गुरुवार, 2 मार्च 2023

सायन राशियों और सायन सौर संक्रान्ति आधारित चान्द्रमासों के नवीन नामकरण आवश्यक है।

भारत में भचक्र को अट्ठाईस नक्षत्रों में विभाजन किया गया है। ये नक्षत्र (अंश,कला, विकला) असमान भोग वाले हैं। १३°२०'के समान भोग वाले नही हैं।
इराक के बेबिलोनियाई ज्योतिषियों और उनसे प्रभावित युनान के ज्योतिषियों द्वारा भचक्र का बारह राशियों में विभाजन कर राशियों के नाम भचक्र में ताराओं के समुह से बने आकार के आधार पर राशियों का नामकरण किया गया था। सन २८५ ईस्वी में जब अयनांश शुन्य था तब तो निरयन राशियों के उक्त नाम सायन राशियों पर भी लागू हो जाते थे। लेकिन अब जबकि अयनांश २४° हो गया अर्थात लगभग पूरी एक राशि का अन्तर हो गया तो निरयन मेष राशि सायन मीन राशि हो गई, और निरयन वृष राशि सायन मेष राशि हो गई। अतः सायन राशियों का नवीन नामकरण आवश्यक हो गया है।
ऐसे ही निरयन सौर मासों से संस्कारित चान्द्रमासों के नाम भी सायन संक्रान्तियों से संस्कारित चान्द्रमासों के नाम से भिन्न होने लगे हैं। अतः सायन संक्रान्तियों से संस्कारित चान्द्रमासों के भी नवीन नामकरण आवश्यक हो गया है। 
*अर्थात सायन सौर मासों से संस्कारित चान्द्रमासों के नाम चैत्र वैशाखादि निरयन सौर संस्कारित चान्द्रमास और मधु माधवादि सायन सौर मासों के नाम से अलग नाम रखना होगा।

 १ *चैत्र मास मतलब जिस मास की पूर्णिमा के समय चन्द्रमा चित्रा तारे के आसपास रहे। स्वाभाविक है उस समय सूर्य निरयन मेषादि बिन्दु के आसपास ही रहेगा।

१ (क) --- ईसापूर्व १२६०५ वर्ष में जब अयनांश १८०° रहा होगा तब चैत्र पूर्णिमा को चन्द्रमा चित्रा तारे के साथ था। उस पूर्णिमा के समय सूर्य चित्रा तारे से १८०° पर अर्थात निरयन मेषादि बिन्दु पर ही था। 
*जबकि उस समय सूर्य का सायन भोग १८०° (सायन तुला ००°) था। लेकिन वैदिक ईष मास और पौराणिक ऊर्ज मास होने के आधार पर उस पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा तो नही कहा जा सकता।* 
*बल्कि वह चैत्र पूर्णिमा ही कही जाएगी। क्योंकि, पूर्णिमा के समय चन्द्रमा चित्रा के योगतारा के साथ था।* 

और ऐसे ही 
१(ख) --- आगामी वर्ष १३१७५ ईस्वी में जब अयनांश १८०° रहेगा तब भी चैत्र पूर्णिमा के समय चन्द्रमा चित्रा तारे के साथ रहेगा उस समय सूर्य चित्रा तारे से १८०° पर अर्थात निरयन मेषादि बिन्दु पर ही रहेगा। 
*जबकि सूर्य का सायन भोग १८०° (सायन तुला ००°) रहा रहेगा। लेकिन वैदिक ईष मास और पौराणिक ऊर्ज मास होने के आधार पर उस पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा तो नही कहा जा सकेगा।* 
 *बल्कि वह चैत्र पूर्णिमा ही कही जाएगी। क्योंकि, पूर्णिमा के समय चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र के योगतारा के साथ रहेगा।* 

 २ *माघ मास मतलब जिस मास की पूर्णिमा के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र के योग तारा (मघा) के आसपास रहे। स्वाभाविक है उस समय सूर्य निरयन कुम्भ राशि के आरम्भ बिन्दु के आसपास ही रहेगा।

२ (क)--- ईसापूर्व १६९०२ में जब अयनांश १२०° था तब भी मघा नक्षत्र के योग तारा का निरयन भोगांश १२०° (निरयन सिंह००° बिन्दु) था। 
उस समय जब पूर्णिमा को चन्द्रमा मघा तारे के साथ रहा होगा तब सूर्य निरयन कुम्भ ००° (३००°) पर था। तो उस पूर्णिमा को माघ पूर्णिमा कहा जाना ही उचित था।
*उस समय सूर्य का सायन भोग ६०° रहा था। अतः वैदिक शुक्र मास/ पौराणिक शचि मास आरम्भ होने के आधार पर उसे आषाढ़ की पूर्णिमा नही कहा जा सकता।* 
*क्योंकि, उस पूर्णिमा के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र के योग तारा के साथ था। अतः वह पूर्णिमा माघ की पूर्णिमा ही कही जा सकती है।*

ऐसे ही 
२(ख)--- ईस्वी सन ८८७८ में जब अयनांश १२०° होगा तब भी मघा नक्षत्र के योग तारा का निरयन भोगांश १२०° (निरयन सिंह राशि के प्रारम्भ बिन्दु) पर रहेगा। उस समय जब पूर्णिमा को चन्द्रमा मघा तारे के साथ रहा होगा तब सूर्य निरयन कुम्भ ००° (३००°) पर रहेगा। तो उस पूर्णिमा को माघ पूर्णिमा कहा जाना उचित ही होगा।
 *उस समय सूर्य का सायन भोग ६०° होगा।अतः वैदिक शुक्र मास/ पौराणिक शचि मास प्रारम्भ होने के आधार पर उसे आषाढ़ी पूर्णिमा कहना अनुचित ही होगा।*
*क्योंकि पूर्णिमा के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र के योग तारा के साथ स्थित रहेगा। अतः वह माघ पूर्णिमा ही कही जा सकती है।*

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