मंगलवार, 13 जुलाई 2021

नेपाल के विभिन्न नामों पर पर पूज्यपाद शंकराचार्य जी काञ्चीकामकोटी का विवेचन ।


सुचना --- इस आलेख के मूल लेखक श्री अरूण कुमार उपाध्याय  सर्वज्ञ शंकररेन्द्र (काञ्ची कामकोटि पीठ) हैं। सम्पूर्ण श्रेय उन्हें ही जाता है।  आलेख को व्यवस्थित करने हेतु सम्पादन मात्र किया गया है।

नेपाल के विभिन्न नाम ---

शाल वृक्षों के कारण यह शालग्राम तथा वहां के ऋषि को सालङ्कायन कहा है। गण्डकी नदी के पत्थरों को भी शालग्राम कहते हैं, जिन पर विष्णु का चिह्न चक्र जल प्रवाह में घिसने से अंकित हो जाता है। 
कोसल तथा विदेह की सीमा बूढ़ी गण्डक को सदानीरा भी कहते थे। लिखा है कि सूर्य कर्क राशि में रहने से (आषाढ़ मास में) सभी नदियां जल से भरी रहती हैं, किन्तु सदानीरा में सदा जल रहता है।-

सन्दर्भ ---

तर्हि विदेघो माथव आस । सरस्वत्यां स तत एव प्राङ्दहन्नभीयायेमां पृथिवीं
तं गोतमश्च राहूगणो विदेघश्च माथवः पश्चाद्दहन्तमन्वीयतुः स इमाः
सर्वा नदीरतिददाह सदानीरेत्युत्तराद्गिरेर्निर्घावति -- (शतपथ ब्राह्मण, 1/4/1/14)
अथादौ कर्कटे देवी त्र्यहं गङ्गा रजस्वला। सर्व्वा रक्तवहा नद्यः करतोयाम्बुवाहिनी॥ इति भरतः।

(2) गुह्य-गुह्य काली का स्थान होने के कारण यह गुह्य देश था तथा इसके निवासियों को गुह्यक कहते थे (वराह पुराण उद्धरण)। गुह्यक की देव जातियों में गणना है जो हिमालय या स्वः लोक की जातियां थीं। 

गुह्यकाल्या महास्थानं नेपाले यत् प्रतिष्ठितम्। (देवी भागवत पुराण, 7/38/11)
वाराणसी कामरूपं नेपालं पौण्ड्रवर्धनम्॥ (ब्रह्माण्ड पुराण, 3/4/44/93- एक्कावन  शक्तिपीठ)
पौण्ड्रवर्धन नेपालपीठं नयनयोर्युगे (वायु पुराण, 104/79)
दुर्द्धर्षोनाम राजाभून्नेपालविषये पुरा। 
पुण्यकेतुर्यशस्वी च सत्यसंधो दृढव्रतः॥2॥ 
क्व गतो हि महीपाल नेपालविषयस्तव॥29॥ (स्कन्द पुराण, 5/2/70) 

विक्रमादित्य ने शकों के नाश तथा धर्म रक्षा के लिए गुह्य देश में शिव का तप किया था। 

भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व 1, अध्याय 7--
शकानां च विनाशार्थमार्यधर्म विवृद्धये। 
जातश्शिवाज्ञया सोऽपि कैलासाद् गुह्यकालपात्॥15॥
विक्रमादित्य नामानं पिता कृत्वा मुमोद ह। 
स बालोऽपि महाप्राज्ञः पितृमातृ प्रियङ्करः॥16॥

(3) रुरु-रुरु मृगों द्वारा एक तपस्विनी कन्या का पालन हुआ था, अतः इसे रुरु क्षेत्र भी कहा गया।
सन्दर्भ ---
 (वराह पुराण, अध्याय 146) 

(4) गोस्थल-यहां से गायें निकल गयीं थी, जहां महर्षि और्व ने पुनः गायों को बसाया। अतः इसे गो-निष्क्रमण तथा गाय बसाने पर गोस्थलक नाम हुआ। 
(वराह पुराण, अध्याय 147) गोरक्ष या गोरखा नाम का यह मूल हो सकता है।
 यहां के महाभारत पूर्व के राजाओं को भी गोपाल वंश का कहा गया है। कश्मीर के प्राचीन राजा गोनन्द वंश के थे।

(5) नेपाल-नेपाल नाम का उल्लेख गुह्य काली क्षेत्र के वर्णनों में हुआ है। इससे वहां की एक जाति का नाम नेवार हुआ है। नेपाल नाम के विषय में बहुत सी कल्पना हैं।
लेपचा भाषा में ने = पवित्र, दिव्य तथा पाल = गुहा। उस भाषा में यह गुह्य का अनुवाद है। 
नेवारी भाषा में ने = मध्य, पाल = देश। यह मध्य के शिव विटप का भाग है। 
तिब्बती भाषा में नेपाल का अर्थ ऊन का क्षेत्र है। लिम्बू भाषा में नेपाल का अर्थ है समतल भाग। यह तराई भाग के लिए है। 
एक अन्य कथा है कि यहां का राजा बाइसवें जैन तीर्थंकर नेमि-नाथ का शिष्य था। नेमिनाथ द्वारा पालित होने से भी यह नेपाल हुआ। नेमिनाथ भगवान् कृष्ण के भाई थे। उनके भाइयों में केवल युधिष्ठिर ही राजा बने थे और कृष्ण के परलोकगमन के बाद संन्यासी रूप में पच्चीस वर्ष तक पूरे भारत का भ्रमण किया। भारत में भी ओंकारेश्वर क्षेत्र नेमाळ (निमाड़) है। ओड़िशा में भी नेमाळ एक सिद्ध पीठ है। 

