सुचना --- इस आलेख के मूल लेखक श्री अरूण कुमार उपाध्याय सर्वज्ञ शंकररेन्द्र (काञ्ची कामकोटि पीठ) हैं। सम्पूर्ण श्रेय उन्हें ही जाता है। प्रस्तोता द्वारा मात्र अक्षांश देशान्तर और कर्क रेखा पर उन देशान्तर पर स्थित नगर/ द्वीपों के नाम और आलेख को व्यवस्थित करने हेतु सम्पादन किया गया है।
पौराणिक भुगोल वर्णन ।
भूमि के उत्तरी गोलार्ध (सुमेरु) का नक्शा चार खण्डों में बनता था; जिसे सुमेरु के चार पार्श्व कहते थे।
मानचित्र में सुमेरु के चार पार्श्वों को चार अलग-अलग रङ्गों में दर्शाते हैं। आज भी मानचित्र मे चार अलग-अलग रङ्गों का ही प्रयोग होता है।
इस सुमेरु अर्थात उत्तरी गोलार्ध का आधार विषुवत रेखा है तथा शिर्ष पर उत्तर ध्रुव है।
सुमेरु की सतह पर पृथ्वी गोल के सतह विन्दुओं के प्रक्षेप से समतल नक्शा बनता था।
उत्तरी गोलार्ध में उत्तरी ध्रुव सागर है और दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणी ध्रुव प्रदेश स्थल भाग है। इस प्रक्षेप में दक्षिणी ध्रुव का आकार अनन्त हो जाता है। अतः इसे अनन्त द्वीप कहते थे।
भूमि के उत्तरी गोलार्ध के 90°-90° अंशों के चार खण्डों को भू-पद्म का चतुर्दल कहा गया है। इनके नाम हैं।--
1 भारतवर्ष 2 भद्राश्ववर्ष 3 कुरुवर्ष 4 केतुमालवर्ष।
भारत का भाग ---पुराणों में भारत के तीन अर्थ हैं -- भारत वर्ष, भरतखण्ड और कुमारी खण्ड।
भारत वर्ष का क्षेत्र --- उज्जैन के देशान्तर 75-°46' के दोनों तरफ 45°-45° अंश पूर्व पश्चिम अर्थात पूर्व देशान्तर 30°46' से पूर्व देशान्तर 120°46' तक तथा अक्षांश 00°00' यानी विषुवत रेखा से से उत्तर ध्रुव अक्षांश 90°00'तक का भाग भारतवर्ष है।
1 भारत वर्ष -–- उत्तरी गोलार्ध में, विषुवत रेखा से से उत्तरी ध्रुव तक यानी अक्षांश 00°00' से अक्षांश 90°00'तक एवम पूर्वी गोलार्ध में पूर्व देशान्तर 30°46' से पूर्व देशान्तर 120°46' तक भारतवर्ष कहलाता है।
भारत वर्ष के मध्य में पूर्व देशान्तर 75°-46'पर उज्जैन स्थित है।
भारतवर्ष के पूर्वी छोर पर पूर्व देशान्तर 120-°46' पर इन्द्र की अमरावतीपूरी स्थित है।(सेवान द्वीप का तहोकु अथवा फिलिपीन्स की राजधानी मनीला सम्भव है।) और भारत के पश्चिम छोर पूर्व देशान्तर 30°-46' पर यम की संयमनीपूरी स्थित है। ( यमन का सना,या जोर्डन का अम्मान सम्भव है।)
2 भद्राश्व वर्ष--- उत्तरी गोलार्ध में ही भारत के पूर्व में पूर्व देशान्तर 120°46' से पश्चिम देशान्तर 149°14' तक भद्राश्ववर्ष स्थित है।
भद्राश्ववर्ष के मध्य मे पूर्व देशान्तर 165°46'पर यमकोटी पत्तनम् स्थित है।(वर्तमान में यहाँ कोई द्वीप नही है।)
भद्राश्ववर्ष के पूर्वी छोर पश्चिम देशान्तर 149°14' पर वरुण की सूषापूरी (सूखापुरी) स्थित है। (हवाई द्वीप का होनोलुलु या फ्रेञ्च पोलिनेसिया सम्भव है।) तथा भद्राश्ववर्ष के पश्चिम छोर पूर्व देशान्तर 120°46' पर इन्द्र की अमरावतीपूरी स्थित है।(सेवान द्वीप का तहोकु अथवा फिलिपीन्स की राजधानी मनीला सम्भव है।)
3 कुरुवर्ष --- भारतवर्ष से 180° देशान्त पर भारतवर्ष के विपरीत दिशा में पश्चिम देशान्तर 149°14'से पश्चिम देशान्तर 59°14' तक कुरु वर्ष स्थित है।
कुरुवर्ष के मध्य में पश्चिम देशान्तर 104°-14' पर सिद्धपूर स्थित है। (मेक्सिको का लियोनेल द्वीप सम्भव है।)
कुरुवर्ष के पश्चिमी छोर पर वरुण की सूषापूरी (होनोलूलू सम्भव है।) पश्चिम देशान्तर 149°-14' पर।और कुरुवर्ष के पूर्वी छोर पश्चिम देशान्तर 59°14'पर सोम की विभावरीपूरी स्थित है। (ट्रिनिडाड-टोबेको या पोर्टोरीको सम्भव है।)
4 केतुमालवर्ष--- भारतवर्ष के पश्चिम में पूर्व देशान्तर 30°46' से पश्चिम देशान्तर 59°14' तक केतुमालवर्ष स्थित है। या यों कहें कि,भारतवर्ष के पश्चिम में पश्चिम देशान्तर 59°14' से पूर्व देशान्तर 30°46'तक। केतुमाल वर्ष स्थित है।
केतुमालवर्ष के मध्य में पश्चिम देशान्तर 14°14' पर रोमकपत्तनम् (सहारा/ मोरिटेनिया का विला सिसिस्नेरोस सम्भव है।) स्थित है।
केतुमालवर्ष के पश्चिमी छोर पर सोम की विभावरी पुरी पश्चिम देशान्तर 59°14' पर स्थित है।(ट्रिनिडाड-टोबेको या पोर्टोरीको सम्भव है।) एवम् केतुमालवर्ष के पूर्वी छोर पूर्व देशान्तर 30°46' पर यम की संयमनीपूरी स्थित है। (साना-यमन या अम्मान- जोर्डन सम्भव है।)
सन्दर्भ ---
(विष्णु पुराण 2/2)-भद्राश्वं पूर्वतो मेरोः केतुमालं च पश्चिमे।
वर्षे द्वे तु मुनिश्रेष्ठ तयोर्मध्यमिलावृतः॥24॥
भारताः केतुमालाश्च भद्राश्वाः कुरवस्तथा।
पत्राणि लोकपद्मस्य मर्यादाशैलबाह्यतः।40॥
विष्णु पुराण (2/8)-मानसोत्तर शैलस्य पूर्वतो वासवी पुरी।
दक्षिणे तु यमस्यान्या प्रतीच्यां वारुणस्य च।
उत्तरेण च सोमस्य तासां नामानि मे शृणु॥8॥
वस्वौकसारा शक्रस्य याम्या संयमनी तथा।
पुरी सुखा जलेशस्य सोमस्य च विभावरी॥9॥
सूर्य सिद्धान्त (12/38 से 42)-भू-वृत्त-पादे पूर्वस्यां यमकोटीति विश्रुता।
भद्राश्व वर्षे नगरी स्वर्ण प्राकार तोरणा॥38॥
याम्यायां भारते वर्षे लङ्का तद्वन् महापुरी।
पश्चिमे केतुमालाख्ये रोमकाख्या प्रकीर्तिता॥39॥
उदक् सिद्धपुरी नाम कुरुवर्षे प्रकीर्तिता॥ 40॥
भू-वृत्त-पाद विवरास्ताश्चान्योऽन्यं प्रतिष्ठिता॥41॥
स्वर्मेरुर्स्थलमध्ये नरको बड़वामुखं च जल मध्ये (आर्यभटीय, 4/12)
मेरुः स्थितः उत्तरतो दक्षिणतो दैत्यनिलयः स्यात्॥3॥
एते जलस्थलस्था मेरुः स्थलगोऽसुरालयो जलगः।
(लल्ल, शिष्यधीवृद्धिद तन्त्र, 17/3 एवम् 4)
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1 सूर्य सिद्धान्त के अनुसार भारत में पूर्व देशान्तर 75°46 पर उज्जैन है।
2 सूर्य सिद्धान्त के अनुसार ( पूर्व देशान्तर 75°46 से पूर्व में 90° अर्थात पूर्व देशान्तर 165°46'पर यानी) उज्जैन से पूर्व में 90° पर यानी यमकोटिपत्तन स्थित है। (वर्तमान में यहाँ कोई द्वीप नही है।)
