जिनका जन्म शुक्ल पक्ष में सिंह होरा में हुआ हो या कृष्ण पक्ष में कर्क होरा में हुआ हो उनका फलित देखने हेतु विंशोत्तरी महादशा-अंतर्दशा-प्रत्यन्तर दशा के अलावा षोडश वर्षीय दशा अन्तर्दशा प्रत्यन्तर दशा भी देखते हैं। और प्रश्न के विचारणीय विषय में महादशाशेश - अन्तर्दशेश - प्रत्यन्तर्दशेश के गोचर को ही अधिक महत्व देते हैं। उसमें भी विंषोत्तरी और षोडशोत्तरी महादशा के ग्रहों के नक्षत्रों में ग्रह का भ्रमण भी महत्वपूर्ण मानते हैं।
भारत में अष्टकवर्ग के बलाबल के आधार पर गोचर (ट्रांजिट) देखा जाता है।
युरोप में दशा नहीं चलती, वहाँ गोचर से ही घटना का दिन ज्ञात किया जाता है। वे कुण्डली में और गोचर में ग्रहों में परस्पर अंशात्मक दृष्टियोग के आधार पर फलित करते हैं।
वर्ष फल की यह भी एक विधि है, पूर्व में ईराक में प्रचलित ताजिक को ताजिक नीलकण्ठ नामक ग्रन्थ रचकर भारत में प्रचलित किया गया। इसलिए इसमें अधिकांश तकनीकी शब्द अरबी के हैं। मुन्था और मुन्था दशा इसी ताजिक वर्षफल शास्त्र में उल्लेखित है। इसमें नक्षत्रीय सौर वर्ष अर्थात निरयन सौर वर्षमान के अनुसार जन्मदिन समय से ठीक एक-एक वर्ष बाद का लग्नादि भाव स्पष्ट और ग्रह स्पष्ट देखते हैं।
मुझे यह बहुत अविकसित पद्यति लगती है।
युरोप में सायन सौर वर्ष के आधार पर ही वर्ष कुण्डली बनाते हैं। लेकिन मुन्था और मुन्था दशा तथा इत्यशाल आदि योग नहीं देखते हैं।
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