सोमवार, 24 जून 2024

गणपति

गणपति नारायण द्वारा सृष्टि रचना के कर्तव्य पालन का कोई सुत्र नहीं मिल रहा था इसके कारण हिरण्यगर्भ को रोष हुआ। इस रोष की झुंझलाहट में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की भृकुटी से अर्धनारीश्वर महारुद्र प्रकट हुए। प्रजापति भी इनके बाद हुए। इसलिए अर्धनारीश्वर महारुद्र महादेव भी कहलाते हैं। वैदिक काल में समुदाय (कबीले) को गण और  समुदाय के मुखिया को गणपति कहते थे। व्रात गणों और प्रमथ गणों के गणपति गजानन विनायक थे। मीढ गण, नन्दी गण आदि अनेक गणों के गणपति शंकर जी थे। साथ ही इन गणों के गणपति भी भगवान शंकर ही थे। वे सभी गणों के प्रिय पति और उनकी पशुधन रूपी निधि के संरक्षक भी थे। इसलिए उन्हें निधिपति भी कहते थे। इसलिए भगवान शंकर जी महा गणाधिपति भी कहलाते हैं। लेकिन बाद में , शंकर भगवान ने निधिपति का कार्यभार अपने मित्र और देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को सोप दिया। और रुद्र गणों के गणपति का कार्यभार गजानन विनायक को सोप दिया। देवसेनापति नियुक्त होने के बाद रुद्रगणों का रक्षकण कार्य शंकर जी ने कार्तिकेय को सोप दिया। तथा रुद्र गणों का दण्डनायक (कोतवाल) का कार्य भैरवनाथ को सोप दिया।  वीरभद्र को रुद्रगणों का सैन्य नायक नियुक्त किये गए। चण्डी की अधीनस्थ भद्रकाली वीरभद्र की सहायक बनी।जैसे गणराज्य का अध्यक्ष उस गण का गणपति होने के नाते प्रथम नागरिक कहलाता है। प्रथम निमन्त्रण गणपति को दिया जाता है। इसलिए गणपति प्रथम पूज्य कहलाते हैं।शुक्ल पक्ष की मध्याह्न व्यापनी  चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। विनायक चतुर्थी को ब्रह्मणस्पति सूक्त का पाठ होता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गजानन विनायक को जन्मदिन के उपहार में गणपति पद मिला था, इसलिए संकष्टी चतुर्थी भाद्रपद शुक्ल की विनायक चतुर्थी को मध्याह्न में गजानन जन्मोत्सव मनाते हैं।शेष कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी व्रत में गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करते हैं।

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