पाँच यम (धर्म) की प्राप्त्यर्थ पाँच नियमों में से एक है स्वाध्याय। उस स्वाध्याय के अन्तर्गत मन्त्रध्यान भी एक भाग है।
लेकिन न यही एकमात्र साधन है, न अन्तिम साधन है।
यह भी साधना का एक अङ्ग है।
जैसे षड रस में कोई केवल एक ही रस अपना ले तो गिने दिनों में बिमार होना निश्चित है।
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