इसलिए, महर्षि कुमारील भट्ट, भगवान आदि शंकराचार्य जी, महर्षि दयानन्द सरस्वती जी और आर्यसमाज, स्वामी रामसुखदास जी महाराज, अखण्डानन्द सरस्वती महाराज जी, शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द जी सरस्वती, हंसानन्द महाराज जी, और प्रेमानन्द जी महाराज सबका समर्थन करता हूँ।
जो क्रियाओं को ही आधार मानता है, तन्त मार्ग का अनुसरण करता है, महर्षि कपिल का सांख्य दर्शन का पुरुष- प्रकृति वाला द्वैत हो, ईश्वर कृष्ण का सांख्यकारिकाओं वाला द्वैत / त्रेत हो, महर्षि दयानन्द सरस्वती - आर्य समाज का त्रेत का भी विरोध करता हूँ, तो स्वामी निम्बार्काचार्य जी का भेदाभेद वाला त्रेत हो, वसुगुप्त का भैरव तन्त्र का त्रिक हो, अभिनव गुप्त के प्रत्यभिज्ञा दर्शन का त्रिक हो, वल्लभाचार्य जी का शुद्धाद्वेत का त्रेत हो, स्वामी रामानुजाचार्य जी का विशिष्टाद्वैत का त्रेत हो या माध्वाचार्य जी का द्वैत दर्शन वाला त्रेत हो सभी त्रेत दर्शन का विरोध ही करता हूँ। लेकिन इन आचार्यों के प्रति श्रद्धालु हूँ। और ऐसा मानता हूँ कि, वेद विरोधी, सनातन धर्म विरोधी मत, पन्थ और सम्प्रदायों की ओर आकृष्ट इन विचारों वाले जन समुह को वेदों और सनातन धर्म में ही उनके विचारों के अनुकूल मत,पन्थ, सम्प्रदाय देकर बाहर जाने से रोका। क्योंकि यहाँ से वेदों की ओर लौटना सम्भव है, लेकिन आसुरी मत पन्थ, सम्प्रदायों - तन्त्र में या ताओ, कुङ्गफु, जैन, बौद्ध, झेन, शिन्तो, जरथ्रुस्त के पारसी मत-पन्थ, और इब्राहीम के मत के सबाइन (शिवाई या साबई), दाउदी, सुलेमानी, यहुदी, इसाई, इस्लाम या बहाई पन्थ में गया व्यक्ति को लौटाना लगभग असम्भव है।
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