बुधवार, 7 जुलाई 2021

ब्राह्म धर्म के वैदिक शास्त्र,ब्राह्मण धर्म के ब्राह्मणारण्यकोपनिषद,दर्शन,सनातन धर्म के स्मार्त शास्त्र,रामायण, महाभारत,पुराणादि धर्मशास्त्र और आगम,तन्त्र,निबन्ध ग्रन्थ आदि हिन्दू धर्मशास्त्र

हमारे शास्त्रों को मुख्य रूप से तीन भागों में वर्णन किया जा सकता है।
1  वैदिक शास्त्र या श्रोत्रिय शास्त्र या
  ब्राह्म धर्मशास्त्र; -- वेदिक संहिताएँ, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, उपनिषद, चार उपवेद, छः वेदाङ्ग तथा षड दर्शन।
2  स्मार्त शास्त्र या आर्ष शास्त्र या सनातन धर्मशास्त्र; स्मृतियाँ,उप स्मृतियाँ, इतिहास ग्रन्थ - वाल्मीकि रामायण और महाभारत एवम् विष्णुपुराण आदि पुराण- उप पुराण,।
3 हिन्दू धर्मशास्त्र - आगम ग्रन्थ, तन्त्र, और कर्मकाण्ड एवम् धर्म निर्णयों के निबन्ध ग्रन्थ।

सर्वप्रथम ब्राह्म धर्म के वैदिक धर्मशास्त्रों का विवरण -
 1ऋग्वेद संहिता,
2 शुक्ल यजुर्वेद संहिता एवम् कृष्ण यजुर्वेद संहिता,
3 सामवेद संहिता और
4 अथर्ववेद संहिता।
5 वैदिक गाथाएँ,वैदिक इतिहास, वैदिक पुराण  वैदिक आख्यान और वैदिक व्याख्यान अब पूर्ण सुव्यवस्थित रूप से उपलब्ध नही है किन्तु कुछ भाग बिखरे हुए और खिल भाग के रूप में उपलब्ध भी है। जिससे कुछ कुछ ऐतिहासिक अनुमान लगाया जाता है किन्तु उनमें भी भाषा पूर्णरूपेण न समझनें वाले मतभेद व्यक्त करते हैं।

 *ब्राह्मण धर्म के धर्मशास्त्र --* 
*ब्राह्मण ग्रन्थ -* 
 *ऋग्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ* -
ऐतरेयब्राह्मण-(शैशिरीयशाकलशाखा)
कौषीतकि-(या शांखायन) ब्राह्मण (बाष्कल शाखा)

*यजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ* -
*शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ* - 
शतपथब्राह्मण-(माध्यन्दिनीय वाजसनेयि शाखा)
शतपथब्राह्मण-(काण्व वाजसनेयि शाखा)

*कृष्णयजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ* - 
तैत्तिरीयब्राह्मण
मैत्रायणीब्राह्मण
कठब्राह्मण
कपिष्ठलब्राह्मण

*सामवेदीय  ब्राह्मण ग्रन्थ* -
प्रौढ(पंचविंश) ब्राह्मण
षडविंश ब्राह्मण
आर्षेय ब्राह्मण
मन्त्र (या छान्दिग्य) ब्राह्मण
जैमिनीय (या तावलकर) ब्राह्मण

*अथर्ववेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ* - 
 *गोपथब्राह्मण* -  (पिप्पलाद शाखा और शौनक शाखा का) *गोपथब्राह्मण* 

*आरण्यक*--

*ऋग्वेदीय आरण्यक* --

ऐतरेय आरण्यक
कौषीतकि आरण्यक या शांखायन आरण्यक

*शुक्ल यजुर्वेदीय आरण्यक* --

वृहदारण्यक

*कृष्ण यजुर्वेदीय आरण्यक* --

तैत्तिरीय आरण्यक
मैत्रायणी आरण्यक

*सामवेदीय आरण्यक* --
तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
छान्दोग्य आरण्यक
*अथर्ववेदीय आरण्यक  उपलब्ध नहीं है।*

 *तृयोदश उपनिषद* - 

इन्ही ब्राह्मण आरण्यकों का अन्तिम भाग वेदान्त या ब्रह्मविद्या, ब्रह्मसूत्र, और उपनिषद कहलाते हैं। तेरह उपनिषद मुख्य हैं। 

