*पिशाच योनि*
पिशाच और पिशाचिनियां, कर्ण पिशाचिनी, काम पिशाचिनी आदि भी होती हैं जिनकी साधनाओं का भी प्रचलन है। सिंहासन बत्तीसी में जो पुतलियां थीं वे सभी पिशाचिनी ही थीं। वेदों के अनुसार दैत्य और दानवों का विकृत रूप पिशाच हैं। प्रेत (शव) भक्षक पिशाच वेताल कहलाते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार पिशाच लोगों को गंधर्व, गुह्मक और राक्षसों के समान ही 'देवयोनि विशेष' कहा गया है।
सामर्थ्य की दृष्टि से इन्हें इस क्रम में रखा गया है- गंधर्व, गुह्मक, राक्षस एवं पिशाच।
ये चारों लोग विभिन्न प्रकार से मनुष्य जाति को पीड़ा देते हैं।
इनकी पूजा करने वाला इनके ही जैसा हो जाता है।
पिशाच राक्षसों और मानवों के साथ और पितरों के विरोधी थे। वैताल प्रेत (शव) भक्षक है।
*पिशाच जाती जो वर्तमान में पठान भी कहलाती है।*
पौराणिक सन्दर्भ ----
गृहीत्वा तु बलं फाल्गुन: पांडुनंदन: दरदान् सह काम्बौजैरजयत् पाकशासिनि:।' [महाभारत, सभापर्व, 27/ 23]
महाभारत के सभापर्व, 27/ 23 केअनुसार अर्जुन ने दिग्विजय यात्रा में दरद देश पर विजय प्राप्त की थी। इसी दरद देश में पिशाच जाती निवास करती थी। जो महाभारत युद्ध में पांडवों की ओर से लड़े थे। महाभारत में दरद के साथ ही काम्बोज (ताजिकिस्तान) का भी वर्णन आया है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि, यह दरद देश काम्बोज देश के निकट था। अर्थात किर्गिज़स्तान ही दरद देश हो सकता है। मार्कंडेय पुराण में वर्णित दरद प्रदेश उत्तरी कश्मीर और दक्षिणी रूस के सीमांत पर स्थित गिलगित और यासीन का इलाका दर्दिस्थान कहलाता है इस दरद देश की राजधानी दरतपुरी थी। विष्णु पुराण में भी दरद देश का उल्लेख है। संस्कृत साहित्य में 'दरद' और 'दरत' दोनों ही रूप मिलते हैं। तथा टॉलमी तथा स्ट्रेबो ने भी दरदों का वर्णन किया है।
महाभारत, भीष्मपर्व, 50/50 के अनुसार--
द्रौपदेयाभिमन्युश्च सात्यकिश्च महारथ:,
पिशाचादारदाश्चैव पुंड्रा: कुंडीविषै: सह'।
महाभारत के अनुसार पिशाच जाती अनार्य तथा असभ्य जातियों में से एक थी ।
कुछ विद्वानों ने 'दरिद्र' शब्द से 'दरद' से ही व्युत्पन्न माना है। और उनके अनुसार यह शब्द दरदवासियों की हीनदशा का द्योतक था।
मूल निवास और प्रवास ---
पिशाच रुस के केस्पियन सागर क्षेत्र ताजिकिस्तान और चीन के शिंजियांग स्वायत्तशासी क्षेत्र उइग़ुर ख़ाङ्नत आदि के सीमांत प्रदेश, ,ईरानी बलोचिस्तान के कजान ख़ानत या ख़ाङ्नत, और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्रों,अफगानिस्तान का पाकिस्तान से लगा भाग नूरीस्तान ,पाकिस्तानी बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा,और भारत के पश्चिमोत्तर अर्थात आधूनिक नूरीस्तान के निवासी थे। इसी क्षेत्र में पिशाचों का दरद देश था।
सांस्कृतिक इतिहासकार मानते हैं कि, जाता है कि,प्रजापति कश्यप के साथ आये भैरव उपासक शैव मतावलम्बी पिशाच लोग रूस के कैस्पियन क्षेत्र, अफगानिस्तान और भारत के पश्चिमोत्तर, बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्रों से अर्थात आधूनिक नूरीस्तान से आकर दक्ष प्रजापति (द्वितीय) के राज्य क्षेत्र भारत के पश्चिमोत्तर, उत्तरी कश्मीर (गिलगित और यासीन का क्षेत्र), कश्मीर, पंजाब और हरियाणा, सिंध नदी के कोहिस्तान के पश्चिम में स्वातनदी का कोहिस्तान में बस गये थे।
कश्यप पहले दक्ष प्रजापति (द्वितीय) के दमाद बने, बाद में प्रजापति भी बने| इतिहासकारों ने इस घटना का समय निर्धारण लगभग 1700 ईसापूर्व किया है। अर्थात आजके 3700 वर्ष पहले। जो उचित नही लगता।
