सोमवार, 16 दिसंबर 2024

संख्यात्मक संयोगों को धर्म, ज्योतिष और विज्ञान और तकनीकी से जोड़ना व्यर्थ का आडम्बर है।


प्रकृति में कई चीजे ऐसी जिनमें संख्यात्मक समानता पाई जाती है। लेकिन उनका परस्पर कार्यकारण सम्बन्ध नहीं होता है।  मेसोपोटामिया (प्रायः अरब प्रायद्वीप) मूल की बारह राशियों का द्वादश ज्योतिर्लिंगों से
संख्यात्मक साम्य होना मात्र संयोग है।
महाभारत काल तक भारत में अट्ठाइस नक्षत्र प्रचलित थे, लेकिन क्रान्तिवृत से नौ अंश उत्तर दक्षिण में फैली नक्षत्र पट्टी से अभीजित तारे के  बाहर की ओर विचलित होने के कारण अभिजित नक्षत्र का नक्षत्र दर्जा हटा कर अ समान भोग वाले सत्ताइस नक्षत्र स्वीकार कर लिये गये। जिसमें नक्षत्र चरण का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि चित्रा नक्षत्र केवल चित्रा तारे के आसपास एक अंश के लगभग का ही है। अतः असमान भोगांश वाली तेरह राशि और असमान भोगांश वाले सत्ताइस नक्षत्रों में नक्षत्र चरण रूपी नवांश वाली अवधारणा निरर्थक ही सिद्ध होती है।
पश्चिम टर्की (तथाकथित ग्रीक), मिश्र और इराक में प्रचलित बारह राशिया भारत में पूर्णतः अप्रचलित थी।
सर्वप्रथम विक्रमादित्य और वराहमिहिर के समय भारत में बारह राशियों को अपनाया गया। लेकिन वराहमिहिर ने भी असमान भोगांश वाले तेरह अरों की बात भी कही है। जो आकृतियों के अनुसार नामकरण की गई आधुनिक एस्ट्रोनॉमी की तेरह साइन (राशियों) से मैल खाती है।
द्वादश आदित्यों का सम्बन्ध द्वादश मास से जोड़ा हुआ है। लेकिन बारह मास का सम्बन्ध यह भी आजतक किसी धर्मशास्त्री, कर्मकाण्डी या ज्योतिर्विद ने नहीं जोड़ा। 
द्वादश राशियों से ज्योतिर्लिंगों को  सम्बन्ध जोड़ने की कोई तुक नहीं है ।
अब कोई वैष्णव 108 वैष्णव तीर्थों का सम्बन्ध नक्षत्र चरण (नवांश) से जोड़कर अपनी कल्पना बतलाएगा।
कोई ज्योतिष के अष्टक वर्ग, आठ दिशाओं या कंप्यूटर और डिजिटल नंबरिंग सिस्टम  में उपयोग की जाने वाली अष्टाधारी संख्या प्रणाली (octal number system) का सम्बन्ध गाणपत्य सम्प्रदाय के महाराष्ट्र में पूणे के आसपास स्थित अष्ट विनायक से जोड़ेगा।
और वर्ष के बावन सप्ताह से इक्कावन या बावन शक्तिपीठों से जोड़ेगा। जिनका कोई औचित्य नहीं बनता।
आजकल भारत के हिन्दू वादी और पाकिस्तान के इस्लाम वादी कुछ तकनीकी वैज्ञानिक ऐसे ही बे सिर-पैर की बातें करके विश्व विज्ञान सम्मेलन आदि में अपना, भारत देश, सनातन धर्म और संस्कृति का उपहास करवाते हैं।

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