1 उच्चारण शास्त्र शिक्षा, 2 व्याकरण, 3 शब्द व्युत्पत्ति और शब्दकोश निघण्टु का भाषा शास्त्र निरुक्त, 4 छन्दशास्त्र, ब्रह्माण्ड विज्ञान और 5 काल गणना हेतु ज्योतिष शास्त्र, तथा १आचरण शास्त्र अर्थात धर्म सूत्र, २ ब्रह्माण्ड के नक्शे मण्डल और मण्डप और यज्ञ वेदी बनाने का शास्त्र शुल्बसूत्र,३ छोटे यज्ञ, पञच महायज्ञ , संस्कार विधान और व्रत-उत्सव विधान के लिए गृह्यसूत्र तथा ४ बड़े यज्ञों के विधि विधान श्रोत सूत्र) 6 कल्प अर्थात षड वेदाङ्ग तथा (१आयुर्वेद, २ धनुर्वेद, ३ संगीत-नाट्य का गान्धर्व वेद ४ शिल्प वेद या स्थापत्य वेद) नामक वैदिक वैज्ञानिक ग्रन्थ, सबको पढ़ना अनिवार्य हो।
फिर ब्राह्मण ग्रन्थों का व्यवहार में उपयोग हेतु पूर्व मीमांसा दर्शन और उपनिषदों का तात्पर्य बोधक शास्त्र उत्तर मीमांसा दर्शन (शारीरिक सूत्र) का गहन अध्ययन करवाया जाए। तत्पश्चात तर्कशास्त्र - न्याय दर्शन, पदार्थ रचना का शास्त्र वैशेषिक दर्शन कर्ममीमांसा - योग दर्शन तथा तत्व मीमांसा - सांख्य दर्शन और सांख्य कारिकाएँ पढ़ाई जाए, फिर वेद निरपेक्ष, ईश्वर निरपेक्ष बौद्ध दर्शन, वेदों के प्रति अनास्थावान अनीश्वरवादी जैन दर्शन तथा नास्तिक दर्शन पढ़ाया जाए।ये उपर लिखित हमारे वास्तविक धर्मग्रन्थ हैं।
इसके बाद कर्मकाण्ड और धर्मशास्त्र पढ़ाया जाए। फिर वाल्मीकि रामायण और महाभारत नामक इतिहास ग्रन्थ पढ़ाये जाएँ।
साथ ही साथ खेतों, उद्यमों, कारखानों और बाजार में व्यावहारिक व्यावसायिक शिक्षण दिया जाए। और आधुनिक शास्त्र भी पढ़ाये जाएँ।वाल्मीकि रामायण और महाभारत इतिहास ग्रन्थ हैं।
महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 25 से 43 तक का भाग श्रीमद्भगवद्गीता कहलाता है। श्रीमद्भगवद्गीता कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है। लेकिन वैदिक ऋचाओं और उपनिषदों के मन्त्र और भावों की बहुतायत होने के कारण और बुद्धि योग या समत्व योग का सर्वश्रेष्ठ विवेचन तथा सर्वश्रेष्ठ कर्म मीमांसा होने के कारण श्रीमद्भगवद्गीता का विशिष्ट महत्व है।
तब जाकर बच्चे विशुद्ध वैदिक सनातन धर्मी भारतीय नागरिक बनेंगे ।
रामचरित मानस तो पाँच सौ वर्ष पुराना राजनीति और नीति शास्त्र का श्रेष्ठ ग्रन्थ है। लेकिन धर्मग्रन्थों में रामचरित मानस की गणना करना कोरी भावुकता मात्र है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें