वैदिक संहिताओं के बहुत से सुक्त १०८ उपनिषदों में मान्य हैं।
यह १०८ की संख्या तो खीँचतान कर पूर्ण की गई इसलिए संख्या पर मत जाइए।
रहा प्रश्न तेरह उपनिषदों का तो उसमें मुख्य नौ उपनिषद तो शांकरभाष्य के आधार पर मुख्य कहलाते हैं। ऐसे ही महर्षि बादरायण नें जिन उपनिषदों को आधार बनाया वे मुख्य हो गये।
लेकिन यदि विषय और वैदिक संहिताओं से सम्बन्धित होने को आधार माना जाए तो और भी बहुत से सूक्त यथा - पुरुष सूक्त, उत्तर नारायण सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त, अस्यवामिय सूक्त, नासदीय सूक्त, देवी सूक्त आदि विशुद्ध रूप से उपनिषद ही हैं।
पता नहीं संहिताओं को गौण बतलाकर ब्राह्मण ग्रन्थों को आधार मानना वेदव्यास जी को और उनके शिष्य (जैमिनी) को क्यों उचित जान पड़ा! लेकिन केवल उन उपनिषदों को ही प्रमाण मानकर उक्त अध्यात्म परक वैदिक सूक्तों के महत्व कम नहीं आँके जाना चाहिए।
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