*ऋग्वेदीय उपनिषद*
देव्युपनिषद् मूल संहिता का देवी सूक्त है। यह उपनिषद अथर्वेदीय भी माना जाता है। ऐसे ही बह्वृचोपनिषद् भी देवी सूक्तम का ही भाग है।
सौभाग्य लक्ष्म्युपनिषद् ऋग्वेद संहिता का श्री सूक्त है।
मुद्गलोपनिषद् ऋग्वेद का पुरुष सूक्त है।
1 *ऐतरेयोपनिषद * -    ऐतरेय आरण्यक के चौथे, पाँचवे और छटे अध्याय अर्थात    *ऐतरेयोपनिषद* और  

2 *कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्*  -    कौषीतकि आरण्यक या शांखायन (वाष्कल शाखा)  का अन्तिम भाग  *कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्* इसे *वाष्कलोपनिषद* भी कहते हैं।

*शुक्ल यजुर्वेद संहिता अध्याय 40* 
  3  *ईशावास्योपनिषद* -    शुक्ल यजुर्वेद संहिता माध्यन्दिन शाखा का चालिसवाँ अध्याय  *ईशावास्योपनिषद* है।
 यह शुक्ल यजुर्वेद की कण्व शाखा में भी थोड़े से अन्तर से उपलब्ध है।
 *शुक्ल यजुर्वेदीय शतपथ ब्राह्मण*  के *वृहद आरण्यक*  का उपनिषद -
 4 *वृहदारण्यकोपनिषद*   - शुक्ल यजुर्वेद के काण्वी शाखा के वाजसनेयी ब्राह्मण के अन्तर्गत आरण्यक भाग के वृहदाकार होनें के कारण  *वृहदारण्यकोपनिषद* नाम से प्रसिद्ध है।

*कृष्ण यजुर्वेदीय संहिता का उपनिषद* - 5 *श्वेताश्वतरोपनिषद* ।

*कृष्ण यजुर्वेदीय ब्राह्मणारण्यको के उपनिषद* -
  6 *कठोपनिषद* -   कृष्णयजुर्वेदीय कठ शाखा का  *कठोपनिषद* 
7 *तैत्तरीयोपनिषद* -    तैत्तरीय शाखा के तैत्तरीय आरण्यक के दस अध्यायों में से सातवें, आठवें और नौवें अध्याय अर्थात  *तैत्तरीयोपनिषद* कहलाता है।
 8 *मैत्रायणीयोपनिषद* -   मैत्रायणी आरण्यक का अन्तिम अध्याय *मैत्रायणीयोपनिषद* 

*सामवेदीय उपनिषद* -
 9 *केनोपनिषद* -   सामवेद के तलवाकार ब्राह्मण के तलवाकार उपनिषद जिसे जेमिनीयोपनिषद भी कहते हैं इसके प्रथम मन्त्र के प्रथम शब्द  केनेषितम् शब्द के कारण  *केनोपनिषद* नाम से प्रसिद्ध है ।
10 *छान्दोग्योपनिषद* -  सामवेद के तलवाकार शाखा के छान्दोग्य ब्राह्मण के दस अध्याय में से तीसरे अध्याय से दसवें अध्याय तक को  *छान्दोग्योपनिषद* कहते हैं।

*अथर्ववेदीय उपनिषद* -
 11  *प्रश्नोपनिषद* -    अथर्वेदीय पिप्पलाद शास्त्रीय ब्राह्मण के  प्रश्नोपनिषद एवम् 
12  *मुण्डकोपनिषद* -  अथर्ववेद की शौनक शाखा के  *मुण्डकोपनिषद*
 और 
13 *माण्डूक्योपनिषद्*  - अथर्ववेद की शौनक शाखा के  *माण्डूक्योपनिषद्*

 *उपवेद* भी चार हैं-

 *ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है* 
 (परन्तु सुश्रुत इसे अथर्ववेद से व्युत्पन्न मानते हैं),

 *यजुर्वेद का उपवेद  धनुर्वेद है।-* 
 (कुछ लोग अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।),

 *सामवेद का उपवेद गन्धर्ववेद  है।* तथा

 *अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद है।* 
 *परन्तु सुश्रुत इसे अथर्ववेद से व्युत्पन्न मानते हैं)।* 
(कुछलोग इसे स्थापत्य वेद भी कहते हैं।)


*ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद के रचनाकार - अश्विनी कुमार, ऋभुगण और भगवान धन्वन्तरि।* 

वृहत्त्रयी :
*आचार्य चरक रचित  चरकसंहिता* - विषय रोगनिदान और औषधि
*आचार्य सुश्रुत रचित  सुश्रुतसंहिता* - विषय शल्य किया 
*वाग्भट रचित अष्टांगहृदय* - विषय सुगम चिकित्सा।

