तथा चौथे स्वायम्भूव मनु हुए।
उक्त तीनों प्रजापतियों की सन्तान ब्रह्मज्ञानी होने से ब्राह्मण कहलाई।
इसके अलावा प्रजापति से उत्पन्न ये ऋषि हुए जिनकी पत्नियाँ दक्ष- प्रसुति की पुत्रियाँ थी।⤵️
(1) मरीची-सम्भूति, (2) भृगु-ख्याति, (3) अङ्गिरा-स्मृति, (4) वशिष्ट-ऊर्ज्जा, (5) अत्रि-अनसुया, (6) पुलह-क्षमा, (7) पुलस्य-प्रीति, (8) कृतु-सन्तति।
इनकी सन्तान भी वैदज्ञ विप्र और ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण हुए।
प्रजापति से उत्पन्न अग्नि - स्वाहा तथा (3) धर्म और उनकी तेरह पत्नियाँ (१) श्रद्धा, (२) लक्ष्मी, (३) धृति, (४) तुष्टि, (५) पुष्टि, (६) मेधा, (७) क्रिया, (८) बुद्धि, (९) लज्जा, (१०) वपु, (११) शान्ति, (१२) सिद्धि, (१३) कीर्ति ) तथा अर्यमा-स्वधा की भी सन्तान हुए। धर्म की कुछ सन्तान हरियाणा के कुरुक्षेत्र में ही रही। दृविण की की सन्तान दक्षिण भारत में बसी जो दविड़ कहलाई।
महारुद्र शंकर जी ने स्वयम् को दश रुद्र स्वरूप में प्रकट किया जिनके नाम (1) हर, (2) त्र्यम्बकं, (3) वृषाकपि, (4) कपर्दी, (5) अजैकपात, (6) अहिर्बुधन्य, (7) अपराजित, (8) रैवत, (9) बहुरूप, (10) कपाली हैं। इन्हीं के साथ उमा ने भी स्वयम् को दस रौद्रियों के रूप में प्रकट किया। जो रुद्रों की पत्नियाँ हुई।
इनमें से अधिकांश अरब प्रायद्वीप और पूर्वी अफ्रीका में फैल गये।
स्वायम्भूव मनु की के पुत्र उत्तानपाद और प्रियव्रत राजन्य (राजा) हुए।
भारत का राज्य प्रियव्रत शाखा के हिस्से का है।
लेकिन सप्तम (वैवस्वत) मन्वन्तर के प्रारम्भ में हुए जल प्रलय के बाद स्वायम्भूव मनु की सन्तान परम्परा मनुर्भरत नहीं रहे। अब सभी वैवस्वत मनु के पुत्रों से सूर्यवंशी और पुत्री (ईला) से चन्द्रवंशियों के राज्य रहे।
सूर्यवंशियों से ही वैश्य हुए सूर्यवंशियों और चन्द्रवंशियों के मिश्रण से शुद्र हुए।
प्राचीन काल में स्वायम्भूव मनु का धर्मशास्त्र मानव धर्मशास्त्र मनुर्भरतों का संविधान और विधि-विधान (कानून) था।
वर्तमान में प्राप्त और प्रचलित स्मृतियाँ स्वायम्भूव मनु के धर्मशास्त्र और अन्य ऋषियों के धर्मशास्त्र की स्मृति के आधार पर रचित ग्रन्थ हैं। ये स्मृतियाँ प्राचीन स्मृतियों के आधार पर किसी राज्य का संविधान और विधि-विधान (कानून) की संहिता थी। जो समय समय पर संशोधन होती रही है।
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