1 वर्ण के स्थान पर अक्षरों का प्रयोग होना।
2 कुछ ऐसे अक्षर हैं जिनसे कोई शब्द नही बनता। जैसे आर्द्रा तृतीय चरण का अक्षर ङ हस्त तृतीय चरण का अक्षर ण, और उत्तराभाद्रपद चतुर्थ चरण का अक्षर ञ से कोई शब्द नही बनता। तो नाम कैसे बनेंगा।
3 किसी भी नक्षत्र चरण में ब एवम् श वर्ण नही होना। इसकारण ब वर्ण वाले नाम को वृष राशि रोहिणी नक्षत्र द्वितीय,तृतीय और चतुर्थ चरण वा , वी, वू और मृगशिर्ष नक्षत्र प्रथम और द्वितीय चरण के अक्षर वे, वो मानना पड़ता हैं। अर्थात ओष्ठव्य व्यञ्जन ब के स्थान पर दन्त्त्योष्ठव्य व्ययञ्जन व का प्रयोग ध्वनि विज्ञान और संस्कृत वर्णमाला पद्यति के विपरीत है। और श वर्ण के लिये हस्त नक्षत्र द्वितीय चरण का ष अक्षर और कुम्भ राशि में शतभिषा के द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ चरण के सा,सी, और सु अक्षर और पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम - द्वितीय चरण के से सो अक्षर से काम चलाना पड़ता है।
4 अवकहड़ा चक्र का संस्कृत वर्णमाला से मैल नही है। अवकहड़ा चक्र किस आधार पर बना इसका कोई प्रमाण भी उपलब्ध नही है।
उक्त कारणों से असन्तुष्ट होने के कारण मेनें संस्कृत ग्रन्थों में खोजबीन की तो सर्वप्रथम अग्नि पुराण में मन्त्र विद्या में अग्निपुराण अध्याय 293 श्लोक 10 से 15 तक नक्षत्र चक्र राशि चक्र और सिद्धादादि मन्त्र शोधन प्रकार में आधार मिला। इसी आधार पर संस्कृत वर्णमाला पर आधारित यह चक्र तैयार हुआ।
जन्मनाम निर्धारण संस्कृत पद्यति से।
जन्मलग्न के नक्षत्र चरण के अनुसार जन्मनाम/ देह नाम अर्थात प्रचलित नाम जो स्कुल कॉलेज में लिखा जायेगा।आधार कार्ड, पैनकार्ड, पासपोर्ट, बैंक खाते आदि में अंकित होगा उस नाम का प्रथम वर्ण इसी वर्ण पर रखें। या
जन्मलग्न के नक्षत्र चरण के वर्ण पर नाम नही जम रहा हो तो अपवाद में दशम भाव स्पष्ट के नक्षत्र चरणानुसार कर्मनाम भी रख सकते हैं।
अध्यात्मिक गुरु सुर्य के नक्षत्र चरणानुसार नाम रख गुरुनाम रखाजाये।
तन्त्र क्रिया हेतु तान्त्रिक आचार्य प्रदत्त नाम मानस नाम जन्म कालिक चन्द्रमा के नक्षत्र चरणानुसार रखें।
राशि/नक्षत्र के चरणानुसार जन्म नाम का प्रथम वर्ण
राशि / नक्षत्र चरण १ २ ३ ४
मेष / अश्विनि अ अ अ अ
मेष / भरणी आ आ आ आ
मेष / कृतिका इ
१ २ ३ ४
वृष / कृतिका इ ई ई
वृष / रोहिणी उ उ ऊ ऊ
वृष / मृगशिर्ष ऋ ऋ
१ २ ३ ४
मिथुन/ मृगशिर्ष ऋ ऋ
मिथुन/ आर्द्रा ए ए ऐ ऐ
मिथुन/पुनर्वसु ओ ओ औ
१ २ ३ ४
कर्क / पुनर्वसु औ
कर्क / पुष्य अं अं अः अः
कर्क / आश्लेषा क क ख ख
१ २ ३ ४
सिंह / मघा ग ग घ घ
सिंह/पुर्वाफाल्गुनि च च छ छ
सिंह/उत्तराफाल्गनि ज
१ २ ३ ४
कन्या/उत्तराफाल्गुनि ज झ झ
कन्या / हस्त ट ट ठ ठ
कन्या / चित्रा ड ड
१ २ ३ ४
तुला / चित्रा ढ ढ
तुला / स्वाती त त थ थ
तुला / विशाखा द द ध
१ २ ३ ४
वृश्चिक/ विशाखा ध
वृश्चिक/ अनुराधा न न न न
वृश्चिक/ ज्यैष्ठा प प फ फ
१ २ ३ ४
धनु / मुल ब ब भ भ
धनु / पुर्वाषाढ़ा म म म म
धनु / उत्तराषाढ़ा य
१ २ ३ ४
मकर/ उत्तराषाढ़ा य य य
मकर / श्रवण र र र र
मकर / धनिष्ठा ल ल
१ २ ३ ४
कुम्भ / धनिष्ठा ल ल
कुम्भ / शतभिषा व व व व
कुम्भ / पुर्वाभाद्रपद श श ष
१ २ ३ ४
मीन / पुर्वाभाद्रपद ष
मीन / उत्तराभाद्रपद स स स स
