सोमवार, 6 मार्च 2023

वैदिक ग्रन्थों के आधार पर धर्मशास्त्र और कर्मकाण्ड पर निबन्ध ग्रन्थ की रचना होना चाहिए।

संवत्सर आरम्भ का मुख्य आधार वैदिक काल से लेकर आज तक वसन्त सम्पात ही रहा है। ऐसे ही वैदिक काल में अयन, तोयन और माहों का आधार भी सायन सौर संक्रान्तियाँ ही थी। उत्तरी गोलार्ध/ दक्षिणी गोलार्धों में अलग अलग अक्षांशों पर सायन सौर मास के आधार पर ही ऋतुएँ निर्धारित की गई थी। 
लोकमान्य बालगङ्गाधर तिलक जी, श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित, श्री दीनानाथ शास्त्री चुलेट, श्री नीलेश ओक आदि कई विद्वान सिद्ध कर चुके हैं कि, ब्राह्मण ग्रन्थों के रचना काल से पौराणिक काल तक में भी वसन्त सम्पात चैत्र वैशाखादि अलग अलग मासों में होनें के कारण संवत्सर का चैत्र वैशाख आदि मास परिवर्तित होता रहा है। यही कार्य नेपाल के धर्म शास्त्री पुनः करना चाहते हैं। शायद वे वैशाख मास से संवत्सर प्रारम्भ करना चाहते हैं।
उक्त विद्वानों नें यह भी प्रमाणित किया है कि, वैदिक काल में संवत्सर, वसन्त ऋतु, मधुमास और उत्तरायण का प्रारम्भ वसन्त सम्पात से ही माना जाता था। महाभारत के पश्चात विशेषकर पुष्यमित्र शुंग से धार नरेश राजा भोज के शासनकाल तक पौराणिक काल में वसन्त सम्पात को वसन्त ऋतु के मध्य में, और मधु मास को संवत्सर के अन्त में किया गया। और वैदिक उत्तर तोयन को उत्तरायण नाम दिया गया, और वैदिक उत्तरायण को उत्तर गोल नाम दिया गया।
इससे शुभकार्यों के मुहुर्त और विवाहादि कार्यक्रम वर्षाकाल के बजाय शीत काल में होने लगे। और वर्षाकाल को आराधना उपासना का समय घोषित कर दिया।
वर्तमान में प्रचलित पौराणिक आधार पर हेमाद्रि पन्त ने चतुर्वर्ग चिन्तामणी, सायणाचार्य के भाई माधवाचार्य ने काल माधव, कमलाकर भट्ट ने निर्णय सिन्धु ग्रन्थ रचा और काशीनाथ उपाध्याय नें निर्णयसिन्धु के निर्णयों के आधार पर धर्मसिन्धु जैसे सर्वस्वीकृत ग्रन्थ रचे वैसे ही वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों,शुल्बसुत्रों, श्रोतसुत्रों, गृह्यसुत्रों, धर्मसुत्रों और पूर्व मीमांसा - उत्तर मीमांसा ग्रन्थों को आधार बनाकर वैदिक विद्वानों द्वारा एकमत हो धर्मशास्त्र पर और वैदिक कर्मकाण्ड की क्रियाओं के लिए सर्वसम्मत निबन्ध ग्रन्थ रचना आवश्यक है। 
ताकि,
मुहूर्त,भद्रा, साढ़ेसाती, ढय्या, गुण मिलान, मांगलिक विचार, मुहुर्त शास्त्र में हुई असामान्य गड़बड़ियों, कालसर्प योग के नाम पर डराकर ठगी रोकी जा सके। और छोटे प्लाट में आर्किटेक्चर पॉइंट्स की तुलना में वास्तु के शुभाशुभ को वरीयता देना जैसे परवर्ती भय कारक सभी विषयों पर रोक लगाने के लिए  एस्ट्रोनॉमी, एस्ट्रोफिजिक्स, ब्रह्माण्ड विज्ञान, मौसम विज्ञान, जीव विज्ञान, नृतत्वशास्त्र - समाजशास्त्र और मनो विश्लेषण के जानकार वैदिक विद्वानों की महासभा आयोजित कर निर्णय किया जाना आवश्यक है।
उक्त कार्य में मत, पन्थ और सम्प्रदायों और उनमें भी उप सम्प्रदाय के आचार्यों से कोई आशा रखना व्यर्थ है क्योंकि, वे तो, परस्पर विवादों में ही इतने उलझे हुए हैं कि, उनका एकमत होना दिवास्वप्न देखने जैसा है।

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