3 सूर्य सिद्धान्त के अनुसार उज्जैन से 90° पश्चिम में (यानी पूर्व देशान्तर 75°46 से 90° अंश पश्चिम में यानी पश्चिम देशान्तर 165°46' पर) रोमक पत्तन स्थित है।(सहारा/ मोरिटेनिया का विला सिसिस्नेरोस सम्भव है।) । तथा
4 उज्जैन से 180° पर विपरीत दिशा में यानी पूर्व देशान्तर 75°46 से 180° पर विपरीत दिशा में यानी पश्चिम देशान्तर 75°46 पर सिद्धपूर स्थित है। (मेक्सिको का लियोनेल द्वीप सम्भव है।)
सन्दर्भ ---
सूर्य सिद्धान्त (12/38 से 42)-
भू-वृत्त-पादे पूर्वस्यां यमकोटीति विश्रुता।
भद्राश्व वर्षे नगरी स्वर्ण प्राकार तोरणा॥38॥
याम्यायां भारते वर्षे लङ्का तद्वन् महापुरी।
पश्चिमे केतुमालाख्ये रोमकाख्या प्रकीर्तिता॥39॥
उदक् सिद्धपुरी नाम कुरुवर्षे प्रकीर्तिता॥40॥
भू-वृत्त-पाद विवरास्ताश्चान्योऽन्यं प्रतिष्ठिता॥41॥
स्वर्मेरुर्स्थलमध्ये नरको बड़वामुखं च जल मध्ये (आर्यभटीय, 4/12)
मेरुः स्थितः उत्तरतो दक्षिणतो दैत्यनिलयः स्यात्॥3॥
एते जलस्थलस्था मेरुः स्थलगोऽसुरालयो जलगः।।4।।
(लल्ल, शिष्यधीवृद्धिद तन्त्र, 17/3 एवम् 4)
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इन्द्र, वरुण,सोम और यम की चार पूरियाँ -- अमरावतीपूरी,सूषापुरी,विभावरीपूरी, और संयमनीपुरी पूरी,
पुराणों के अनुसार --
1 भारतवर्ष के पूर्व छोर पूर्व देशान्तर 120-°46' पर इन्द्र की अमरावतीपूरी स्थित है। ।(सेवान द्वीप का तहोकु अथवा फिलिपीन्स की राजधानी मनीला सम्भव है।)
2 भारतवर्ष के पश्चिम छोर पूर्व देशान्तर 30°-46' पर यम की संयमनीपूरी स्थित है। (सना, अम्मान, मृत सागर, यमन)।
3 (भारत के पूर्वी छोर इन्द्र की अमरावतीपूरी (पूर्व देशान्तर 120°-46') से 90° अंश पूर्व में) पश्चिम देशान्तर 149°-14' पर वरुण की सूषापूरी (सूखापूरी) स्थित है। (हवाई द्वीप का होनोलुलु या फ्रेञ्च पोलिनेसिया सम्भव है।) और
4 (भारत के पूर्वी छोर इन्द्र की अमरावतीपूरी पूर्व देशान्तर 120°-46' से 180° अंश पूर्व में) पश्चिम देशान्तर 59°14' पर सोम की विभावरीपूरी स्थित है। ट्रिनिडाड-टोबेको या पोर्टोरीको सम्भव है।)
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भारत पद्म के लोक-भारत नक्शे के सप्त लोक आकाश के सप्त लोकों के नाम पर हैं---
द्यु लोकों के अनुरूप भारत पद्म (भारतवर्ष) में सप्त लोक ---
1 भू लोक (विन्ध्य से दक्षिण)।
2 भुवः लोक (विन्ध्य-हिमालय के बीच)।
3 स्वर्ग लोक (त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम, हिमालय)। इन्द्र के त्रिलोक थे-भारत, चीन, रूस।
4 महर्लोक (चीन के लोगों का महान् = हान नाम था)।
5 जनःलोक (मंगोलिया, अरबी में मुकुल = पितर)।
6 तपः लोक (पामीर, युक्रेन, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और तुर्किस्तान के घाँस के मैदान (स्टेपीज), रूस का साइबेरिया )।
7 सत्यलोक (उत्तरीध्रुव वृत)।
सन्दर्भ ----
विष्णु पुराण (2/8)-मानसोत्तर शैलस्य पूर्वतो वासवी पुरी।
दक्षिणे तु यमस्यान्या प्रतीच्यां वारुणस्य च।
उत्तरेण च सोमस्य तासां नामानि मे शृणु॥8॥
वस्वौकसारा शक्रस्य याम्या संयमनी तथा।
पुरी सुखा जलेशस्य सोमस्य च विभावरी॥9॥
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द्यु लोकों के अनुरूप भारत पद्म (भारतवर्ष) में सप्त लोकोंके भू स्थानी देवगण ---
देव जातियां----त्रिविष्टप का अर्थ स्वर्ग है तथा उस क्षेत्र की जातियों को देव जातियां कहा गया है।
नेपाल के या गण्डकी क्षेत्र के गुह्यक हुए।
भूत देश भूटान है, जहां भूत लिपि प्रचलित थी।
यक्ष कैलास के निकट के थे, जहां कुबेर का शासन था। कुबेर का स्थान शून्य देशान्तर पर स्थित था (प्राचीन काल में उज्जैन का देशान्तर), जो कैलास से थोड़ा पूर्व होगा। कुबेर नाम का यही अर्थ है-कु = पृथ्वी, बेर = समय।
कुबेर के अनुचरों को यक्ष तथा ब्रह्माण्ड पुराण (1/2/18/1) मे मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः।
तस्मिन्निवसति श्रीमान्कुबेरः सह राक्षसैः॥1॥
में कुबेर के साथी राक्षस बतलाये गये हैं।
मत्स्य पुराण (121/2/28/2) में मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः।
तस्मिन् निवसति श्रीमान् कुबेरः सह गुह्यकैः॥2॥
में कुबेर के साथी गुह्यक बतलाये गये हैं।
यक्ष और राक्षस और गुह्यक एक ही प्रजाति की उपप्रजातियाँ है।
ब्रह्माण्ड पुराण के (1/2/28/ 2) तथा मत्स्य पुराण (121/2/28/3) मेंं
"अप्सरो ऽनुचरो राजा मोदते ह्यलकाधिपः।
कैलास पादात् सम्भूतं पुण्यं शीत जलं शुभम्॥
श्लोकों में कुबेर के अनुचर अप्सर (अप्सरा - गन्धर्वराज) बतलाये गये हैं।
आजकल भी राज्य के अनुचरों को अफसर कहते हैं, जो संस्कृत, पारसी मूल से अंग्रेजी में गया है।
विद्याधर तथा सिद्ध लासा तथा कैलाश शिखर के पूर्वी के भाग के हैं।
पिशाच कैलास से पश्चिम दिशा के थे जिनकी पैशाची भाषा में बृहत्-कथा थी।
किन्नर कैलास के दक्षिण पश्चिम के थे। हिमाचल का उत्तरी भाग किन्नौर है।
सन्दर्भ ---
विद्याधराप्सरो यक्ष रक्षो गन्धर्व किन्नराः।
पिशाचो गुह्यको सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः॥ (अमरकोष, 1/1/11)
ब्रह्माण्ड पुराण (1/2/18)
मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः।
तस्मिन्निवसति श्रीमान्कुबेरः सह राक्षसैः॥1॥
अप्सरो ऽनुचरो राजा मोदते ह्यलकाधिपः।
कैलास पादात् सम्भूतं पुण्यं शीत जलं शुभम्॥2॥
मदं नाम्ना कुमुद्वत्त्तत्सरस्तूदधि सन्निभम्।
तस्माद्दिव्यात् प्रभवति नदी मन्दाकिनी शुभा॥3॥
दिव्यं च नन्दनवनं तस्यास्तीरे महद्वनम्।
प्रागुत्तरेण कैलासाद्दिव्यं सर्वौषधिं गिरिम्॥4॥
मत्स्य पुराण (121/2 - 28)
मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः।
तस्मिन् निवसति श्रीमान् कुबेरः सह गुह्यकैः॥2॥
अप्सरो ऽनुगतो राजा मोदते ह्यलकाधिपः।
कैलास पाद सम्भूतं पुण्यं शीत जलं शुभम्॥3॥
मन्दोदकं नाम सरः पयस्तु दधिसन्निभम्।
तस्मात् प्रवहते दिव्या नदी मन्दाकिनी शुभा॥4॥
शून्य देशान्तर पर होने के कारण अलका, उज्जैन या लंका का समय पृथ्वी का समय था। कुबेर नाम का यही अर्थ है-कु = पृथ्वी, बेर = समय।
कुबेर के अनुचरों को यक्ष तथा ऊपर के श्लोकों में अप्सर कहा है। आजकल भी राजा के अनुचरों को अफसर कहते हैं, जो संस्कृत, पारसी मूल से अंग्रेजी में गया है।
विद्याधर तथा सिद्ध लासा तथा उसके पूर्व के भाग के हैं। पिशाच कैलास से पश्चिम के थे जिनकी पैशाची भाषा में बृहत्-कथा थी। किन्नर कैलास के दक्षिण पश्चिम के थे। हिमाचल का उत्तरी भाग किन्नौर है।
वराह पुराण, अध्याय 141-
अन्यच्च गुह्यं वक्ष्यामि सालङ्कायन तच्छृणु।
शालग्राममिति ख्यातं तन्निबोध मुने शुभम्॥28॥
योऽयं वृक्षस्त्वया दृष्टः सोऽहमेव न संशयः॥29॥
मम तद् रोचते स्थानं गिरिकूट शिलोच्चये।
शालग्राम इति ख्यातं भक्तसंसारमोक्षणम्॥32॥
गुह्यानि तत्र वसुधे तीर्थानि दश पञ्च च॥34॥
तत्र विल्वप्रभं नाम गुह्यं क्षेत्र मम प्रियम्॥36॥
तत्र कालीह्रदं नाम गुह्यं क्षेत्रं परं मम।
अत्र चैव ह्रदस्रोतो बदरीवृक्ष निःसृतः॥ 45॥
तत्र शङ्खप्रभं नाम गुह्यं क्षेत्रं परं मम।। 49॥
गुह्यं विद्याधरं नाम तत्र क्षेत्रे परं मम।
पञ्च धाराः पतन्त्यत्र हिमकूट विनिःसृताः॥ 62॥
याति वैद्याधरान् भोगान् मम लोकाय गच्छति॥ 64॥
शिला कुञ्जलताकीर्णा गन्धर्वाप्सरसेविता॥65॥
गन्धर्वेति च विख्यातां तस्मिन् क्षेत्रं परं मम।
एकधारा पतत्यत्र पश्चिमां दिशोमाश्रिता॥ 68॥
गन्धर्वाप्सरसश्चैव नागकन्याः सहोरगैः॥ 80॥
देवर्षयश्च मुनयः समस्त सुरनायकाः।
सिद्धाश्च किन्नराश्चैव स्वर्गादवतरन्ति हि।। 81॥
नेपाले यच्छिवस्थानं समस्त सुखवल्लभम्॥ 82॥
एतद् गुह्यं प्रं देवि मम क्षेत्रे वसुन्धरे॥97॥
अहमस्मिन् महाक्षेत्रे धरे पूर्वमुखः स्थितः।
शालग्रामे महाक्षेत्रे भूमे भागवतप्रियः॥98॥
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सप्त पाताल --
भारत भाग को छोड़ कर उत्तर के तीन तथा दक्षिण के चार खण्ड, सप्ततल या सात पाताल कहलाते हैं।
भूमि के उत्तरी गोलार्ध (सुमेरु) में --
1 अतल - (भारतवर्ष के पश्चिम में पूर्व देशान्तर 30°46' से पश्चिम देशान्तर 59°14' तक। या यों कहें कि, पश्चिम देशान्तर 59°14' से पूर्व देशान्तर 30°46'तक। केतुमाल वर्ष के रोमकपत्तन के आसपास में ) अतललोक स्थित है।
2 सुतल - (भारत के पूर्व में पूर्व देशान्तर 120°46' से पश्चिम देशान्तर 149°14' तक भद्राश्ववर्ष के मध्य मे पर स्थित यमकोटी पत्तन के आसपास में।) सुतल लोक स्थित है।
