शुक्रवार, 19 मार्च 2021

कुण्डली में सूर्य निर्बल हो या सूर्य ग्रहण काल में जन्म हुआ हो तो सूर्य को बलवान बनाने के लिए सूर्य के पौराणिक मन्त्र जप की विधि।

*सूर्य की दान सामग्री एवम् जप विधि*  ----

*नोट -- पहले ये दो मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

उच्चारण की सुविधा हेतु अन्वय सहित सावित्री / गायत्री मन्त्र -- 

ओ३म्   भूः भूवः स्वः ।
तत् सवितुः वरेण्यम्  ।
भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

सावित्री / गायत्री मन्त्र

*ओ३म्   भूर्भूवः स्वः।*
*तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

उच्चारण की सुविधा हेतु अन्वय सहित सूर्य का पौराणिक मन्त्र --

जपा कुसुम संकाशम्  काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।
तमोअ्रिम्  सर्व पापघ्नम्  प्रणतो अ्स्मि दिवाकरम् ।।

सूर्य का पौराणिक मन्त्र -- 

*जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।तमोsरिम्  सर्वपापघ्नम्  प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शनिवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या  रसोईघर में सुरक्षित रख लें।
घर में ही पौधे में लगा हो या सम्भव हो तो रक्त पुष्प रविवार को सुबह भी ले सकते हैं।

 रविवार को सूर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें।

 रविवार को सूर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में जाकर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

गायत्री मन्त्र --

ओ३म्   भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का एक बार जप कर फिर ; सुर्य के पौराणिक मन्त्र --

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।
तमोsरिम्  सर्वपापघ्नम्  प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का एक बार जप कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम  लेकर) मैं सूर्य को बल प्रदान करने के निमित्त सूर्य की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ।
योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है अतः कृपया आप ये  दान सामग्री योग्य पात्र तक पहूँचाने और सूर्य के पौराणिक मन्त्र के दस हजार जप (सौ माला जप) सफलतापूर्वक पूर्ण करवाने की कृपा करें। यह प्रार्थना कर ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर 
पुनः गायत्री मन्त्र ---

ओ३म्   भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का एक बार जप कर फिर ; सूर्य के पौराणिक मन्त्र --

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।
तमोsरिम्  सर्वपापघ्नम्  प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का एक बार जप कर 
दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

सूर्य की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा ले लें।)
 
2 -- माणिक Rubey 3 रत्ती।

(अथवा कंटकिज मणी Spinel स्पाइनल या तामड़ा Garnet .
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- लाल वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे की शीट पर उकेरी हुई  वृषभ प्रतिमा ले लें।
 या चान्दी के पत्रे फर उकेरी सूर्य की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है वह ले लें।

4 -- ताम्र  ताम्बे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें ।

5 -- शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का चटकीला लाल  कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ही हो। चटक लाल रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य  लेलें ।)

6 -- गेहूँ (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव चन्दोसी से लेकर लोकवन तक कोई सा भी गेहूँ ले लें।)

7 -- गन्ने से बना मालवी गुड़।(सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- लाल पुष्प।

लाल गुलाब, लाल कनेर, या गुडहल का फुल लेलें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 --  गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित वैदिक सूक्त संग्रह पुस्तक या यथा सामर्थ्य चारों वेद, ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद, श्रोतसुत्र, ग्रह्य सुत्र, शुल्बसुत्र,धर्मसुत्र, पुर्वमिमांसा, उत्तरमीमांसा दर्शन, सांख्य कारिका और सांख्य दर्शन और योग दर्शन, न्याय और वैशेषिक दर्शन, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति, वाल्मीकि रामायण- महाभारत,सुर्यसुक्त, उषःसुक्त, चाक्षुषोपनिषद, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप/ गायत्री जप विधि, आदित्यहृदय स्तोत्र आदि यथा सामर्थ्य कुछ भी लेलें।

10 -- बैंत की जड़ या बैल मूल। ( बि्ल्वपत्र की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- गमले में अर्क/ आँक /आँकड़े का पौधा लेलें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात सूर्य के पौराणिक मन्त्र -- 
जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।
तमोsरिम्  सर्वपापघ्नम्  प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का जप करें। फिर गायत्री मन्त्र --

ओ३म्   भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का जप एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन  सूर्योदय के पश्चात सूर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर सूर्य का पौराणिक मन्त्र --

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।
तमोsरिम्  सर्वपापघ्नम्  प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108  बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच  (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 10,000 (दस हजार)यानि 100 माला पुर्ण होने के बाद अगले रविवार तक मन्त्र सूर्य मन्त्र जप चालू रखें चाहे रोज एक माला ही ही करें या ग्यारह मन्त्र हो ही जप करें किन्त  बन्द न करें।अगले रविवार को सूर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

10,000 (दस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 100 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी रविवार आये उस दिन पुनः सूर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सूर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

सूर्य की निम्नलिखित दान सामग्रियाँ  --

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- माणिक Rubey 3 रत्ती।

(अथवा कंटकिज मणी Spinel स्पाइनल या तामड़ा Garnet .
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- लाल वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे की शीट पर उकेरा वृषभ।
 या चान्दी के पत्रे उकेरी सुर्य की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है।

4 -- ताम्र  ताम्बे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी से लेकर घड़े तक कुछ भी चलेगा।

5 -- चटकीला लाल या गुलाबी शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ही हो। ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।)

6 -- गेहूँ (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव चन्दोसी से लेकर लोकवन तक कोई सा भी गेहूँ।)

7 -- गन्ने से बना मालवी गुड़।(सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- लाल पुष्प।

लाल गुलाब, लाल कनेर, या गुडहल का फुल।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 --गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित वैदिक सूक्त संग्रह पुस्तक या यथा सामर्थ्य चारों वेद, ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद, श्रोतसुत्र, ग्रह्य सुत्र, शुल्बसुत्र,धर्मसुत्र, पुर्वमिमांसा, उत्तरमीमांसा दर्शन, सांख्य कारिका और सांख्य दर्शन और योग दर्शन, न्याय और वैशेषिक दर्शन, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति, वाल्मीकि रामायण- महाभारत,सुर्यसुक्त, उषःसुक्त, चाक्षुषोपनिषद, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप/ गायत्री जप विधि, आदित्यहृदय स्तोत्र आदि यथा सामर्थ्य कुछ भी ।

10 -- बैंत की जड़ या बैल मूल। ( बि्ल्वपत्र की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- गमले में अर्क/ आँक /आँकड़े का पौधा।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात सुर्य के पौराणिक मन्त्र -- 

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम्  महाद्युतिम्।
तमोsरिम्  सर्वपापघ्नम्  प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
का जप करें।

फिर गायत्री मन्त्र --

ओ३म्   भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

इसके बाद उगते सुर्य को अर्ध्य देते हुएँ नित्य  केवल गायत्री मंत्र

ओ३म्   भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का ही जप यथाशक्ति करना चाहिए।
 सुर्य का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।


वेदों में सूर्य को विष्णु स्वरूप माना है।सूर्य जनक, प्रेरक और रक्षक है अर्थात सूर्य को ही सवितृ कहा गया है।सूर्य का प्रकाश सावित्री है। सूर्य को सूर्यनारायण कहते हैं। सूर्य की परिक्रमा करने वाली भूदेवी है। सूर्य को प्रजापति भी कहा है और देवता, मानव असुर सब प्रजा है।तथा सूर्य को  प्राण कहा गया है। सूर्य सौरमण्डल का केन्द्र (नाभि) है।  अर्थात सामान्य अर्थ में सूर्य सौर मण्डल का नियन्ता होनें से शासक या ईश्वर माना गया है। अतः सूर्य का अधिदेवता ईश्वर यानी सवितृदेव है। (न कि, ईशान या शंकर।)
सूर्य का प्रत्यधिदेवता अग्नि है।क्योंकि, अग्नि परमात्मा का मुख है। और सूर्य भी अग्नि स्वरूप है। रूप तन्मात्रा अग्नि की है। रूप दर्शन के लिए प्रकाश चाहिए जो सूर्य से मिलता है। स्वरूप दर्शन हैतु ज्ञान चाहिए। सूर्य को गुरुओं का गुरु कहा है।
सन्यासी, ब्राह्मण तुलसीदास जी के गुरु हनुमान और हनुमान के गुरु सूर्य।
देवगुरु ब्रहस्पति से भी वरिष्ठ प्रजापति सूर्य को ही माना है। 

