शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

ग्रहण की सटीक गणना होने के कारण अब सूतक का प्रावधान समाप्त करना चाहिए।

चन्द्रमा पर भूमि की प्रच्छाया पड़ने अर्थात चन्द्रग्रहण और उपछाया ग्रहण (कान्ति मालिन्य) और  भूमि पर चन्द्रमा की प्रच्छाया पड़ने अर्थात सूर्य ग्रहण की सटीक गणना नही कर पाने के कारण अशोच अर्थात सूतक की व्यवस्था की गई थी।
अब आधुनिक वैधशालाओं के माध्यम से सेकण्ड के भी दसवें भाग तक की सटीक गणना होने लगी है अतः सूतक का प्रावधान निरर्थक हो चुका है।
महत्वपूर्ण चन्द्रमा का कान्ति मालिन्य अर्थात चन्द्रमा पर भूमि की उपछाया पड़ने का है और चन्द्रमा पर भूमि की छाया (प्रच्छाया) पड़ने अर्थात चन्द्रग्रहण का है। ऐसे ही भूमि पर चन्द्रमा की छाया पड़ने अर्थात सूर्यग्रहण का है। अतः अब सूतक का कोई महत्व नहीं है।

ग्रहण काल में नदी में स्नान,  जप, होम- हवन, भजन, किर्तन , तर्पण, श्राद्ध, सभी पुण्य माने गए हैं तथा ये ही कार्य सूतक में भी निषिद्ध नही है। मात्र मूर्ति पूजा का ही निषेध है।

आजतक कहीं देखा/ सुना नही होगा कि, किसी के मरने के पहले घर में सूतक हो गया या जनन अशोच (सूतक) बच्चे के जन्म के पहले हो गया। तो फिर ग्रहण के पहले सूतक का क्या औचित्य? और मोक्ष के बाद सूतक क्यों नही? 
जबकि, जिस नक्षत्र में ग्रहण लगता है वह नक्षत्र ग्रहण के बाद में मुहुर्त में अशुद्ध माना जाता है। तो ग्रहण समाप्ति के बाद सूतक क्यों नहीं माना गया? क्योंकि ग्रहण समाप्त होना प्रत्यक्ष देख लेने के बाद कोई शंका शेष नहीं रहती।
अतः सूतक का प्रावधान अब निरर्थक, निष्प्रयोजन हो गया है।
उक्त आलेख पर विद्वान धर्मशास्त्री विचार करनें का कष्ट करें। 
ज्योतिष के जातक स्कन्द / होरा शास्त्र के ज्ञाता फलित शास्त्रियों और दारुवाला, बाटली वाला, डब्बे वाले और पाऊच वालों के अनुयाई  जन सामान्य शायद यह आलेख नही समझ पायेंगे। उनसे क्षमा प्रार्थी हूँ।
निर्णय सिन्धु प्रथम परिच्छेद के ग्रहण विषयक प्रकरण से प्रमाण ---
निर्णय सिन्धु पृष्ठ संख्या
१०५ वृद्ध गोतम का मत -ग्रहण के सूतक में बालक, वृद्ध,और आतुर (रोगी आदि जो भूख नहीं सह पाए या जिनको चिकित्सा की दृष्टि से भूखा नहीं रहना है।) को छोड़कर कोई भोजन न करें।
पृष्ठ १०६ और १०८ (हेमाद्रि वचन) पर और स्पष्ट किया है कि, जिस प्रहर में ग्रहण लगे उसके पहले वाले प्रहर में पकाये हुए अन्न का भक्षण न करें।
पृष्ठ १०७ मनु स्मृति तथा याज्ञवल्क्य स्मृति की मिताक्षरा टीका के अनुसार नव श्राद्ध का शेष तथा ग्रहण का बासी भोजन न करें। लेकिन मनुस्मृति के टीकाकार मेघातिथि के वचनानुसार आरनाल, (काञ्जिक) दूध, मठा, दधि (दही), तेल तथा घी में पकाया हुआ अन्न, मणिक (जल कलश) का जल ग्रहण के सूतक में दूषित नही होते हैं।
जल, माठा (तक्र अर्थात छाँछ) आदि खाद्य/ पैय काञ्जी, तिल तथा कुशा से दुषित नहीं होते है।
 पृष्ठ १०८ जैमिनी और मार्कण्डेय का वचन --- रविवार, संक्रान्ति तथा चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण में पुत्र वाले ग्रहस्थ पारणा तथा उपवास न करें।