लघुत्रयी 


*भाव मिश्र रचित भावप्रकाश* - औषधि निर्माण
*माधवकर रचित माधव निदान* - रोग निदान
* शार्ङ्गधर रचित  शार्ङ्गधरसंहिता - औषधि निर्माण।
इनके अलावा 
अष्टांगसंग्रह  
भेलाचार्य रचित भेलसंहिता 
काश्यपसंहिता में कौमारभृत्य (बालचिकित्सा) की विशेष रूप से चर्चा है।)
 वंगसेनकृत वंगसेनसंहिता (या चिकित्सासारसंग्रह) -- 

 *रसविद्या* 
आयुर्वेद का ही एक भाग रस रसायन विद्या भी मानी जाती है। इसमें धातुकर्म मुख्य है।

 गोविन्दाचार्य आनन्दकन्द कृत रसार्णव,
गोविन्द भगवतपाद कृत रसहृदयतन्त्र,
 वाग्भट कृत रसरत्नसमुच्चय ,एवम्
रसकामधेनु
 शालिनाथ कृत रसमञ्जरी,
यशोधर कृत रसप्रकाशसुधाकर, एवम्
रसप्रकाश ,
नित्यनाथ सिद्ध कृत रसरत्नाकर,
चामुण्डा कृत रससङ्केतकलिका, 
रसाध्याय
रसजलनिधि
सुधाकर रामचन्द्र कृत रसेन्द्रचिन्तामणि,
ढुण्ढुकनाथ कृत रसेन्द्रचिन्तामणि,
सोमदेव कृत रसेन्द्रचूडामणि
 नागार्जुन कृत रसेन्द्रमङ्गल,
 सर्वज्ञचन्द्र कृत रसकौमुदी,
 गोविन्द आचार्य कृत रससार,
दत्तो बल्लाल बोरकर कृत रसचण्डाशु या रसरत्नसंग्रह
रसेन्द्र सार
रसोपनिषत
रस पद्धति
रामेश्वर भट्ट कृत रसराजलक्ष्मी
रसपारिजात
देवनाथ कृत रसमुक्तावली
देव्यरसरत्नाकर
स्वर्णतन्त्र
स्वर्णसिद्धि
गोरख संहिता
दत्तात्रेय संहिता
वज्रोदन
शैलोदक कल्प
गन्धक कल्प
रुद्रयामल तंत्र
सुरेश्वर कृत लौहपद्धति
लोह सर्वस्व
योगसार
रत्न घोष
पारद सूर्य विज्ञान
कपिल सिद्धान्त
सूर्य पण्डित कृत रसभेषजकल्प
नासिरशाह कृत कङ्कालीग्रन्थ
आयुर्वेद ग्रन्थ
भावमिश्र कृत भावप्रकाश
शार्ङ्गधर कृत शार्ङ्गधरसंहिता
वाग्भट कृत अष्टाङ्गहृदय एवम्
अष्टाङ्गसंग्रह 
कैयदेवनिघण्टु
मदनपालनिघण्टु
राजनिघण्टु

*यजुर्वेद का उपवेद  धनुर्वेद है।-* 
 (कुछ लोग अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।),

 *धनुर्वेद के  रचनाकार- महर्षि विश्वामित्र* 

वसिष्ठ कृत धनुर्वेद (प्रकाशित), 
विश्वामित्र कृत धनुर्वेद (पाण्डुलिपि)  जमदग्नि कृत धनुर्वेद, 
औषानस कृत धनुर्वेद, 
वैशम्पायन कृत धनुर्वेद,
 सार्ङ्गधर कृत वीरचिन्तामणि (सार्ङ्गपद्धति ), 
शिवोक्त  धनुर्वेद 
 विक्रमादित्य कृत धनुर्वेदप्रकरण (वीरेश्वरीयम) 
 कोदण्डमण्डन  (पाण्डुलिपि),
दिलीपभूभृत कृत कोदण्डशास्त्र  धनुर्विद्यादीपिका, धनुर्विद्यारम्भप्रयोग,
नरसिंह भट्ट कृत धनुर्वेदचिन्तामणि, ईसापसंहिता, 
कोदण्डचतुर्भुज, 
सारसंग्रह, 
संग्रामविधि, 

*सामवेद का उपवेद गन्धर्ववेद  है।*

 *गन्धर्ववेद के रचनाकार -  भरतमुनि और शंकर जी* 

मातंक द्वारा रचित ‘बृहद्देशी’ ,
नारद द्वारा रचित ‘संगीत मकरंद’
सारंगदेव द्वारा रचित ‘संगीत रत्नाकर’ 

*अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद है।* 
(कुछलोग इसे स्थापत्य वेद भी कहते हैं।)

 *अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद*

  *शिल्पवेद /स्थापत्य वेद के रचनाकार- विश्वकर्मा और मयासुर*
विश्वकर्मा रचित प्रकाश

*वेदाङ्ग* 

शिक्षा रचनाकार - पाणिनी, कात्यायन
व्याकरण - पाणिनी रचित अष्टाध्यायी 
निरुक्त रचनाकार  - यास्काचार्य रचित निघण्टु
ज्योतिष  रचनाकार - लगधाचार्य रचित ऋग्वेदीय वेदाङ्ग ज्योतिष,अत्रि, गर्ग, नारद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर , मयासुर।
छन्द रचनाकार - पिंगल ऋषि।
कल्प रचनाकार  -   आपस्तम्ब ,गौतम, बौधायन आदि।

वेदाङ्गो के वर्णित विषय -

1. शिक्षा - वेदस्‍य वर्णोच्‍चारणप्रकिया ।
2. व्याकरणम् - शब्‍दनिर्माणप्रक्रिया ।
3. ज्योतिषम् - कालनिर्धारणम् ।
4. निरुक्तम् - शब्‍दव्‍युत्‍पत्ति: ।
5. कल्पः - यज्ञवेदीनिर्माणप्रक्रिया ।
6. छन्दः - छन्‍दज्ञानम्

उपलब्ध वेदाङ्ग ग्रन्थ - 
 *शिक्षा* - वेदस्‍य वर्णोच्‍चारणप्रकिया ।
उच्चारण शास्त्र फोनेटिक्स के ग्रन्थ प्रातिशाख्य कहलाते हैं।--

 *प्रतिशाख्य के उपलब्ध ग्रन्थ* 
 
 *शौनकाचार्यकृत ऋग्वेदीय शाकल शाखा की अवांतर शैशिरीय शाखा का प्रातिशाख्य* पद्यों में निर्मित और सबसे बड़ा प्रातिशाख्य है । जिसमें छह-छह पटलों के तीन अध्याय हैं।  व्याख्याकारों ने पद्यों को टुकड़ों में विभक्त कर सूत्ररूप में  व्याख्या की ।

 शौनकाचार्यकृत प्रातिशाख्य के प्रथम 1-15 अध्यायों में शिक्षा और व्याकरण से संबंधित विषयों (वर्णविवेचन, वर्णोच्चारण के दोष, संहितागत वर्णसंधियाँ, क्रमपाठ आदि) का प्रतिपादन है ।इसमें  अध्याय 10 और 11 में क्रमपाठ का विस्तृत प्रतिपादन
और अंत के तीन (16-18) अध्यायों में छंदों की चर्चा है। छंदों के विषय का प्रतिपादन,  किसी अन्य प्रातिशाख्य में नहीं है। क्रमपाठ का विस्तृत प्रतिपादन  भी इस प्रातिशाख्य का एक उल्लेखनीय वैशिष्ट्य है।  प्रातिशाख्य पर प्राचीन उवटकृत भाष्य प्रसिद्ध है। 

 *कात्यायनाचार्य कृत शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयि प्रतिशाख्य*
 *कात्यायनाचार्य कृत प्रतिशाख्य* सूत्रशैली में निर्मित है। इसमें आठ अध्याय हैं। प्रातिशाख्यीय विषय के साथ इसमें पदों के स्वर का विधान (अध्याय 2 तथा 6) और पदपाठ में अवग्रह के नियम (अध्याय 5) विशेष रूप से दिए गए हैं। जो  कात्यायनाचार्य कृत प्रातिशाख्य का एक वैशिष्ट्य है। साथ ही इसमें पाणिनि की घु, घ जैसी संज्ञाओं के समान 'सिम्‌'   (उसमानाक्ष), 'जित्‌' (क, ख, च, छ आदि) आदि अनेक कृत्रिम संज्ञाएँ दी हुई हैं।
कात्यायनाचार्य कृत प्रातिशाख्य  के 'तस्मिन्निति निर्दिष्टे पूर्वस्य' (1/134) आदि अनेक सूत्र पाणिनि के सूत्रों से अभिन्न हैं। अन्य अनेक प्राचीन आचार्यों के साथ साथ इनमें शौनक आचार्य का भी उल्लेख है। 
इसपर भी अन्य टीकाओं के साथ साथ उवट की प्राचीन व्याख्या प्रसिद्ध है। 

