ब्रह्मलोक, और वैकुण्ठ के भाग साकेत और गौलोक तथा वैकुण्ठ को छोड़कर 1 भूः , 2 भुवः, 3 स्वः, 4 महः, 5 जनः, 6 तपः,7 सत्यम् और सप्त अधोलोक--- 8 अतल , 9 वितल ,10 सुतल , 11 रसातल ,12 तलातल , 13 महातल और 14 पाताल नामक चौदह भुवन / चौदह लोक की न्यायापालिका धर्म, धर्मराज अर्थात यम और चित्रगुप्त हैं।
धर्म, धर्मराज यम और चित्रगुप्त तीनों अलग अलग देवता हैं।
दक्ष प्रथम और उनकी पत्नी प्रसुति का जोड़ा,मरीचि और धर्म तीनों ही प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान थे।
प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान दक्ष प्रथम और उनकी पत्नी प्रसुति का जोड़ा हुआ।
दक्ष प्रथम और उनकी पत्नी प्रसुति की चौवीस कन्या सन्तान हुई।
धर्म नामक देवता प्रजापति ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। दक्ष प्रथम और प्रसुति की चौवीस कन्याओं में से तेरह पुत्रियाँ धर्म की पत्नी हैं।
महर्षि मरीचि भी प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान थे। प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष प्रथम और प्रसुति की पुत्री सम्भूति का विवाह मरीचि से हुआ। मरीचि और उनकी पत्नी सम्भूति के पुत्र महर्षि कश्यप हुए।
प्रचेताओं के पुत्र दक्ष (द्वितीय) की पत्नि असिक्नि की साठ पुत्रियों में से तेरह पुत्रियों का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ।
महर्षि कश्यप नें केस्पियन सागर (कश्यप सागर) से कश्मीर तक कई स्थानों पर तप किया ।
महर्षि कश्यप नें कश्यप सागर से कश्मीर तक के भिन्न भिन्न स्थानों पर अलग - अलग पत्नी से अलग अलग सन्ताने उत्पन्न की। ये सन्तानें विभिन्न प्रजातियों की आदि पुरुष कहलाई।
महर्षि कश्यप की इन सन्तानों से ही अलग अलग संस्कृतियाँ उत्पन्न हुई। इतिहास में ये सब सभ्यता/ संस्कृतियाँ सिथियन नाम से जानी जाती है।
कश्यप - अदिति के पुत्र द्वादश आदित्य हुए। द्वादश आदित्यों में विवस्वान और विश्वकर्मा त्वष्टा भी हैं। विश्वकर्मा त्वष्टा और रचना की पुत्री सरण्यु है।सरण्यु का विवाह विवस्वान से हुआ।
विवस्वान और सरण्यु की सन्तान यम और यमी (यमुना नदी) हुई। तथा
विवस्वान और सरण्यु के ही पुत्र श्राद्धदेव (सातवें और वर्तमान मनु) वैवस्वत मनु कहलाते हैं।उनकी की पत्नी श्रद्धा है।
सरण्यु की ही छाँया विवस्वान की दुसरी पत्नी कही गई है। उनकी सन्तान शनि और मान्दी (भद्रा) हैं। (कुछ स्थानों पर मान्दी और भद्रा अलग अलग मानी गई है।)
सरण्यु का ही तीसरा रूप अश्विनी के विवस्वान से दस्र और नासत्य नामक दो पुत्र हुए जो अश्विनी कुमार कहलाते हैं।
यम, यमी (यमुना), शनि, मान्दी, भद्रा, दस्र और नासत्य ये सब वैवस्वत मन्वन्तर में जन्मी प्रथम सन्तान कहलाते हैं।
दक्ष (द्वितीय) और असिक्नि पुत्रीअदिति से महर्षि कश्यप की आठ सन्तान और हुई वे अष्टादित्य कहलाती है।
इन अष्टादित्यों में से एक मार्तण्ड हमारे सुर्य देव हैं। मार्तण्ड के प्रकाश सेआलोकित लोक मृत्युलोक कहलाता है।
मृत्यलोक के शासक को धर्मराज कहते हैं। जिनके पास राजदण्ड के रूप में उनकी शक्ति मृत्यु रहती है।
यम की मृत्यु सर्वप्रथम हुई। मार्तण्ड नें सर्वप्रथम मरनें वाले यमराज को मृत्यु उपरान्त धर्मराज के पद पर अभिषिक्त किया। अर्थात मृत्यलोक का शासक धर्मराज के पद पर नियुक्त किया। उनके सहायक चित्रगुप्त जी हैं।
इस प्रकार धर्म, धर्मराज (यम), और चित्रगुप्त तीनों अलग अलग देवता हैं।
यम धर्मराज के रूप में धर्मपुर्वक मृत्यलोक पर शासन करते हैं। उनकी शक्ति मृत्यु है। उनके वाहन का आकार प्रकार महिष (भेंसे) के समान है।
अष्टादश लोक ---
जितनी सृष्टि उतने ही आयाम कहा जा सकता है। या ठीक इसका उलट जितनी सृष्टियाँ उतने आयाम भी कहा जा सकता है।
जहाँ पिण्ड हो, भूतल हो वह भुवन कहलाता है तथा जहाँ जीवन का आलोक होता है उसे लोक कहते हैं। सभी भुवन में लोक नही होते किन्तु सभी लोक किसी न किसी भुवन में ही होते है।
जैसे मृत्युलोक, भू में है। नागलोक अतल में बतलाया गया है।
एक ही सृष्टि में कई लोक हो सकते हैं।
जैसे हम जिस सृष्टि में रह रहे हैं उसमें ही सप्त उर्व लोक - 1 भूः , 2 भुवः, 3 स्वः, 4 महः, 5 जनः, 6 तपः,7 सत्यम्। ये भूः फिर भूमि से ध्रूव तारे की ओर आगे बढ़ते जाने पर आते जाते हैं। उक्त सप्त लोको के उर्ध्व ( उत्तर में) इन सप्त लोकों के अलावा 8 ब्रह्मलोक , 9 साकेत, 10 गोलोक, 11 वैकुण्ठ आदि लोक और भी है।
सप्त अधोलोक --- 1 अतल ,2 वितल ,3 सुतल ,4 तलातल ,5 महातल ,6 रसातल और 7 पाताल।
सप्त उर्व लोक --- 1 भूः , 2 भुवः, 3 स्वः, 4 महः, 5 जनः, 6 तपः,7 सत्यम् और सप्त अधोलोक--- 8 अतल , 9 वितल ,10 सुतल , 11 तलातल ,12 महातल , 13 रसातल और 14 पाताल लोक हैं। इनके अलावा 15 ब्रह्मलोक , 16 साकेत, 17 गोलोक, 18 वैकुण्ठ आदि लोक और भी है। अतः कुल 18 लोक हुए।
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