पृष्ठ १०८ हेमाद्रि का वचन --- ग्रहण के प्रारम्भ के ठीक पहले तथा ग्रहण समाप्ति (मोक्ष) के तत्काल बाद स्नान करें। तथा ग्रहण के समय स्नान,होम- हवन,दान, तप, श्राद्ध करें। ग्रहण समाप्त होने पर दान करें।
पृष्ठ १०९ ब्रह्मवैवर्त पुराण का वचन --- ग्रहण के आदि (प्रारम्भ) में स्नान, मध्य में होम तथा देवपूजा करें।
पृष्ठ १०९ में महाभारत का वचन --- चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण में गङ्गा, गण्डकी आदि महानदियों में शास्त्रोक्त विधि से स्नान करें।
पृष्ठ ११० माधवीय में शङ्ख का वचन जहाँ समुद्र , नदी या जो जलाशय हो वहाँ या रोगी घर में उष्णजल से स्नान करें।
इसका महत्व क्रम यह है---
उष्ण जल से < शीतल जल, पराये जल से < अपना जल, उद्धृत जल से < भूमि का जल < पर्वतके झरने का जल < सरोवर का जल, <नदी का जल < तिर्थ का जल < महानदी का जल < गङ्गाजल < समुद्र का जल पवित्र होता है।
११०  चन्द्रग्रहण में गोदावरी नदी में और सूर्य ग्रहण में नर्मदा, गङ्गा,कनखल, प्रयाग और पुष्कर में स्नान का महत्व है।
पृष्ठ १११ ऋष्यश्रङ्ग कथन --- ग्रहण में श्राद्ध करना भूमि दान तुल्य है।
महाभारत में भी ग्रहण में श्राद्ध आवश्यक बतलाया है।
विष्णु का वचन --- आमान्न (आटा सीदा) या स्वर्ण से श्राद्ध करें। यही मत हेमाद्रि और कालमाधव के अनुसार शातातप का भी है ‌।
जबकि अपरार्क के मत में पाकाभाव में ही आमान्न (आटासीदा) से श्राद्ध करें।
वायु पुराण में --- घृत से ब्राह्मण को भोजन कराएँ एवम् पृथ्वी पर घी डाले।
११२ ग्रहण के सूतक (अशोच) में भी स्नान और श्राद्ध करें। लेकिन व्याघ्रपद के मत में स्नान और श्राद्ध, दान आदि के अतिरिक्त स्मार्तकर्म न करें।
भार्गवार्चन दीपिका के अनुसार ग्रहण में होम, जप आदि में रजस्वला को सूतकादि दोष नहीं होता है। मिताक्षरा टीका के अनुसार भी पात्र में रखे तिर्थ जल से रजस्वला स्नान करें।
ग्रहण में रात्रि में भी श्राद्ध करना चाहिए।
अपरार्क में व्यास का कथन --- ग्रहण, विवाह, संक्रान्ति, यात्रा,रोग और प्रसव में नैमित्तिक दान रात्रि में भी करें।
पृष्ठ ११३ -- चन्द्रग्रहण में रात्रि में भी स्नान करें।
पृष्ठ ११४  -- सूर्य ग्रहण में आगम ग्रन्थोक्त राम- गोपाल आदि मन्त्रों की दीक्षा (मन्त्रोपदेश) करें। यही बात शिवार्चन चन्द्रिका के ज्ञानार्णव में तथा रत्न सागर में भी कही है ।
लेकिन योगिनी तन्त्र में चन्द्र ग्रहण में दीक्षा का निषेध कहा है।

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