3 पाताल - भारत के विपरीत दिशा में पश्चिम देशान्तर 149°14'से पश्चिम देशान्तर 59°14' तक कुरुवर्ष के मध्य में पश्चिम देशान्तर 104°-14' में स्थित (सिद्धपूर के आसपास में) पाताल लोक स्थितहै।
भूमि के दक्षिणी गोलार्ध में
4 महातल - भारतवर्ष अर्थात पूर्व देशान्तर 30°46' से पूर्व देशान्तर 120°46' तक भारत वर्ष स्थित है। भारतवर्ष में पूर्व देशान्तर 75-°46' पर स्थित उज्जैन के ही देशान्तर पर ही श्रीलंका भी स्थित है। और श्रीलंका के दक्षिण में तललोक या महातल लोक स्थित है।
(दोनों कुमारिका खण्ड कहलाते हैं। ; वर्तमान काल में भारत देश तथा भारतीय समुद्र कहलाते हैं।)
5 तलातल - (भारतवर्ष के पश्चिम में पूर्व देशान्तर 30°46' से पश्चिम देशान्तर 59°14' तक। या यों कहें कि, पश्चिम देशान्तर 59°14' से पूर्व देशान्तर 30°46'तक। ( केतुमालवर्ष के रोमकपत्तन के दक्षिण में ) अतललोक के दक्षिण तलातल लोक स्थित है।
6 वितल - (भारत के पूर्व में पूर्व देशान्तर 120°46' से पश्चिम देशान्तर 149°14' तक भद्राश्ववर्ष में यमकोटी के दक्षिण में ) सुतललोक के दक्षिण वितललोक स्थित है।
7 रसातल - भारत के विपरीत दिशा में पश्चिम देशान्तर 149°14'से पश्चिम देशान्तर 59°14' तक कुरुवर्ष के मध्य में पश्चिम देशान्तर 104°-14' में स्थित सिद्धपुर के आसपास में पाताललोक स्थित है और पाताललोक के दक्षिण में रसातल लोक स्थित है।
विष्णु पुराण (2/5)---दशसाहस्रमेकैकं पातालं मुनिसत्तम।
अतलं वितलं चैव नितलं च गभस्तिमत्।
महाख्यं सुतलं चाग्र्यं पातालं चापि सप्तमम्॥2॥
शुक्लकृष्णाख्याः पीताः शर्कराः शैल काञ्चनाः।
भूमयो यत्र मैत्रेय वरप्रासादमण्डिताः॥3॥
पातालानामधश्चास्ते विष्णोर्या तामसी तनुः।
शेषाख्या यद्गुणान्वक्तुं न शक्ता दैत्यदानवाः॥13॥
योऽनन्तः पठ्यते सिद्धैर्देवो देवर्षि पूजितः।
स सहस्रशिरा व्यक्तस्वस्तिकामलभूषणः॥14॥
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भारत वर्ष के 9 खण्ड--
मत्स्य पुराण, अध्याय 114/9
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौकर्मविधिः स्मृतः।
भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत॥7॥
1 कुमारिका खण्ड - हिमालय के मध्य भाग में कैलाश पर्वत शिखर स्थित है। कैलाश शिखर के पूर्व-पश्चिम क्षैत्र और दक्षिण में दक्षिणी समुद्र तक फैले क्षेत्र में भारत या कुमारिका खण्ड कहलाता है। (वर्तमान भारत ,पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, तिब्बत सहित) है।)
सन्दर्भ---
मत्स्य पुराण, अध्याय 114/5, 6 एवम् 10 ,⤵️-
अथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः।
भरणाच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते॥5॥
निरुक्तवचनाच्चैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम्।
यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः॥6॥