 *कृष्ण यजुर्वेदीय तैत्तिरीय प्रातिशाख्य*  भी सूत्रशैली में निर्मित है। इसमें 24 अध्याय हैं। सामान्य प्रातिशाख्यीय विषय के साथ साथ इसमें (अध्याय तीन और चार में) पदपाठ की विशेष चर्चा की गई है। इसकी एक विशेषता यह है कि इसमें 20 प्राचीन आचार्यों का उल्लेख है। इसकी कई प्राचीन व्याख्याएँ, त्रिभाष्यरत्न प्रसिद्ध हैं। 

 *अथर्ववेदीय शौनक शाखा का प्रातिशाख्य - शौनकीय चतुराध्यायिका* 
 *शौनकीय चतुराध्यायिका प्रातिशाख्य* का संबंध अथर्ववेद की शौनक शाखा से है। यह भी सूत्रशैली में और चार अध्यायों में है।
 तीन प्रपाठकों में एक  सामवेदीय प्रातिशाख्य  - *ऋक्तंत्र साम प्रातिशाख्य* तथा दूसरा  अधर्वेदीय प्रतिशाख्य *अथर्व प्रातिशाख्य* भी प्रकाशित हुए हैं।

 *व्याकरण* - पाणिनीकृत अष्टाध्यायी, अष्टाध्यायी पर पतञ्जलि भाष्य, और कात्यायन का वार्तिक, इनपर धारानगरी के नरेश राजा भोज की टीका।

 *ज्योतिष* - तैत्तरीय संहिता,अत्रि संहिता, नारद संहिता, गर्गसंहिता, लगधाचार्य का ऋग्वेदीय वेदाङ्ग ज्योतिष, आर्यभटीय, ब्रह्मभट्ट सिद्धान्त,मयासुर का  सूर्यसिद्धान्त, भास्कराचार्य की  सिद्धान्त शिरोमणि, वराहमिहिर कृत पञ्चसिद्धान्तिका, वराह संहिता, आदि।

 *निरुक्त* - यास्काचार्य कृत निघण्टु। पाणिनीकृत अष्टाध्यायी में भी शब्दव्युत्पत्ति बतलाई गई है।

 *छन्द* - महर्षि पिङ्गल कृत छन्दशास्त्र।


 *शुल्बसुत्र*

निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं:

आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र
बौधायन शुल्ब सूत्र
मानव शुल्ब सूत्र
कात्यायन शुल्ब सूत्र
मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र (मानव शुल्ब सूत्र से कुछ सीमा तक समानता है)
वाराह (पाण्डुलिपि रूप में)
वधुल (पाण्डुलिपि रूप में)
हिरण्यकेशिन (आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र से मिलता-जुलता)

 *प्रमुख श्रौतसूत्र ग्रन्थ हैं:* 

बौधायन श्रौतसूत्र
शांखायन श्रौतसूत्र
मानव श्रौतसूत्र
वाधूल श्रौतसूत्र
आश्वलायन श्रौतसूत्र
कात्यायन श्रौतसूत्र
वाराह श्रौतसूत्र
लाटयायन श्रौतसूत्र

 *ग्रह्यसुत्र* 

 शुक्ल यजुर्वेद का एकमात्र गृह्यसूत्र - *पारस्करगृह्यसूत्र* है। 
 कृष्ण यजुर्वेद की विभिन्न शाखाओं से संबंद्ध गृह्यसुत्र निम्नांकित
हैं। 
बौधायान गृह्यसूत्र के अंत में गृह्यपरिभाषा, गृह्यशेषसूत्र और पितृमेध सूत्र हैं। 
मानव गृह्यसूत्र पर अष्टावक्र का भाष्य है। भारद्वाजगृह्यसूत्र के विभाजक प्रश्न हैं। वैखानसस्मार्त सूत्र के विभाजक प्रश्न की संख्या दस हैं। 
आपस्तंब गृह्यसूत्र के विभाजक आठ पटल हैं। 
हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र के विभाजक दो प्रश्न हैं।
 वाराहगृह्यसूत्र मैत्रायणी शाखा से संबंद्ध हैं। इसमें एक खंड है। 
काठकगृह्यसूत्र चरक शाखा से संबंद्ध है। लौगक्षिगृह्यसूत्र पर देवपाल का भाष्य है।

