बुधवार, 15 मार्च 2023

कलियुग संवत, युधिष्ठिर संवत/ विक्रम संवत और शक संवत का प्रारम्भ।

भारतवर्ष में मुख्यतया तीन प्रकार के संवत्सर, मास और मिति/ तिथि प्रचलित है।
वसन्त विषुव/ सायन मेष संक्रान्ति २० उपरान्त २१ मार्च २०२३ सोमवार (Tuesday) को उत्तर रात्रि ०२:५४ बजे पूर्वाह्न में होगी।
अतः कलियुग संवत ५१२४ का प्रारम्भ, वैदिक उत्तरायण का प्रारम्भ, वैदिक वसन्त ऋतु का प्रारम्भ, वैदिक मधुमास का प्रारम्भ, वैदिक वसन्तोत्सव पर्व दिनांक २१ मार्च २०२३ मंगलवार को सूर्योदय के साथ होगा।
इन्दौर में धार्मिक कार्यों में प्रयोजनीय वास्तविक सूर्योदय ०६:२८ बजे होगा। एवम् आभासी दृष्य सूर्योदय ०६:३० बजे होगा।

इस दिन विश्व में दिन रात बराबर रहते हैं।
देवताओं का सूर्योदय और असुरों का सूर्यास्त होता है।
उत्तरी ध्रुव पर सूर्योदय और दक्षिणी ध्रुव पर सूर्यास्त होता है।
वैदिक नव संवत्सर प्रारम्भ का उत्सव वसन्तोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
पारसी नववर्ष का भी प्रारम्भ होगा। वे इसे जमशेदी नव वर्ष कहते हैं। (जम शब्द वैदिक यम का अवेस्तन रूप है।)

नाक्षत्रीय गणनानुसार इस वर्ष निरयन मेष संक्रान्ति १४ अप्रेल २०२३ को १४:५८ बजे (दोपहर ०२:५८ बजे) होगी। अतः युधिष्ठिर संवत्सर ५१६१ का प्रारम्भ होगा। पञ्जाब, हरियाणा में सूर्योदय नियमानुसार १४ अप्रेल को वैशाखी पर्व से इस दिन विक्रम संवत २०८० का प्रारम्भ होगा।और 
उड़िसा में सूर्योदय नियमानुसार १४ अप्रेल को उड़िया नववर्ष प्रारम्भ होगा।

केरल में १८ घटिका नियमानुसार १५ अप्रेल को मलयाली नव संवत्सर प्रारम्भ होगा। केरल में कोलम नववर्ष ११९८ निरयन सिंह संक्रान्ति (१७ अगस्त २०२३ को १३:३२ बजे से) प्रारम्भ होगा।

तमिलनाडु में सूर्यास्त नियमानुसार १४ अप्रेल को मेढम मासारम्भ के साथ तमिल नव वर्ष प्रारम्भ होगा। लेकिन 

बङ्गाल और असम में मध्यरात्रि नियमानुसार १५ अप्रेल को बङ्गाली और असमिया नव संवत्सर १४२८ प्रारम्भ का पर्वोत्सव/ त्योहार मनाया जाएगा।

वैशाखी का त्योहार वैदिक सनातन धर्मियों, बौद्धों और खालसा सिखों के लिए महत्वपूर्ण है। 
जिस समय सूर्य का परिभ्रमण करते हुए भूमि भचक्र/ नक्षत्र मण्डल में चित्रा नक्षत्र के योग तारा चित्रा तारे के साथ या समक्ष दिखाई देती है। सापेक्ष में भूमि के केन्द्र से सूर्य चित्रा तारे से १८०° पर निरयन मेषादि बिन्दु पर दिखता है उस समय को निरयन मेष संक्रान्ति कहते हैं।