【सुचना --- स्वायम्भूव मन्वन्तर में यह भाग दक्ष प्रजापति का राज्य क्षेत्र था। चुँकि दक्ष प्रजापति द्वितीय भी लगभग इसी क्षेत्र के शासक रहे। दक्ष प्रजापति द्वितीय ने अपनी पुत्रियों का विवाह केस्पियन सागर क्षेत्र में तप करने वाले कश्यप ऋषि से कर दिया तो कश्यप ऋषि की सन्तान कश्मीर में बस गई। 】
अर्थात पिशाच पहले से सिंध नदी के कोहिस्तान के पश्चिम में स्वातनदी का कोहिस्तान , उत्तरी कश्मीर (गिलगित और यासीन का क्षेत्र),भारत के पश्चिमोत्तर में बस गये थे।
आधुनिक पशाई कश्मीरी लोग संभवत: इन्हीं के वंशज हैं।
कर्नाटक के मैंगलूरु के कुछ पै या पाई ब्राह्मण लोग अपने आपको पैशाची लोगों का वंशज कहते हैं, इसी तरह ओडिसा के पाईक, आदिवासी पैगा या बैगा को भी पैशाची लोगों का वंशज कहते हैं।
धर्म और धार्मिक विचारधारा ---
पिशाच लोग इरानी मीढ संस्कृति के श्रमण उग्र शैव थे और शिव व भैरव के उपासक थे| यह सम्प्रदाय भारत के नाथ सम्प्रदाय से मिलता जुलता है। उन्नीसवी सदी के अंत तक नूरिस्तानियों का धर्म भारत के नाथ पन्थ के समान भैरव उपासक रौद्र शैव मत के समान इरानी मीढ संस्कृति का अति-प्राचीन हिन्द-ईरानी धर्म था।पिशाच कबीलाई गणों मे रहते थे।गण’ या ‘घन’ का शब्द का बिगडा रूप है “घान” या ‘खान’ शब्द बना है। जो पठानों में आज तक प्रचलित है।
सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था ---
पिशाचों में क्षत्रप आधारित गणतंत्र का प्रचलन था
'क्षत्रप' शब्द का प्रयोग ईरान से शु्रू हुआ। यह राज्यों के मुखिया के लिए प्रयुक्त होता था। दारा (डेरियस या दरियुव्ह) के समय में राज्यपालों के लिए यह उपाधि प्रयुक्त होती थी। यही बाद में महाक्षत्रप कही जाने लगी। भारत में क्षत्रप शब्द आज भी राजनीति में प्रयोग किया जाता है।
नूरिस्तान को इर्द-गिर्द के मुस्लिम इलाक़ों के लोग "काफ़िरिस्तान" के नाम से जानते थे क्योंकि ये नाथ सम्प्रदाय जैसे या ईरान की मीढ संस्कृति जैसे शैव धर्मी थे। सैंकड़ों-हज़ारों वर्षों तक यहाँ के लोग स्वतन्त्र रहे और यहाँ तक कि पंद्रहवी सदी के आक्रमणकारी तैमुरलंग को भी हरा दिया।
१८९५-९६ में अफ़्ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान ख़ान ने आक्रमण कर के यहाँ क़ब्ज़ा जमा लिया और यहाँ के लोगों को मुस्लिम बनने पर विवश किया। उसी समय इस इलाक़े का नाम बदलकर 'नूरिस्तान' (यानि 'प्रकाश का स्थान') रख दिया गया।
【 पिशाच शब्द का ही रुपान्तरण पठान होगया।】
नूरिस्तान प्रान्त की सरहदें, जो कि अफगानिस्तान का एक भाग है, पाकिस्तान से लगती हैं। यहाँ के लगभग ९५% लोग नूरिस्तानी हैं।
नूरिस्तानी समुदाय पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के नूरिस्तान इलाक़े में रहने वाली एक जाती है। नूरिस्तान के लोग अपने सुनहरे बालों, हरी-नीली आँखों और गोरे रंग के लिए जाने जाते हैं।
पहले पिशाच भैरव उपासक शैवशाक्त सम्प्रदाय के मतावलम्बी थे और परम्परागत शैव शामनिक (Shamanic) (श्रमण) संस्कृति का पालन करते थे। परवर्ती काल मे पिशाचों में महायान बौद्ध धर्म अङ्गीकार कर लिया था।
【सुचना --- भाषाशास्त्र पर आधारित इस भाग में विकिपीडिया से मिली जानकरियों का भी समावेश हुआ है। 】
भाषा ---
पश्चिमी नृवंशशास्त्रियों (Western Anthropologist) द्वारा बाहरी पर्यवेक्षक की तरह मंगोलों, तुर्कों और इनके पडोस के तुंगुसी – समोयेड भाषा-परिवार (Tungusic and Samoyedic-speaking peoples) के लोगों धर्म के अध्ययन के समय पहली बार ‘शामनिक (श्रमण) संस्कृति’ शब्द का प्रयोग किया
शामनिक (Shamanic) (श्रमण) व्यवहार/ संस्कृति की मान्यता अनुसार वे समाधि में उतरकर अध्यात्म द्वारा पारलोकिक दैवीय शक्तियों को भूमि पर उतार लाते है। (यह परम्परा बौद्धों में भी है। और थियोसोफिकल सोसायटी ने जे कृष्णमूर्ति पर भी यह प्रयोग किया था। जो असफल हो गया।)