आयतस्तु कुमारीतो गङ्गायाः प्रवहावधिः।
तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु॥10॥
2 इन्द्रद्वीप खण्ड (बर्मा, थाइलैण्ड, कम्बोडिया, वियतनाम, कम्बोडिया जिसमें वैनतेय जिला है)।
सन्दर्भ ---
मत्स्य पुराण, अध्याय 114/ 8 इन्द्रद्वीपः कशेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्।
3 नागद्वीप खण्ड (अण्डमान-निकोबार, पश्चिमी इण्डोनेसिया)।
सन्दर्भ ---
मत्स्य पुराण, अध्याय 114/8
नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः॥8॥
4 कशेरुमान् खण्ड (पूर्व इण्डोनेसिया, बोर्नियो, न्यूगिनी, फिलिपीन)।
5 सौम्य खण्ड (उत्तर में तिब्बत)।
6 गन्धर्व खण्ड(अफगानिस्तान, ईरान)।
7 वारुण खण्ड (इराक, अरब)।
8 ताम्रपर्ण खण्ड (तमिलनाड़ु के निकट सिंहलद्वीप (श्रीलंका)।
9 समुद्र से आवृत्त (घीरा हुआ) द्वीप। लक्कादीव से मालदीव तक अर्थात लक्षद्वीप से मालदीव तक, (रावण की लंका)।
सन्दर्भ ---
मत्स्य पुराण, अध्याय 114/ 9 मे-
अयं तु नवमस्तेषं द्वीपः सागरसंवृतः।
योजनानां सहस्रं तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरः॥9॥
मत्स्य पुराण, अध्याय 114-
अथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः। भरणाच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते॥5॥
निरुक्तवचनाच्चैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम्। यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः॥6॥
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौकर्मविधिः स्मृतः। भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत॥7॥
इन्द्रद्वीपः कशेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्। नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः॥8॥
अयं तु नवमस्तेषं द्वीपः सागरसंवृतः। योजनानां सहस्रं तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरः॥9॥
आयतस्तु कुमारीतो गङ्गायाः प्रवहावधिः। तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु॥10॥
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उज्जयिनी रेखा का महत्व ---
कुबेर नाम का यही अर्थ है-कु = पृथ्वी, बेर = समय।
शून्य देशान्तर पर होने के कारण अलका, उज्जैन या लंका का समय पृथ्वी का समय था। अर्थात उज्जैन और लंका की देशान्तर रेखा उस समय की सू्योदय रेखा मानी जाती थी। जैसे वर्तमान में ग्रीनविच रेखा को मध्याह्न रेखा (मेरेडियन लाईन) कहते हैं। (वास्तवमे ग्रीनविच रेखा मध्यरात्रि रेखा को कह सकते हैं। क्योंकि, जब ग्रीनविच रेखा पर मध्यरात्रि होती है उसके लगभग 26 मिनट 56 सेकण्ड बाद हैं उज्जैन में औसत सूर्योदय समय होता है। अर्थात केवल 26 मिनट 56 सेकण्ड के अन्तर से आज भी उजैयनी रेखा सूर्योदय रेखा ही है।।
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