हमने संस्कृत श्लोक रटने वाले, गीता- रामायण मुखाग्र करने वाले बच्चों को सम्मानित किया लेकिन कोई बच्चा वैज्ञानिक विवेचना करे, तकनीकी प्रयोग करे तो माता-पिता और शिक्षक डांट कर चुप करा देते हैं।
जबकि, यूरोप में जेम्स बांड ने भाप की शक्ति को जाना तो स्टीम इंजन बना दिया, उसका यान्त्रिक उपयोग किया। उसके परिणाम स्वरूप यूरोप में हुई औद्योगिक क्रान्ति से पूरे विश्व पर यूरोपीय लोगों का शासन हो गया। यूरोपीय संस्कृति पूरे विश्व में छा गई।
जबकि भरद्वाज ने विमान शास्त्र रचा लेकिन विमानों बना कर सार्वजनिक उपयोग में नहीं लाये। अगस्त्य संहिता में लेकलांची सेल बनाकर विद्युत उर्जा बनाने की सम्पूर्ण विधि दी गई है। लेकिन हमने विद्युत उर्जा का उपयोग करना नहीं सीखा, न उसका व्यावसायिक उत्पादन किया न उस ज्ञान का विकास किया।
राजा भोज ने भी वैमानिकी और जहाज बनाने की विधियाँ लिखी लेकिन हवाई जहाज, राकेट और जहाज बनाने का उद्योग खड़ा नहीं किया। ये सभी साहित्य आज भी उपलब्ध हैं। नष्ट नहीं हुए।
हमें पत्थर पिघलानें का ज्ञान था, दक्षिण भारत के मन्दिर इसके प्रमाण हैं लेकिन उसकी विधि नहीं लिखी, परिणाम स्वरूप वह विद्या लुप्त हो गई।विद्युत बनाना जानते थे लेकिन उपयोग करना नहीं सीखा।
राकेट बनाना जानते थे लेकिन उपयोग नहीं सीखा।
परिवहन संसाधन बनाना जानते थे लेकिन उपयोग नही किया। इन्हीं मुर्खताओं के कारण पूरा विश्व पिछड़ गया।
तलपड़े ने विमान बनाया, सार्वजनिक प्रदर्शन किया, और अपना उद्योग खोल कर और बड़े विमान बनाने के बजाय वह माडल भी नष्ट कर दिया। न उसकी विधि लिखी न माडल रहने दिया। परिणाम राइट बन्धुओं को श्रेय भी गया और लाभ भी यूरोपीय देशों नें उठाया।
हमारे यहाँ वर्षों पहले से राकेट उड़ाये जाते थे। दक्षिण में टीपू सुल्तान जैसे मुस्लिम शासकों ने युद्ध में उनका उपयोग किया, लेकिन हमने राकेट बनाने के उद्योग डालकर देशहित नही किया।
बस रट्टुओं का सम्मान करते रहे।
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