ओर था। जयद्रथ मृत्युपर्यन्त पीछे मुड़ कर सुर्य देखता रहा। उसे मायीक या ऐन्द्रजालिक या जादुई सुर्यास्त कभी भी नही दिखा। इसलिये वह चिन्तित था। जबकि पुरी कौरव सेना को जयद्रथ वध के पहले वह मायीक सुर्यास्त दिखा। कौरव सेना द्वारा सुर्यास्त के भ्रम मे जयद्रथ की सुरक्षा करना छोड़ दी। उसी समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि, वास्तव में सूर्यास्त नही हुआ है अतः बाण चला और जयद्रथ वध कर तब अर्जुन ने युद्ध जारी रखते हुए असुक्षित जयद्रथ का वध किया।
उसदिन सूर्य अनुराधा नक्षत्र में और चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर अमान्त मार्गशीर्ष पूर्णिमान्त पौष कृष्ण एकादशी थी अतः कोई सुर्य ग्रहण नही हुआ था।
जयद्रथ वध अमान्त मार्गशीर्ष पूर्णिमान्त पौष कृष्ण एकादशी को हुआ था, अमावस्या को नही अतः सूर्यग्रहण होना सम्भव नही है।
वह सुर्यास्त माया रचकर किया था जैसे जादुगर लोग चलती ट्रेन गायब कर देते हैं या ताज महल गायब कर देते हैं श्रीकृष्ण ने भी वैसी ही माया रची थी।
(सुचना --- उल्लेखनीय है कि, श्रीकृष्ण ने महर्षि सान्दीपनि से चौसठ विद्याओं/ कलाओं के अन्तर्गत इन्द्रजाल भी सीखा था।)
महाभारत युद्ध के छिंयत्तरवें दिन भीष्म के शर शय्या पर गिरने के अट्ठावनवें दिन जब सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में और चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में था उस समय उत्तरायण आरम्भ में माघ शुक्ल पूर्णिमा को भीष्म नें देह त्यागी थी।
श्री ग. वा. कविश्वर नें महाभारत के तेरह वर्ष और महाभारत के गुढ़ रहस्य पुस्तक में युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच तेरह वर्ष पूर्ण होने के बाद अज्ञात वास का वर्ष पूर्ण हुआ या नहीं? इस विवाद को भीष्म ने कैसे हल किया? दोनों पक्षों को कैसे समझाया कि, युधिष्ठिर का पक्ष सही है।जिसे दुर्योधन ने न नही माना। बहुत विद्वता पूर्ण तरीके से इसका विवेचन किया।
श्री ग.वा. अधिश्वर नें सिद्ध किया कि, महाभारत काल में हर अट्ठावन माह पश्चात दो अधिक मास रखकर पाँच वर्ष की युग गणना की जाती थी।इसका रहस्य सुलझा कर तेरह वर्ष पुरे होनें का गणित, हल किया। और महाभारत युद्ध के पैंतीस दिनों की भी शुद्ध गणना कर इसे प्रमाणित किया।
ऐसे बहुत से कुट रहस्यों के अर्थ स्पष्ट किये हैं। किन्तु पता नही क्यों कविश्वर जी के वंशजों ने इन महान रचनाओं का प्रकाशन बन्द कर दिया।फल स्वरूप इस यथार्थ ज्ञान का प्रसार नही हो पाया।
कृपया विद्वतजन पहल करें।