राघव आयंगर की बहुमूल्य खोजों के आधार पर यह मान लिया गया है कि तमिल कवि कम्बन द्वारा रचित इरामवतारम् ११७८ ई. में समाप्त हुआ और इसका प्रकाशन ११८५ में हुआ। इरामावतारम् जिसे हिन्दी में रामावतारम या कम्ब रामायण कहते हैं उसके आधार पर रचित तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस पठन-पाठन की परम्परा के कारण कई भ्रम प्रचलित हो गये।
जैसे-
1 गोतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ इन्द्र ने छल पुर्वक सम्बन्ध बनाए। जबकि, अहिल्या इन्द्र पर आसक्त थी। उन्होंने स्वयम् कहा था कि, आओ इन्द्र, जबतक ऋषि सन्ध्या करके लौटे इसके पहले तुम मुझे सन्तुष्ट कर निकल जाओ, यदि ऋषि तुम्हें देख लेंगे तो शाप दे देंगे।
2 अहिल्या पाषाण की हो गई थी, श्री राम ने पाषाण बनी अहिल्या जी को अपने पेर छुआए जिससे वे पुनः जीवित नारी बन गई।
जबकि सच यह है कि, गोतम ऋषि ने उनके उद्धार की व्यवस्था करते हुए कहा था कि, (केवल प्राणवायु लेकर) निराहार रहकर पाषाणवत स्थिर रहकर (अचल रहकर) पर प्रायश्चित करना और जब श्री रामचन्द्र जी इधर से गुजरेंगे, उनका आतिथ्य सत्कार करने पर तुम्हारा प्रायश्चित पूर्ण होगा। जब महर्षि विश्वामित्र जी के साथ श्री रामचन्द्र जी उधर से गुजरे तब, सूनसान आश्रम के विषय में पुछने पर महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री रामचन्द्र जी को पुरा प्रकरण सुनाया और अहिल्या जी के उद्धार के लिए आश्रम में ले गये। यज्ञभस्म लपेटे, अचल निराहार रहकर तपस्या करती हुई अहिल्या जी के चरणों का स्पर्श कर श्री रामचन्द्र जी ने उन्हें प्रणाम किया, अहिल्या जी ने प्रसन्न होकर श्री रामचन्द्र जी का आतिथ्य सत्कार किया। तब उनका प्रायश्चित पूर्ण हुआ।
3 सीता स्वयम्वर - वास्तव में विश्वामित्र जी श्री रामचन्द्र जी और लक्षण जी को जनक जी के यहाँ शिव धनुष (पिनाक) के दर्शन कराने ले गये थे। उस समय वहाँ कोई स्वयम्वर नहीं हो रहा था।
जनक जी ने सीता जी के विवाह हेतु पिनाक शिव धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ाने वाले से ही सीता जी का विवाह करने की प्रतिज्ञा सुनाई एवम् कहा कि, पहले कई राजा असफल होने पर रुष्ट होकर सामुहिक रूप हमला कर चुके हैं, तब देवलोक की सहायता से उनसे सामना कर विजयी हुआ था। लेकिन आजकल कोई प्रतापी इस धनुष पर प्रत्यञ्चा नहीं चढ़ा पाया। अधिकांश तो उठा भी नहीं पाते हैं।
दर्शनार्थ एक गाड़ी में सन्दूक में रखे उस धनुष को बहुत से सेवक खींच कर सभा मे लाये। तब विश्वामित्र जी की आज्ञा पर श्री रामचन्द्र जी ने धनुष को नमस्कार कर सहज ही उठाया और उसपर प्रत्यञ्चा चढ़ाकर टंकार की तो वह धनुष टूट गया।
तब प्रसन्न जनक जी ने रामचन्द्र जी से सीता जी का विवाह प्रस्ताव रखा। जिसे महर्षि विश्वामित्र जी और श्री रामचन्द्र जी ने स्वीकार किया एवम् लक्ष्मण जी ने भी प्रसन्नता व्यक्त की।
4 श्रीरामचन्द्र जी और परशुराम जी का संवाद - लौटते समय श्री परशुराम जी सामने आ गये और नाराज होने पर श्री रामचन्द्र ने तर्क दिया कि, धनुष पुराना होने के कारण टंकार देने पर टूट गया।