शामन (Shaman) (श्रमण) समाधि अवस्था में शुभ आत्माओं अशुभ आत्माओं (पिशाचों) को वश में कर के अनुष्ठानों द्वारा इनसे भविष्य-कथन और चिकित्सा करते हैं।
शामन (Shaman) (श्रमण) शब्द उत्तरी एशिया के तुंगुसी – एवेंकी भाषा (Tungusic Evenki language of North Asia) से निकला है।
मिर्सिआ एलियादे (Mircea Eliade) ने लिखा है तुंगुसी – एवेंकी भाषा (Tungusic Evenki language of North Asia) से निकल कर संस्कृत में मिलता हुआ यह शब्द ‘श्रमण’ है। अर्थात चलते रहने वाले (wandering) जङ्गम साधुओं को श्रमण कहते है। श्रमण संस्कृति बौद्ध धर्म के साथ मध्य एशिया के कई देशों में पहूँची।
इस देश के निवासियों की भाषा 'पैशाची' नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें प्रतिष्ठान, (पेठण) महाराष्ट्र निवासी गुणाढ्य की वृहत्कथा लिखी गयी थी। पैशाची को 'भूत भाषा' भी कहा गया है। महाभारत के अनुसार भी पैशाची/ भूत भाषा का क्षेत्र भारत का पश्चिमोत्तर प्रदेश और पश्चिमी कश्मीर था। कहा जाता है कि गुणाढ़्य पिशाच देश (पश्चिमी कश्मीर) में प्रतिष्ठान से जाकर बसे थे।
बुरूशस्की भी पिशाच वर्ग की भाषा है। बुरुशस्की एक भाषा है जो पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र के उत्तरी भागों में बुरुशो समुदाय द्वारा बोली जाती है।
यह एक भाषा वियोजक (language isolate) है, यानि विश्व की किसी भी अन्य भाषा से इसका कोई ज्ञात जातीय सम्बन्ध नहीं है; और यह अपने भाषा-परिवार की एकमात्र ज्ञात भाषा है।
सन् २००० में इसे हुन्ज़ा-नगर ज़िले, गिलगित ज़िले के उत्तरी भाग और ग़िज़र ज़िले की यासीन व इश्कोमन घाटियों में लगभग ८७,००० लोग बुरूशस्की भाषा और बोली बोलते थे।
बुरूशस्की भाषा जम्मू और कश्मीर राज्य के श्रीनगर क्षेत्र में भी लगभग ३०० लोग बोलते हैं।
खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र के शाहबाजगढी और मनसेहरा में सम्राट अशोक के शिलालेख खरोष्ठी लिपि और पैशाची भाषा में मिले हैं
पाकिस्तान के पंजाब में भी खरोष्ठी लिपि और पैशाची भाषा में शिलालेख मिले हैं
चीन के शिंजियांग स्वायत्तशासी क्षेत्र उइग़ुर ख़ाङ्नत (Xinjiang Uyghur Autonomous Region) के खोतान में भी खरोष्ठी लिपि और पैशाची भाषा में शिलालेख मिले हैं
भारतीय भाषाओं और अफगानिस्तान का आपसी संबंध बहुत पुराना और एतिहासिक है।
अफगानिस्तान और बलुचिस्तान की एक पुरानी भाषा द्रविड़ परिवार की ब्राहुई भाषा है। कुछ भाषाशास्त्री इसे ब्राह्मी भाषा भी मानते हैं। किन्तु इसकी लिपि ब्राह्मी लिपि से भिन्न है।
निष्कर्ष ---
देवताओं, असुरों,दैत्यों, दानवों, यक्षों, गन्धर्वों, राक्षसों के के ही समान पिशाच भी एक योनि विशेष भी है और उनके द्वारा प्रेरित मानवीय संस्कृति भी है।
जैसे कश्यप ऋषि की सन्तानों ने स्वर्गीय देवताओं द्वारा स्थापित प्रेरित संस्कृति पामिर, तिब्बत, कश्मीर में देेव संंस्कृति स्थापित की। बलुचिस्तान और अफगानिस्तान में गन्धर्वों ने गन्धर्व संस्कृति स्थापित की। असिरिया (इराक) में असुर संस्कृति स्थापित की। सिरिया में नागों ने सूर संस्कृति स्थापित की। गर्डेशिया में गरुड़ ने गारुड़ी संस्कृति स्थापित की। पुर्वी चीन में यक्षों ने (सर्वभक्षी थुलथुले शरीर वाली) यक्ष संस्कृति स्थापित की मिश्र और सिनाई , लेबनान के आसपास दैत्यों ने दैत्य संस्कृति स्थापित की। डेन्यूब नदी के आसपास युगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, से जर्मनी तक के क्षेत्रों में दानवों ने दानवी संस्कृति स्थापित की। और अफ्रीका और अमेरिका महाद्वीप (बोलिविया) में राक्षसों ने रक्षाकरनें वाली राक्षस संस्कृति स्थापित की जिसे रावण नें क्रुरता का पाठ पढ़ाकर पथभ्रष्ट करदिया।
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