 सामवेद की कौथुम शाखा से संबद्ध गृह्यसूत्र *गोभिलगृह्यसूत्र* है।
 गोभिलगृह्यसूत्र पर भट्टनारायण का भाष्य है। इसमें चार प्रपाठक हैं। प्रथम में नौ और शेष में दस दस कंडिकाएँ हैं। 
सामवेद के गृह्यसूत्र -- *द्राह्यायणगृह्यसूत्र, जैमिनिगृह्यसूत्र और कौथुम तथा खादिरगृह्यसूत्र गृह्यसूत्र* हैं। 
 
अथर्ववेदीय गृह्यसूत्र -- *कोशिकागृह्यसूत्र* है। 

 *धर्मसुत्र*    के प्रणेता -
 प्रमुख सूत्रकार गौतम, आपस्तम्ब, बौधायन, वशिष्ठ, सांख्यायन, आश्वालायन आदि हैं।

मानव धर्मसुत्र अनुपलब्ध है।

षडदर्शन -

इन वेदाङगों के ज्ञान प्राप्त करे बगैर वेदों को समझना असम्भव है।

 *ज्ञानमिमांसा* - *ब्रह्मसूत्र* / शारीरक सुत्र (बादरायण का उपलबद्ध है) में शुक्ल यजुर्वेद के  अन्तिम चतुर्थांश  अध्याय 30 से 40 (शुक्ल यजुर्वेद अध्याय 40 यानी ईशावास्योपनिषद)  और ब्राह्मण ग्रन्थों के उत्तरार्ध आरण्यकों और  आरण्यकों के अन्तिम अध्याय  उपनिषदों की मिमांसा और व्याख्या है।
बादरायण के ब्रह्मसूत्र पर व्यास भाष्य, और राजाभोज का वार्तिक उपलब्ध है।;

 *धर्म मिमांसा* / कर्म मिमांसा -
 *पुर्व मिमांसा दर्शन* ( *जेमिनी* का पुर्व मिमांसा दर्शन उपलब्ध है। जिसपर *शबर स्वामी का भाष्य, कुमारील भट्ट का कातंत वार्तिक और श्लोक वार्तिक माधवाचार्य का जेमिनीय न्यायमाला भाष्य )* में ब्राह्मण ग्रन्थों के पुर्वार्ध क्रियात्मक भाग की मिमांसा और व्याख्या है ; प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि नामक साधनों की चर्चा की गई है। यह यज्ञ प्रधान और स्वर्ग को अन्तिम गति मानने वाला दर्शन है।

 *बुद्धियोग/ कर्मयोग शास्त्र* -  किसी भी कर्म को किस आशय और उद्दैश्य से कैसे किया जाय कि, कर्म का लेप न हो की विधि कर्मयोग शास्त्र, बुद्धियोग (वर्तमान में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ *श्रीमद्भगवद्गीता* है);

 *तत्व मिमांसादर्शन* या  
*सांख्य दर्शन* -  सांख्य दर्शन में तत्व मिमांसा है, पुरुषसुक्त की स्रष्टि उत्पत्ति विवरण और वर्णन की मिमांसा और व्याख्या है। इसे ब्रह्मसूत्र का सहायक भाग कह सकते हैं।(वर्तमान में *ईश्वर कृष्ण की सांख्य कारिकाओं* के अतिरिक्त *कपिल का सांख्य दर्शन* उपलब्ध है।

 *योग दर्शन* - में *अष्टाङ्ग योग* में  स्वस्थ्य चित्त और स्वस्थ्य, सुघड़, बलिष्ठ देह और धृतिमान होकर सफल जीवन की कला सिखाई गई है।
अष्टाङ्ग योग धनुर्वेद और आयुर्वेद के लिये बहुत बड़ा सहयोगी ग्रन्थ है। वर्तमान में *पतञ्जलि का योग दर्शन और उसपर व्यास भाष्य और उसपर भी व्यास वृत्ति* सहित गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित उपलब्ध है।

 *वैशेषिक दर्शन* -  वैशेषिक दर्शन में भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान की दृष्टि से सृष्टि उत्पत्ति वर्णन है  यह सांख्य शास्त्र का सहयोगी है।वर्तमान में *कणाद का वैशेषिक दर्शन* उपलब्ध है।

 *न्याय दर्शन* - न्याय दर्शन में तार्किक दृष्टिकोण से गहन और विषद तर्कों के माध्यम से सृष्टि उत्पत्ति समझाई गई है। वर्तमान में गोतम का न्याय दर्शन उपलब्ध है।
न्याय दर्शन का सर्वाधिक उपयोग मिमांसा दर्शनों में हुआ है।फिर भी न्याय दर्शन को  वैशेषिक दर्शन का सहयोगी दर्शन माना जाता है।