सूर्य स्वयम् सवितृदेव,साक्षात धर्मस्वरूप सूर्य की सन्तान  धर्मराज यम,यमुना, दण्डाधिकारी शनि, मान्दी, तथा आयुर्वेद के जनक अश्विनी कुमार नासत्य और दस्र हैं।

 ईष्टि (अग्निहोत्र) और अष्टाङ्गयोग साधना तथा वेदशास्त्र स्वाध्याय, धर्मपालन, और सदाचारी जीवन, आयुर्वेद के नियमों का पालन करना ही सूर्य को बलवान बनानें का उपाय है।

अतः सूर्य को बल देनें के लिए सन्ध्योपासना , गायत्री जप करके सूर्य को नमस्कार कर और सूर्य को अर्घ्य देना, अष्टाङ्गयोग  साधन, वेदिक स्वाध्याय करना  पञ्चमहायज्ञ सेवन ,प्रातः सन्ध्या में सूर्योदय पश्चात और सायम् सन्ध्या मे सूर्यास्त के पूर्व दैनिक अग्निहोत्र करना।

सायन संक्रान्तियों और निरयन संक्रान्तियों तथा पूर्णिमा, अमावस्या के अन्त में मासिक अग्निहोत्र करना।

प्रत्यैक दो सायन संक्रान्तियों पर ऋतुओं के आरम्भ में ऋतु यज्ञ अग्निहोत्र करना।
प्रत्यैक तीन सायन संक्रान्तियों पर अयन तोयन आरम्भ पर अयन का अग्निहोत्र या योयन का अग्निहोत्र करना। अर्थात 

सायन मेष संक्रान्ति 21 मार्च को संवत्सरारम्भ, वेदिक उत्तरायण (पौराणिक उत्तर गोल) आरम्भ ,  वेदिक वसन्त ऋतु आरम्भ तथा वेदिक मधुमासारम्भ का संयुक्त अग्निहोत्र करें।

सायन कर्क  संक्रान्ति 22 जून को   वेदिक दक्षिण तोयन (पौराणिक दक्षिणायन), वेदिक शचिमासारम्भ का अग्निहोत्र करें।

सायन तुला संक्रान्ति 23 सितम्बर को वेदिक दक्षिणायन (पौराणिक दक्षिण गोल गोल) आरम्भ ,  वेदिक शरद ऋतु आरम्भ तथा वेदिक ईष मासारम्भ का संयुक्त अग्निहोत्र करें।

सायन मकर  संक्रान्ति 22 दिसम्बर को   वेदिक उत्तर तोयन (पौराणिक उत्तरायण), वेदिक  सहस्य मासारम्भ का अग्निहोत्र करें।
सूर्यग्रहण की अवधि में ग्रहण आरम्भ के पूर्व स्नान कर शरीर गीला रहते ही नदि सङ्गम / तिर्थ में या घरपर ही स्वच्छ, पवित्र और शुद्ध रहकर गायत्री मन्त्र जप आरम्भ करना। और ग्रहण समाप्ति पर पुनः स्नान कर जप पूर्ण कर दान करना। और अग्निहोत्र कर शुद्धि करना।
(सुचना -- इन यज्ञों में सभी मुख्य पर्वोत्सव आजाते हैं। इसमें स्वतः सूर्य आराधना होजाती है।)

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