तब श्री परशुराम जी ने श्री रामचन्द्र जी को वैष्णव धनुष देते हुए उसपर प्रत्यञ्चा चढ़ाने को कहा। लेकिन जैसे ही परशुरामजी ने श्री रामचन्द्र जी के हाध में वैष्णव धनुष दिया वैसे ही परशुरामजी के शरीर से अवतारत्व का तेज निकल कर श्री रामचन्द्र जी के शरीर में समा गया। श्री परशुराम जी अब साधारण ऋषि मात्र रह गये और श्री रामचन्द्र जी को अवतार हो गये।
5 वानर अर्थात वनवासी जनजाति के स्थान पर बन्दर मानना।
जिसके प्रमाण आप पढ़ चुके हो।
5 रामेश्वर ज्योतिर्लिंग श्री रामचन्द्र जी द्वारा स्थापित नहीं है। श्री रामचन्द्र जी कभी तमिलनाडु गये ही नहीं।इस विषय में वाल्मीकि रामायण के श्लोक संख्या और गीता प्रेस गोरखपुर का अनुवाद के आधार पर विस्तृत ब्लॉग भेज चुका हूँ। पुनः प्रेषित कर रहा हूँ।
6 रावण की लङ्का लक्ष्यद्वीप में न कि, सिंहल द्वीप (श्रीलंका)
इस विषय में वाल्मीकि रामायण के श्लोक संख्या और गीता प्रेस गोरखपुर का अनुवाद के आधार पर विस्तृत ब्लॉग भेज चुका हूँ। पुनः प्रेषित कर रहा हूँ।
7 केरल के नीलगिरी के कण्णूर या कोझिकोड से लक्ष्यद्वीप के किल्तान द्वीप तक लगभग तीन सौ किलोमीटर का रामसेतु नल के विश्वकर्म (स्थापत्य वेद/ शिल्पवेद) के ज्ञान (सिविल इंजीनियरिंग) के बल पर समुद्र मे तेरते लम्बे पेड़ों की जाली बना कर उसपर शिलाएँ जमाकर उसपर मिट्टी डालकर बनाया गया था। न कि, तेरते पत्थरों से।
इस विषय में वाल्मीकि रामायण के श्लोक संख्या और गीता प्रेस गोरखपुर का अनुवाद के आधार पर विस्तृत ब्लॉग भेज चुका हूँ। पुनः प्रेषित कर रहा हूँ।
8 रावण वध अमान्त फाल्गुन पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या की सन्धि काल में हुआ था, न कि, आश्विन शुक्ल दशमी को।
इस विषय में पहले भी वाल्मीकि रामायण के सन्दर्भ सहित सप्रमाण जानकारी भेज चुका हूँ। और पुनः प्रेषित है।
9 श्री रामचन्द्र जी वनवास पूर्ण कर चैत्र शुक्ल पञ्चमी को चित्रकूट पहूँचे। उसी दिन या दुसरे दिन नन्दिग्राम पहूँचे, फिर नन्दिग्राम से अयोध्या चैत्र शुक्ल षष्ठी को पहूँचे। न कि, अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली) को।
फिर चैत्र शुक्ल नवमी पुष्य नक्षत्र के दिन श्री रामचन्द्र जी का राज्याभिषेक हुआ था।
10 वाल्मीकि रामायण का उत्तर काण्ड महर्षि वाल्मीकि जी के शिष्य भरद्वाज जी की रचना है।
11 गर्भवती सीता जी को वाल्मीकि आश्रम में छोड़ने का निर्णय गुप्तचरों की सुचना के आधार पर लिया गया था। गुप्तचरों की सुचना के अनुसार रावण के अधीन लंका में रही सीता जी को पटरानी बनाना धर्म-विरुद्ध आचरण माना गया। इसलिए सीताजी का त्याग किया। न कि, केवल एक धोबी के उलाहने पर।
12 महर्षि वाल्मीकि प्रणेताओं के पुत्र थे न कि, डाकु बाल्या भील।
हो सकता है कि, यह घटना महर्षि वाल्मीकि के किसी अन्य जन्म मे घटित हुई हो।
13 कैकई और भरत का चरित्र और उनका श्री रामचन्द्र जी के प्रति प्रेम वैसा नहीं था जैसा रामचरितमानस में लिखा है।
भरत ने जब अयोध्या लौटने पर जनता का अपने प्रति घोर घृणा भाव देखा तब उनका हृदय परिवर्तन हुआ।
दशरथ जी का कैकई के प्रति अधिक लगाव होने के कारण माता कौशल्या और श्री रामचन्द्र जी को कैकई और भरत के सामने दब कर रहना पड़ता था।