निरयन मेष संक्रान्ति या निरयन सौर वैशाख मास के पहले दिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नव वर्ष के त्यौहार वैशाखी , जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथण्डु के नाम से मनाया जाता हैं।
ऐसा माना जाता है कि गङ्गा देवी इसी दिन पृथ्वी पर उतरी थीं।
सनातन धर्मी इसे गङ्गा स्नान,पूजा करके और भोग लगाकर मनाते हैं। 
हरिद्वार और ऋषिकेश में निरयन मेष संक्रान्ति अर्थात बैसाखी पर्व पर भारी मेला लगता है। 
उत्तराखंड के बिखोती महोत्सव में लोगों को पवित्र नदियों में डुबकी लेने की परंपरा है। इस लोकप्रिय प्रथा में प्रतीकात्मक राक्षसों को पत्थरों से मारने की परंपरा है।
बिहार और नेपाल के मिथल क्षेत्र में, नया साल जुरशीतल के रूप में मनाया जाता है। यह मैथिली पंचांग का पहला दिन है। परिवार के सदस्यों को लाल चने सत्तू और जौ और अन्य अनाज से प्राप्त आटे का भोजन कराया जाता है।
बंगाली नए साल निरयन मेष संक्रान्ति को 'पाहेला बेषाख' के रूप में मनाया जाता है और पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और बांग्लादेश में एक उत्सव 'मंगल शोभाजात्रा' का आयोजन किया जाता है। 
यह उत्सव 2016 में यूनेस्को द्वारा मानवता की सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
ओडिशा में (निरयन मेष) संक्रांति को महाविषुव संक्रान्ति कहते हैं। उड़िया नए साल का प्रारम्भ दिवस समारोह में विभिन्न प्रकार के लोक और शास्त्रीय नृत्य शामिल होते हैं, जैसे शिव-संबंधित छाऊ नृत्य।
असमिया नव वर्ष की शुरुआत के रूप में बोहाग बिहू या रंगली बिहू निरयन मेष संक्रान्ति को मनाते हैं। इसे सात दिन के लिए विशुव संक्रांति (मेष संक्रांति) वैसाख महीने या स्थानीय रूप से 'बोहग' (भास्कर कैलेंडर) के रूप में मनाया जाता है।
निरयन मेष संक्रान्ति को तमिलनाड़ू में पुत्ताण्डु या पुत्थांडु या पुथुवरूषम तमिल नववर्ष कहते हैं।
 यह तमिल कैलेंडर के चिथीराई या चिधिराई मास का पहला दिन है। इसे लन्नीसरोल हिन्दू केलेण्डर के सौर चक्र के साथ स्थापित किया गया है।
तमिल लोग "पुट्टू वतुत्काका!" अर्थात नया साल मुबारक हो" कहकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं ।
दक्षिणी तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में, त्योहार को चित्तारीय विशु कहा जाता है।
केरल में नव वर्षारम्भ का यह त्योहार 'विशु' कहलाता है।

तमिलनाडु और श्रीलंका दोनों जगहों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। इसी दिन असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, त्रिपुरा, बिहार, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पूर्वोत्तर भारत की दाई, ताई दाम जनजातियाँ और साथ ही नेपाल में सनातन धर्मियों द्वारा पारंपरिक नए साल के रूप में मनाया जाता है। 
दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देश श्रीलंका के सिंहली समुदाय और तमिल समुदाय, मारीशस में तमिल जन, बांग्लादेश के सनातन धर्मी, म्यांमार, कम्बोडिया, लाओस, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर रीयुनियन, के कई बौद्ध समुदाय इस दिन को अपने नए साल के रूप में उसी दिन भी मनाता हैं।
और 

निरयन मीन राशि के सूर्य में पड़ने वाली अमावस्या की समाप्ति के समय से और व्यवहार में दुसरे दिन सूर्योदय व्यापी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर प्रारम्भ किया जाने वाला निरयन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्रमासों वाला संवत्सर शक संवत १९४५ का प्रारम्भ होगा।
 उत्तर भारत मे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात के जिन भागों कुषाण वंश के कनिष्क का शासन रहा और दक्षिण भारत में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोआ, कर्नाटक, तेलङ्गाना और आन्ध्र प्रदेश के जिन भागों में सातवाहन वंश के गोतमीपुत्र सातकर्णी का शासन रहा उन क्षेत्रों में निरयन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्रमासों और तिथियों वाला संवत्सर प्रचलित है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोआ, कर्नाटक, तेलङ्गाना और आन्ध्र प्रदेश में सनातनधर्मियों का नव संवत्सर गुड़ी पड़वा, युगादि आदि नामों से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। जबकि, गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर प्रारम्भ होता है।

यह निरयन मीन राशि के सूर्य में पड़ने वाली अमावस्या की समाप्ति के समय से और व्यवहार में दुसरे दिन सूर्योदय व्यापी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर प्रारम्भ किया जाता है। गुजरात में कन्या राशि के सूर्य में होनें वाली अमावस्या के दुसरे दिन सूर्योदय व्यापी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर प्रारम्भ किया जाता है।

वर्तमान में व्हाट्सएप युनिवर्सिटी के पण्डितजन इसे हिन्दू नववर्ष कहते हैं। जबकि भारतवर्ष में, सनातन वैदिक धर्म को ब्राह्मधर्म, ब्राह्मण धर्म, आर्ष धर्म और वर्णाश्रम धर्म कहा जाता है। और प्राचीन ईरान में पारसी धर्म अपनाने के बाद सिन्धु नदी के पूर्व में बसने वाले गेहुँआ रङ्ग और काले रङ्ग के भारतियों को घ्रणा पूर्वक हिन्दू कहा जाता था। और भारत को हिन्दूस्तान कहा जाता था। वही परम्परा ईरान, इराक, तुर्किस्तान और अफगानिस्तान के आक्रांताओं नें भी अपनाई और भारतीयों को हिन्दू तथा भारतवर्ष को हिन्दूस्तान कहा।

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