शनिवार, 29 मार्च 2025

शालिवाहन शक एवम विक्रम संवत।

वास्तव में सनातन धर्म के ग्रन्थों के अनुसार विक्रम संवत निरयन मेष संक्रमण से प्रारम्भ होता है। अतः 14 अपल 2025 सोमवार को वैशाखी से प्रारम्भ होगा। 
पञ्जाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में वैशाखी और विक्रम संवत, बङ्गाल, उड़ीसा,असम में बिहु, वैशाख बिहु नाम से तमिलनाडु में मेषादि और मेष संक्रमण के नाम से केरल में विशु के नाम से मनाया जाएगा।

विक्रमादित्य के दादा जी ने स्वयम् हरियाणा के कुरुक्षेत्र के निकट मालवा क्षेत्र से सोनकच्छ में आकर राज्य किया था। इसलिए पञ्जाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में विक्रम संवत का महत्व अधिक है। वे आज भी प्राचीन परम्परा अनुसार विक्रम संवत प्रारम्भ करते हैं।
लेकिन विक्रमादित्य के केवल 135 वर्ष बाद ही सातवाहन साम्राज्य और कुषाण साम्राज्य स्थापित हो गए और उन्होंने तिब्बती परम्परागत सायन सौर-चान्द्र तिथि पत्रक लागू कर दिया। लेकिन ज्योतिष के जानकार धर्माचार्यों ने इसे विक्रम संवत से जोड़ने हेतु निरयन सौर संक्रमण आधारित चान्द्र वर्ष में बदल दिया।

सन्त श्री रामचन्द्र केशव डोंगरे महाराज भागवत कथा वाचक।

हम स्व श्री सन्त रामचंद्र केशव जी डोंगरे महाराज की बात कर रहे हैं, जिन्होंने भागवत पुराण की कथा को बड़े पैमाने पर प्रसिद्ध किया था।

उन्होंने दिन के समय में बड़े पाण्डालों में भागवत कथा सुनाना शुरू किया था, जो एक नए युग की शुरुआत थी। जब उनकी कथा का आयोजन इन्दौर में दशहरा मैदान में हुआ था, जिसमें धार, देवास, उज्जैन और निमाड़ तक से लोग कथा सुनने आये थे।

यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने भागवत पुराण कथा को एक नए स्तर पर पहुंचाया था। स्व श्री सन्त रामचंद्र केशव जी डोंगरे महाराज की कथा का प्रभाव आज भी लोगों के जीवन में देखा जा सकता है।

सोमवार, 24 मार्च 2025

सनातन धर्म शब्द मनुस्मृति में है।

*मनु स्मृति में स्नातक धर्म* शब्द है।

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , *एष धर्मः सनातन:* ॥ —मनुस्मृति 4.138

अर्थं च धर्मं च परमं च कामं

यं प्राहुश्चतुर्वर्ण्यविधानकर्तारम्।

*स एष सनातनधर्म गोप्ता*

व्यक्तो ह्यजः शाश्वतो लोके॥

—मनुस्मृति १-२३

रोगी प्रशन लग्न

*रोगी प्रश्न लग्न से* 

लग्न से वैद्य (डॉक्टर)
चतुर्थ भाव से औषधी
पञ्चम भाव से रोग
दशम भाव से रोगी 

लग्न एवम् दशम में सुसम्बन्ध हो, मैत्री हो तो वैद्य (डॉक्टर ) से लाभ होगा।
सप्तम और चतुर्थ भाव बलवान एवम् परस्पर मित्र हो तो औषधी से लाभ होगा।
विपरित स्थिति में हानी होगी। रोग बढ़ेगा।

सोमवार, 17 मार्च 2025

स्त्री - पुरुषों के कार्य विभाग प्राकृतिक हैं।

नृत्याङ्गनाएँ कितना ही कलात्मक नाट्य (नृत्य) प्रस्तुत करें लेकिन अधिकांश नृत्य गुरु पुरुष होते हैं।
महिलाएँ एक से एक स्वादिष्ट भोजन रोज बनातीं है।
लेकिन रसोइयों की बात ही कुछ और है।
फिर भी 
नृत्य गुरु द्वारा प्रस्तुत नृत्य में वह रस वह आनन्द नहीं आयेगा जो उनकी शिष्य नृत्यांगना के नृत्य में आयेगा।
ऐसे ही 
रसोइये कितना ही स्वादिष्ट भोजन, कितने ही स्वादिष्ट व्यञ्जन बनाए, लेकिन दो-तीन दिन से अधिक नहीं खा सकते। जबकि, महिलाओं द्वारा तैयार की गई दाल, भात, सब्जी, रोटी जीवन भर खा कर भी उकताहट नहीं होती।
राज्य / शासन जब महिला करतीं हैं तो कठोरता पूर्वक शासन करतीं हैं और सफल होती हैं। लेकिन शासनकाल दीर्घ नहीं रहता।
पुरुषों का शासनकाल दीर्घ होता है लेकिन उतने कठोर निर्णय नहीं लेते, इसलिए लोगों को हमेशा कुछ कमी लगती है।

यही प्रकृति है।

शनिवार, 8 मार्च 2025

भगवान, महात्मा, सन्त, महापुरुष, श्रीमन्त, श्रेष्ठि या बड़े लोग में अन्तर

समग्र ऐश्वर्य, बल, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य, इन छः को “भग” कहते हैं। ये जिसमें एकत्रित हैं, वह भगवान् है।

