केवल सायन सौर वर्ष मास ही मौसम आधारित हैं। और हमारे सभी व्रत, पर्व और उत्सव (त्योहार) भी मोसम आधारित ही हैं। अतः सायन सौर वर्ष मास और वर्तमानांश एवम् सायन सौर संस्कृत चान्द्र वर्ष मास तिथि एवम् अर्धतिथि (करण) को आधार मानकर तदनुसार ही व्रतपर्वोत्सव मनाया जाना चाहिए।
इसके ठीक विपरीत निरयन सौर वर्ष , मास मौसम आधारित नही है। बल्कि आसमान में ताराओं की स्थिति दर्शाने के ही लिए उपयुक्त है। अतःएव निरयन सौर गणना आधारित 19, 122 और 141 वर्षीय चक्र वाला चान्द्रवर्ष तथा चैत्रादि मास का मौसम से किंचितमात्र भी सम्बन्ध नही है।
अतः सायन सौर गणना आधारित वैदिक (सायन सौर) वर्ष और मधुमाधव आदि मास ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है। जो पूराणों को भी निर्विवाद रूप से स्वीकार्य है। इसीकारण पुराणोंमें सभी व्रत, पर्व और उत्सव (त्योहार) मोसम आधारित बतलाये गये हैं।
ज्योतिर्गणणना के आचार्य अत्रि,नारद, गर्ग आदि सभी ऋषियों नें व्रत, पर्व, उत्सवों को सायन सौर वर्ष, और सायन सौर मधु, माधव मास के साथ ही सायन सौर संस्कृत चान्द्र वर्ष के मासों के अनुसार ही मनाये जाने का निर्देश दिया है।
रोमक सिद्धान्त तो सायन गणना का ही ग्रन्थ है। आर्यभट्ट, सूर्यसिद्धान्तकार (मयासुर), भास्कराचार्य ने भी अपने सिद्धान्त ग्रन्थ आर्यभटीय, सूर्यसिद्धान्त, सिद्धान्त शिरोमणि आदि में भी सायन सौर गणना भी दीगई।
किन्तु ज्योतिष संहिताओं में ग्रहों की नाक्षत्रीय स्थिति बतलाने और इराक, मिश्र, युनान में प्रचलित फलित ज्योतिष (होराशास्त्र) के चक्कर में ज्योतिष सिद्धान्तो के गणिताध्याय में १९,१२२ और १४१ वर्षीय नियमन सौर संस्कृत चान्द्र संवत्सर और निरयन पद्यति को वरीयता देने के कारण व्रत पर्व उत्सव को भी निरयन सौर वर्ष आधारित चान्द्र पञ्चाङ्ग के चैत्र, वैशाखादि मासों से जोड़ दिया। जिसे पौराणिकों ने पुराणों में सम्मिलित कर लिया। गलती यहीँ से आरम्भ हुई ।
इसी त्रुटि सुधार के लिए वाराणसी (काशी) के बापूदेव शास्त्री ने सायन सौर गणना आधारित वेदिक संवत्सर और मधु माधव आदि मासों से जुड़ा सायन सौर संस्कारित चान्द्र पञ्चाङ्ग बनाया। किन्तु लोकमान्यता नही मिलने से उन्हें बन्द करना पड़ा।
अब आचार्य श्री दार्शनेय लोकेश ने सायन संक्रान्तियों के आधार पर सायन सौर संस्कृत चान्द्रमास वाली पञ्चाङ्ग श्री मोहन कृति आर्ष पञ्चाङ्गम् प्रकाशन आरम्भ कर वेदिक धर्म की महती सेवा की है। इसमें समान भोगमान वाले २७ नक्षत्रों के स्थान पर नक्षत्र योगतारा से आरम्भ कर आसमान भोगांश वाले २८ नक्षत्रों को सायन गणना आधारित दिये गये हैं।
वर्तमान में वैदिक सनातन धर्म के व्रतपर्वोत्सव निर्णय हेतु श्री मोहन कृति आर्ष पञ्चाङ्गम् एकमात्र उचित पञ्चाङ्ग है।
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