मीन / रेवती ह ह ह ह
मात्रा लगाने की विधि / नियम --
प्रथम एवम् त्रतीय चरण में मुल स्वर हैं। द्वितीय और चतुर्थ चरण में आ से औ तक की मात्रा वाले अक्षर जन्मनाम का प्रथमाक्षर रहेगा।
जिन नक्षत्रों में प्रथम और त्रतीय चरण में अलग अलग वर्ण हो उनमें द्वितीय चरण में प्रथम चरण के वर्ण में और चतुर्थ चरण में त्रतीय चरण के वर्ण में ००ं-००' से ००ं-२०' तक आ की मात्रा ा की मात्रा लगायें। तदनुसार ही आगे भी ००ं-२१' से ००-४०' तक इ की मात्रा ि की मात्रा लगायें। ००ं-४१' से ०१ं-००' तक ई की मात्रा ी ।०१ं-०१' से ०१ं-२०' तक ु की मात्रा।०१ं-२१' से ०१ं-४०' तक ऊ की मात्रा ू की मात्रा।०१ं-४१' से ०२ं-००' तक ऋ की मात्रा ृ की मात्रा।०२ं-०१' से ०२ं-२०' तक ए की मात्रा े की मात्रा।०२ं-२१ से ०२ं-४०' तक ऐ की माात्रा ै की मात्रा। ०२ं-४१' से ०३ं-००' तक ओ की मात्रा ो । ०३ं-००' से ०३ं-२०' तक औ की माात्रा ौ की मात्रा लगाकर नाम का प्रथमाक्षर रखें।
जबकि, जिन नक्षत्रों में चारों चरणों में एक ही व्यञ्जन हो वहाँ प्रथम एवम् द्वितीय चरण में मुल वर्ण से नाम का प्रथमाक्षर रहेगा।जबकि, तृतीय और चतुर्थ चरण में ००ं-००' से ००ं-४०' तक ा की मात्रा लगायें। तदनुसार ही आगे भी ००ं-४१' से ०१-२०' तक ि की मात्रा लगायें। ०१ं-२१' से ०२ं-००' तक ई की मात्रा ।०२ं-०१' से ०२ं-४०' तक ु की मात्रा । ०२ं-४१' से ०३ं-२० तक ू की मात्रा।०३ं-२१' से ०४ं-००' तक ृ की मात्रा।०४ं-०१' से ०४ं-४०' तक े की मात्रा।०४ं-४१ से ०५ं-२०' तक ै की मात्रा। ०५ं-२१ से ०६ं-००' तक ो की आत्रा । और , ०६ं-०१' से ०६ं-४०' तक ौ की मात्रा लगाकर नाम का प्रथमाक्षर रखें।
नाम की संस्कृत, / हिन्दी या मराठी वर्तनी के अक्षरों के अंक।
जन्मसमय के वेदिक मास के गतांश अर्थात सायन सुर्य के गतांश का ईकाई अंक को मूलांक माना जायेगा और जन्म लग्न के राशि/ नक्षत्र चरण के वर्ण पर रखा जन्मनाम जो नाम शासकीय कार्यों में/ स्कुल में लिखवाया जाना हो उस नाम के साथ उपनाम (सरनेम) सहित नाम के अंको को जोड़कर प्राप्त योगफल का ईकाई अंक भी मुलांक ही हो ऐसा नाम रखा जाये। ताकि, प्रचलित नाम अंकविद्या के अनुकूल होने से जीवन में कठिनाई ना आये।
0- अ, क, ट, प, ष, अः, क्ष, ऽ 0
1- आ, ख, ठ, फ, स, त्र , 1
2- इ, ई, ग, ड, ब, ह , 2
3- उ, ऊ, घ, ढ, भ, 3
4- ऋ, ङ, ण, म, 4
5- ए, च, त, य, 5
6- ऐ, छ, थ, र, ज्ञ, 6
7- ओ, ज, द, द, ल, ड़,ॉ 7
8- औ, झ, ध, व, ढ़ 8
9- अं, ञ, न, श, 9
0- अ, अः, क, ट, प, ष, ऽ 0
तथा जन्म नाम कीअंग्रेजी स्पेल्लिंग के अक्षरों के अंको का योग का योग या योग कें अंकों का योगांक ग्रेगोरियन केलेण्डर की सुर्योदय वाली दिनांक एक ही हो। क्योंकि राजकाज की भाषा अंग्रेजी होने के कारण अंग्रेजी में नाम लिखना हम भारतीयों की विवशता है।
किरो विधि अनुसार जन्म नाम कीअंग्रेजी स्पेल्लिंग के अक्षरों के अंक ।
1 = A. I. J. Q. Y = 1
2 = B. K. R. = 2
3 = C. G. L. S. = 3
4 = D. M. T = 4
5 = E. H. N. X = 5
6 = U. V. W = 6
7 = O. Z = 7
8 = F. P = 8
अंग्रेजी में संस्कृत वर्णमाला से आधे अक्षर हैं। वे भी वर्ण नही हैं।
शुन्य और नौ के लिए कोई अंक ही नही है। पर अंग्रेजी भारतीयों की कानुनी विवशता है।
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