दर्शन - सभी दर्शनों का उद्देश्य परमात्मा से आज तक की जैविक और भौतिक सृष्टि तक विकास/ पतन चक्र के आधार पर परमात्मा - जीव और जगत के पारस्परिक सम्बन्ध की व्याख्या करना है। जगजीवनराम ( जगत- जीवन - ब्रह्म / ईश्वर) का ज्ञान ही दर्शन है।

अठारह स्मृतियाँ और अठारह  उप स्मृतियाँ है।
 *सनातन धर्म के स्मार्त धर्मशास्त्र* --

 *स्मृतियाँ* - स्मृतियाँ धर्मसुत्रों की व्याख्या कही जा सकती  है। मानव धर्मशास्त्र उपलब्ध नही है किन्तु मनुस्मृति को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि, पुष्यमित्र शुङ्ग के राज्य का विधान मनुस्मृति के आधार पर ही संचालित होता था।
मनुस्मृति के बाद याज्ञवल्क्य स्मृति को भी हिन्दू पर्सनल लॉ में बहुत मान्यता है।
हिन्दू पर्सनल लॉ में मिताक्षरा टीकाऔर दायभाग टीका को  आधार माना गया है।

उपलब्ध स्मृतियाँ निम्नलिखित हैं।--
मुख्य स्मृतियाँ संपादित करें
1 मनुस्मृति
2 याज्ञवल्क्य स्मृति
3 अत्रि स्मृति
4 विष्णु स्मृति
5 हारीत स्मृति
6 औशनस स्मृति
7 अंगिरा स्मृति
8 यम स्मृति
9 कात्यायन स्मृति
10 बृहस्पति स्मृति
11 पराशर स्मृति
12व्यास स्मृति
13 दक्ष स्मृति
14 गौतम स्मृति
15 वशिष्ठ स्मृति
16 आपस्तम्ब स्मृति
17 संवर्त स्मृति
18 शंख स्मृति
19 लिखित स्मृति
20 देवल स्मृति
21 शतातप स्मृति

 *उपस्मृतियाँ* 

1कश्यप, 2पुलस्य, 3 नारद,  4 विश्वामित्र,  5 देवल,  6  मार्कण्डेय,  7 ऋष्यशङ्ग 8 आश्वलायन,   9 नारायण,  10 भारद्वाज,  11  लोहित,   12 व्याग्रपद,   13 दालभ्य,   14 प्रजापति,  15 शाकातप, 16 वधुला, 17 गोभिल, 

इतिहास -वैदिक  इतिहास, गाथा, पुराण, व्याख्यान और अनुव्याख्यान बिखरे हुए ही मिलते हैं। क्रमबद्ध सुरक्षित नही है।
वाल्मीकि रामायण और वेदव्यासजी रचित महाभारत को भी इतिहास ग्रन्थ माना जाता है।

*पुराण एवम् उप पुराण-* 

विष्णु पुराण वेदव्यास जी के पिता पाराशर ऋषि की रचना है। जबकि शेष पुराण वेदव्यास जी की रचना माने जाते हैं।
जबकि श्रीमद्भागवत पुराण, वायु पुराण , शिवपुराण, मार्कण्डेयपुराण, राजा भोज के समय बोपदेव नामक तेलङ्ग ब्राह्मण की रचना बतलाई जाती है। भविष्य पुराण में विक्टोरिया और वायसरायों के नाम भी आये हैं अतः इसे नित्य परिवर्तनशील माना जाता है।
विष्णुपुराण' के अनुसार अठारह पुराणों के नाम इस प्रकार हैं—ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शैव (वायु), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिङ्ग, वाराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड और ब्रह्माण्ड। क्रमपूर्वक नाम-गणना के उपरान्त श्रीविष्णुपुराण में इनके लिए स्पष्टतः 'महापुराण' शब्द का भी प्रयोग किया गया है। श्रीमद्भागवत, मार्कण्डेय एवं कूर्मपुराण में भी ये ही नाम एवं यही क्रम है। अन्य पुराणों में भी 'शैव' और 'वायु' का भेद छोड़कर नाम प्रायः सब जगह समान हैं, श्लोक-संख्या में कहीं-कहीं कुछ भिन्नता है। नारद पुराण, मत्स्य पुराण और देवीभागवत में 'शिव पुराण' के स्थान में 'वायुपुराण' का नाम है। भागवत के नाम से आजकल दो पुराण मिलते हैं—एक 'श्रीमद्भागवत', दूसरा 'देवीभागवत'। इन दोनों में कौन वास्तव में महापुराण है, इसपर विवाद रहा है।
विकिपीडिया के अनुसार  - 
बृहदारण्यक उपनिषद् और शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि गीली लकड़ी से जैसे धुआँ अलग अलग निकलता है वैसे ही महान भूत के निःश्वास से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वांगिरस, इतिहास, पुराणविद्या, उपनिषद, श्लोक, सूत्र, व्याख्यान और अनुव्याख्यान हुए। छान्दोग्य उपनिषद् में भी लिखा है कि इतिहास पुराण वेदों में पाँचवाँ वेद है। अत्यंत प्राचीन काल में वेदों के साथ पुराण भी प्रचलित थे जो यज्ञ आदि के अवसरों पर कहे जाते थे। 
ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन किया था। इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से लगता है। उसमें लिखा है कि व्यास का एक 'लोमहर्षण' नाम का शिष्य था जो सूति जाति का था। 
व्यास जी ने अपनी पुराण संहिता उसी के हाथ में दी। लोमहर्षण के छह शिष्य थे— सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णी। इनमें से अकृतव्रण, सावर्णी और शांशपायन ने लोमहर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक संहिता बनाई।
 
वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उन का संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया। 
उसी एक संहिता को लेकर सुत के चेलों के तीन और संहीताएँ बनाई। इन्हीं संहिताओं के आधार पर अठारह पुराण बने होंगे।

  *मुख्य पुराणों के नाम*--
1ब्रह्म पुराण
2 पद्म पुराण
3 विष्णु पुराण --( विष्णु पुराण के उत्तर भाग को - विष्णुधर्मोत्तर पुराण कहते हैं।)
4 वायु पुराण -- (मतान्तर से - शिव पुराण)
5 भागवत पुराण -- (मतान्तर से -  देवीभागवत पुराण)
6नारद पुराण
7 मार्कण्डेय पुराण
8 अग्नि पुराण
9 भविष्य पुराण
10 ब्रह्मवैवर्त पुराण
11लिङ्ग पुराण
12 वाराह पुराण
13 स्कन्द पुराण
14 वामन पुराण
15 कूर्म पुराण
16 मत्स्य पुराण
17 गरुड पुराण
18 ब्रह्माण्ड पुराण

यदि विष्णु धर्मोत्तर पुराण, शिव पुराण और देवी भागवत पुराण को भी गीना जाये तो पुराणों की संख्या 21 हो जाती है।

 *उप पुराण* --

 *उपपुराणों के नाम* --
1आदि पुराण (सनत्कुमार द्वारा कथित)
2 नरसिंह पुराण
3 नन्दिपुराण (कुमार द्वारा कथित)
4 शिवधर्म पुराण
5 आश्चर्य पुराण (दुर्वासा द्वारा कथित)
6 नारदीय पुराण (नारद द्वारा कथित)
7 कपिल पुराण
8 मानव पुराण
9 उशना पुराण (उशनस्)
10 ब्रह्माण्ड पुराण
11 वरुण पुराण
12 कालिका पुराण
13 माहेश्वर पुराण
14 साम्ब पुराण
15 सौर पुराण
16 पाराशर पुराण (पराशरोक्त)
17 मारीच पुराण
18 भार्गव पुराण
19 विष्णुधर्म पुराण
20 बृहद्धर्म पुराण
21 गणेश पुराण
22 मुद्गल पुराण
23एकाम्र पुराण
24 दत्त पुराण

 *हिन्दू धर्मशास्त्र।* 
 तीन प्रकार है: *वैष्णव आगम (पाँचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम।* द्वैत, द्वैताद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं।आगमों में  वैदिक क्रिया, कर्मकाण्डों में तन्त्र का प्रवेश है।

 *निबन्धग्रन्थ --* 
धार्मिक क्रियाओं सम्बन्धी निबन्ध ग्रन्थ --कर्मकाण्ड भास्कर, कर्मकाण्ड प्रदीप, ब्रह्मनित्यकर्म समुच्चय, आन्हिक सुत्रावली,

धर्मनिर्णय - हेमाद्रि, कालमाधव, निर्णय सिन्धु, धर्मसिन्धु आदि।

कोश - शब्दकोश - विशेषरूप से अमरकोश अधिक प्रसिद्ध एवम् मान्य है।

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