-----------------------------------------------------------

 देव जातियां-त्रिविष्टप का अर्थ स्वर्ग है तथा उस क्षेत्र की जातियों को देव जातियां कहा गया है।

विद्याधराप्सरो यक्ष रक्षो गन्धर्व किन्नराः।
पिशाचो गुह्यको सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः॥ (अमरकोष, 1/1/11)

नेपाल के या गण्डकी क्षेत्र के गुह्यक हुए। भूत देश भूटान है, जहां भूत लिपि प्रचलित थी। यक्ष कैलास के निकट के थे, जहां कुबेर का शासन था। कुबेर का स्थान शून्य देशान्तर पर स्थित था (प्राचीन काल में उज्जैन का देशान्तर), जो कैलास से थोड़ा पूर्व होगा। 

ब्रह्माण्ड पुराण (1/2/18)
मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः।
तस्मिन्निवसति श्रीमान्कुबेरः सह राक्षसैः॥1॥
अप्सरो ऽनुचरो राजा मोदते ह्यलकाधिपः।
 कैलास पादात् सम्भूतं पुण्यं शीत जलं शुभम्॥2॥ 
मदं नाम्ना कुमुद्वत्त्तत्सरस्तूदधि सन्निभम्।
 तस्माद्दिव्यात् प्रभवति नदी मन्दाकिनी शुभा॥3॥
दिव्यं च नन्दनवनं तस्यास्तीरे महद्वनम्। 
प्रागुत्तरेण कैलासाद्दिव्यं सर्वौषधिं गिरिम्॥4॥
मत्स्य पुराण (१२१/२-२८) 
मध्ये हिमवतः पृष्ठे कैलासो नाम पर्वतः। 
तस्मिन् निवसति श्रीमान् कुबेरः सह गुह्यकैः॥2॥ 
अप्सरो ऽनुगतो राजा मोदते ह्यलकाधिपः। 
कैलास पाद सम्भूतं पुण्यं शीत जलं शुभम्॥3॥
मन्दोदकं नाम सरः पयस्तु दधिसन्निभम्। 
तस्मात् प्रवहते दिव्या नदी मन्दाकिनी शुभा॥4॥

शून्य देशान्तर पर होने के कारण अलका, उज्जैन या लंका का समय पृथ्वी का समय था। कुबेर नाम का यही अर्थ है-कु = पृथ्वी, बेर = समय।
कुबेर के अनुचरों को यक्ष तथा ऊपर के श्लोकों में अप्सर कहा है। आजकल भी राजा के अनुचरों को अफसर कहते हैं, जो संस्कृत, पारसी मूल से अंग्रेजी में गया है।
विद्याधर तथा सिद्ध लासा तथा उसके पूर्व के भाग के हैं। पिशाच कैलास से पश्चिम के थे जिनकी पैशाची भाषा में बृहत्-कथा थी। किन्नर कैलास के दक्षिण पश्चिम के थे। हिमाचल का उत्तरी भाग किन्नौर है।

वराह पुराण, अध्याय 141-
अन्यच्च गुह्यं वक्ष्यामि सालङ्कायन तच्छृणु।
शालग्राममिति ख्यातं तन्निबोध मुने शुभम्॥28॥
योऽयं वृक्षस्त्वया दृष्टः सोऽहमेव न संशयः॥29॥
मम तद् रोचते स्थानं गिरिकूट शिलोच्चये।
शालग्राम इति ख्यातं भक्तसंसारमोक्षणम्॥32॥
गुह्यानि तत्र वसुधे तीर्थानि दश पञ्च च॥34॥
तत्र विल्वप्रभं नाम गुह्यं क्षेत्र मम प्रियम्॥36॥
तत्र कालीह्रदं नाम गुह्यं क्षेत्रं परं मम।
अत्र चैव ह्रदस्रोतो बदरीवृक्ष निःसृतः॥ 45॥
तत्र शङ्खप्रभं नाम गुह्यं क्षेत्रं परं मम।। 49॥
गुह्यं विद्याधरं नाम तत्र क्षेत्रे परं मम।
पञ्च धाराः पतन्त्यत्र हिमकूट विनिःसृताः॥ 62॥
याति वैद्याधरान् भोगान् मम लोकाय गच्छति॥ 64॥
शिला कुञ्जलताकीर्णा गन्धर्वाप्सरसेविता॥65॥
गन्धर्वेति च विख्यातां तस्मिन् क्षेत्रं परं मम।
एकधारा पतत्यत्र पश्चिमां दिशोमाश्रिता॥ 68॥
गन्धर्वाप्सरसश्चैव नागकन्याः सहोरगैः॥ 80॥
देवर्षयश्च मुनयः समस्त सुरनायकाः।
सिद्धाश्च किन्नराश्चैव स्वर्गादवतरन्ति हि।। 81॥
नेपाले यच्छिवस्थानं समस्त सुखवल्लभम्॥ 82॥
एतद् गुह्यं प्रं देवि मम क्षेत्रे वसुन्धरे॥97॥
अहमस्मिन् महाक्षेत्रे धरे पूर्वमुखः स्थितः।
शालग्रामे महाक्षेत्रे भूमे भागवतप्रियः॥98॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें