रविवार, 23 जून 2024

भाव और भावना मतलब भूतात्मा (प्राण- धारयित्व)।

भाव और भावना क्या है?
भाव और भावना क्या है?
भाव का प्रवाह ही भावना है। 
लेकिन वस्तुतः भाव क्या है? मूलतः भाव का अर्थ क्या है?
संस्कृत अध्ययन के प्रारम्भिक पाठों में धातु प्रयोग में भू भव मतलब होना बतलाया जाता है।
हमारी भूमि भी हुई थी। इसलिए भू है। मतलब वही भू-भव मतलब होना। भाव भी हुआ है, होता है।
श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के छियासठवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि,
नास्ति बुद्धिर्युक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |
न चाभाव्यत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् ||
अयुक्त (जिसके इन्द्रियों और मन पर बुद्धि का नियन्त्रण न हो और बुद्धि पर विवेक का नियन्त्रण न होने से विचलित चित्त वृत्ति वाले व्यक्ति) मे निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती। इस अयुक्त व्यक्ति में भावना नही होती है। भाव रहित व्यक्ति को शान्ति नहीं होती। अशान्त व्यक्ति को सुख कहाँ से होगा।

यदि तत्व मीमांसा में भाव और भावना की खोज की जाए तो।

 
हिरण्यगर्भ सूक्त, ऋग्वेद -10-121-1 के अनुसार 
 हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ --- 
सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ हुआ।
आधिदैविक हिरण्यगर्भ को भूतात्मा कहते हैं।
इसी भूतात्मा को प्राण और धारयित्व (शरीर को धारण करने की प्राण की शक्ति) के रूप में जाना जाता है।
ये प्राण और रयि ही देही और अवस्था कहलाते हैं।
यही भाव और भावना है।

 सावधानी पूर्वक अध्ययन, चिन्तन-मनन कर सत्य स्वीकारने का साहस हो तो शास्त्रों में सबकुछ मिलता है।

भाषा पर ध्यान दो, तो हर एक शब्द अपना अर्थ स्वयम् बतलाता है, बस उसपर ध्यान देने की आवश्यकता है। लेकिन किसी एक-दो पुस्तक या शास्त्र की छाया में विचार करने पर सोच बाधित होता है। अतः वेदों को ही आधार बनाकर सोचना उचित है। अस्तित्व और भव में आकाश-पाताल का अन्तर होते हुए असावधानी वश अस्तित्व मतलब है के स्थान पर भव मतलब होने का भ्रम हो जाता है।।
अस्ति, अस्तित्व को है से ही प्रकट करते हैं, हुआ से नही।
जो है ही उसे हुआ नहीं कह सकते।
आत्म तत्व परमात्मा है, हुआ नहीं। सृष्टि हुई, जगत हुआ, है नहीं।

चित्त को ही विवेक और निश्चयात्मिका बुद्धि कहा जाता है। चित्त में ही संस्कार के रूप में स्मृतियाँ रहती है। मेधा शक्ति के बल पर स्मृतियों को बुद्धि में प्रवेश मिलता है। जिसे रिकॉल करना कहते हैं।
बुद्धि का कार्य आयामों में मापन करके चित्त को डेटा सब्मिट कर देने तक सीमित है। बुद्धि द्वारा प्रेषित डेटा की स्मृतियों से तुलना और मिलान कर चित्त विश्लेषण करता है।
जबकि, बौद्ध मानसिकता के आधुनिक विचारक बुद्धि का कार्य विश्लेषण करना मानते हैं।

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