धर्मनिष्ठ, सदाचारी, अध्यात्मिक अनासक्त, वितरागी ब्रह्मवादियों को महात्मा कहते हैं। 

चमत्कारी सन्तों को गुजराती में बापू कहते हैं, तो मालवी में बापजी कहते हैं।
अंग्रेजी में सेंट कहते हैं। उर्दू में बाबा कहते हैं।

पराक्रमी, वीर, विजेताओं को महापुरुष कहते हैं। अंग्रेजी में इन्हें ग्रेट कहते हैं।

सत्ताधारी, प्रभावशाली को श्रीमन्त कहते हैं ।

धनवान को श्रेष्ठि या बड़े लोग कहां जाता है।

गुरुवार, 6 मार्च 2025

जप साधना।

मन्त्र जप को स्वाध्याय कहा है, जो सर्वमान्य है।
पाँच यम (धर्म) की प्राप्त्यर्थ पाँच नियमों में से एक है स्वाध्याय। उस स्वाध्याय के अन्तर्गत मन्त्रध्यान भी एक भाग है।

लेकिन न यही एकमात्र साधन है, न अन्तिम साधन है।
यह भी साधना का एक अङ्ग है।

जैसे षड रस में कोई केवल एक ही रस अपना ले तो गिने दिनों में बिमार होना निश्चित है।

ईश्वरः सर्व भूतानाम् हृत्देशेऽर्जुन तिष्ठति का अर्थ ।

ईश्वरः सर्व भूतानाम् हृत्देशेऽर्जुन तिष्ठति 
का अर्थ सभी जड़ चेतन का मौलिक स्वरूप परमात्मा ही है।

जैसे बर्फ, वाष्प और तरल जल सब मूलतः केमिस्ट्री की भाषा में H20 ही है। स्वर्ण सिंहासन हो या स्वर्णाभुषण सब मूलत स्वर्ण ही है। ऐसे ही सर्वभूत मात्र मूलतः परमात्मा ही है।
इसलिए उनका केन्द्रक (न्युक्लियस) के रूप में मैं विष्णु रूप में स्थित हूँ।

श्री कृष्ण ने पूरी भगवतगीता बिहाफ ऑफ विष्णु कही है।

बुधवार, 5 मार्च 2025

मत पन्थ, सम्प्रदायों और आचार्यों के प्रति मेरा मत, मेरा समर्थन और विरोध का स्पष्टीकरण।

मैं हर उस व्यक्ति का समर्थन करता हूँ जो यम-नियम का कठोरता से पालन करने को कहता है, पञ्च महायज्ञ को प्राथमिक कर्तव्य बतलाता है, हर पल परमात्मा के स्मरण रखने का कहता है, पूर्ण समर्पण पर जोर देता है।
इसलिए, महर्षि कुमारील भट्ट, भगवान आदि शंकराचार्य जी, महर्षि दयानन्द सरस्वती जी और आर्यसमाज, स्वामी रामसुखदास जी महाराज, अखण्डानन्द सरस्वती महाराज जी, शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द जी सरस्वती, हंसानन्द महाराज जी, और प्रेमानन्द जी महाराज सबका समर्थन करता हूँ।
जो क्रियाओं को ही आधार मानता है, तन्त मार्ग का अनुसरण करता है, महर्षि कपिल का सांख्य दर्शन का पुरुष- प्रकृति वाला द्वैत हो, ईश्वर कृष्ण का सांख्यकारिकाओं वाला द्वैत / त्रेत हो, महर्षि दयानन्द सरस्वती - आर्य समाज का त्रेत का भी विरोध करता हूँ, तो स्वामी निम्बार्काचार्य जी का भेदाभेद वाला त्रेत हो, वसुगुप्त का भैरव तन्त्र का त्रिक हो, अभिनव गुप्त के प्रत्यभिज्ञा दर्शन का त्रिक हो, वल्लभाचार्य जी का शुद्धाद्वेत का त्रेत हो, स्वामी रामानुजाचार्य जी का विशिष्टाद्वैत का त्रेत हो या माध्वाचार्य जी का द्वैत दर्शन वाला त्रेत हो सभी त्रेत दर्शन का विरोध ही करता हूँ। लेकिन इन आचार्यों के प्रति श्रद्धालु हूँ। और ऐसा मानता हूँ कि, वेद विरोधी, सनातन धर्म विरोधी मत, पन्थ और सम्प्रदायों की ओर आकृष्ट इन विचारों वाले जन समुह को वेदों और सनातन धर्म में ही उनके विचारों के अनुकूल मत,पन्थ, सम्प्रदाय देकर बाहर जाने से रोका। क्योंकि यहाँ से वेदों की ओर लौटना सम्भव है, लेकिन आसुरी मत पन्थ, सम्प्रदायों - तन्त्र में या ताओ, कुङ्गफु, जैन, बौद्ध, झेन, शिन्तो, जरथ्रुस्त के पारसी मत-पन्थ, और इब्राहीम के मत के सबाइन (शिवाई या साबई), दाउदी, सुलेमानी, यहुदी, इसाई, इस्लाम या बहाई पन्थ में गया व्यक्ति को लौटाना लगभग असम्भव है।