शुक्रवार, 19 मार्च 2021

अस्त, वक्री, और अत्यन्त क्षीण, निर्बल ग्रहों को बलवान बनाने के लिए ग्रहों के पौराणिक मन्त्र की जप विधि ।

*ग्रहों के पौराणिक मन्त्र जप करनें में सहायक विधि निषेध।* 

1 *यह प्रायश्चित्त और शान्तिकर्म है। अतः स्वयम् को ही करना होगा।* 
आपके  माता - पिता, भाई-बहन, पति या पत्नी अथवा सन्तान आपके लिए जप नही कर सकती। वे यदि करेंगे तो वह उनकी कुण्डली के ग्रहों को ही बल पहूँचायेगा। आपकी कुण्डली के ग्रह अप्रभावित रहेंगे। ऐसे ही कोई आचार्य, पुरोहित या पण्डित भी आपसे संकल्प करवा कर सुपारी लेकर जप करनें को कहे तो वह भी कोई लाभकारी नही होसकता। 
जैसे यज्ञ में, पूजा पाठ में आचार्य केवल निर्देशक और सहयोगी की भूमिका में रहकर यज्ञ या पूजा करवाते हैं; उनकी उतनी ही भूमिका हो सकती है।
 यज्ञ में आहूति  आपको ही डालना पड़ती है। पूजन आपको ही करना होती है, वैसे ही जप भी आपको ही करना है।
दुसरे के खाने से आपका पेट नही भर सकता और दुसरा दवाई खा ले या ऑपरेशन करवाले तो आप स्वस्थ्य नही हो सकते।
 ऐसे ही प्रायश्चित्त स्वरूप जप आपको ही करना है। दुसरा कोई नही कर सकता।
जब शिक्षा मण्डल, विश्वविद्यालय और परिक्षा मण्डल आपके स्थान पर दुसरे को परीक्षा देना स्वीकार नही करता तो देवता क्यों अनुमति देंगे?
निस्सन्देह यह कोई आराधना उपासना या साधना नही है किन्तु यह कोई सकाम उपासना या टोटकेबाजी भी नही है। 
बल्कि छुटे हुए कर्तव्यकर्म की क्षतिपूर्ति है। जिसे करना अनिवार्य है। 
जैसे कोई विद्यार्थी पूर्व कक्षा में  एक या दो विषय की परीक्षा उत्तीर्ण न कर पाता है तो विश्वविद्यालय अगली कक्षा में प्रवेश लेकर आगामी परीक्षा के साथ उन बचे हुए अनुत्तीर्ण विषयों की परीक्षा देकर उत्तीर्ण करनें का अवसर देता है। वैसे ही ईश्वर नें इस जन्म में गत जन्म के बचे हुए कर्तव्य कर्म पूर्ण करनें और त्रुटियों को सुधारने का अवसर देते हैं। वही प्रायश्चित कर्म कहलाते हैं।

2 ग्रहों के पौराणिक मन्त्र के जप की विधि बहुत विस्तार से समझा कर लिखी गई है।अतः यह केवल पढ़ने में बहुत बड़े। पर करने में में बहुत आसान है। करना शुरू करो तो हो जाते मैं। जब लाभ मिलता है तो स्वतः श्रद्धा बड़ती है।

3 मूलतः हमारा कर्तव्य है कि, जब भी कोई ग्रह अस्त हो या वक्री हो या नीचस्थ, शत्रुराशि/ नक्षत्र/ नवांशादि में हो। या कालबल या दृग्बल में क्षीण चल रहा हो तब उस ग्रह को बल देनें के लिए ईश्वर आराधना वैसे ही करना चाहिए जैसे अधिक मास क्षय मास में करते हैं। किन्तु कोई नही करता।

4  इसी का फल इस जन्म के समय कुछ ग्रह अस्त या वक्री या बलहीन होते हैं । अतः इस जन्म में उनको अस्त, वक्री या निर्बल ग्रहों को बल देनें के लिए उन अस्त , वक्री या निर्बल ग्रहों के पौराणिक मन्त्र जप निर्धारित विधि से करना पड़ता हैं।

5 वस्तुतः चलित चक्र में ग्रह जिस भाव  में स्थित हो उस भाव के फलों को सूचित करता है तथा भावस्पष्ट के अनुसार वह ग्रह जिस भाव का स्वामी हो उन भावों के फलों को भी सूचित करता है। 
इसके अलावा वह ग्रह जिस किसी ग्रह से अंशात्मक युति बनाता है या अंशात्मक पूर्ण दृष्ट हो उस ग्रह से सम्बद्ध भावों के फल भी सूचित करता है। 

6 कृष्णमूर्ति पद्यति के अनुसार केवल विंशोत्तरी महादशा पद्यति ही मान्य है। तथा
 विंशोत्तरी दशापद्यति के अनुसार नक्षत्रों के स्वामी सबसे महत्पूर्ण माने जाते हैं। 
तदनुसार  जिस नक्षत्र में वह ग्रह स्थित होता है उस नक्षत्र का स्वामी जिस भाव में स्थित हो और जिन जिन भावों का स्वामी हो उन भावों का फल विशेष रूप से सूचित करता है। 

 7  ग्रह जिस राशि नक्षत्र में ग्रह स्थित होता हैं उन राशि नक्षत्रों के स्वभावानुसार तथा  स्वयम् अपनी प्रकृति के अनुकूल उस भाव का फल फल सूचित करते हैं जिस भाव में वह ग्रह चलित चक्र में स्थित हो, या भावस्पष्ट के अनुसार जिन भावों का स्वामी हो। तथा कृष्णमूर्ति पद्यति के अनुसार जिन भावों का सूचक (Significator) हो।
 
8 किन्तु अस्त ग्रह, वक्री ग्रह और केशवी जातक ग्रन्थ में बतलाये गये तथा वृहत्पाराशर होराशास्त्र में भी उल्लेखित  षड्बलों  में अत्यन्त निर्बल ग्रह जिन शुभफलों को सुचित करते हैं उन फलों का मिलने का मात्र आभास होता है, पर मिलते नही हैं। जबकि जिन अशुभ फलों को सूचित करते हैं वे अशुभ फल अत्यधिक तीव्रता से और भरपूर मात्रा में मिलते हैं। 

9 किसी भी अस्त वक्री या बलहीन ग्रह को सबल बनानें के लिए उस ग्रह के पौराणिक मन्त्र का जप करने से उस ग्रह द्वारा सूचित शुभ फल पूर्ण रूप से घटित होने लगते हैं। जबकि उस ग्रह द्वारा सूचित अशुभ फल केवल आभास देकर ही पूर्ण हो जाते हैं।

10  ग्रहों के पौराणिक मन्त्रों की जप विधि का आधार ठीक वही है जो सूर्य  ग्रहण के समय सूर्य को बल देनें के लिए और चन्द्रग्रहण के समय चन्द्रमा को बल देनें के लिए धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है।

11 ग्रहण काल में सूर्य या चन्द्रमा को बल देने के लिए पहले दान धर्म कर ग्रहण आरम्भ के तत्काल पूर्व स्नान कर सूर्य ग्रह ग्रहण अवधि में वेद मन्त्र का जप एवम् चन्द्र ग्रहण अवधि में पौराणिक मन्त्र का जप कर ग्रहण समाप्ति पर स्नान कर सूर्यग्रहण में सूर्य को या चन्द्र ग्रहण में चन्द्रमा को अर्घ्य देकर फिर दान धर्म किया जाता है। 

12  अस्त वक्री या अत्यन्त क्षीण ग्रह को बल प्रदान करनें हेतु उस अस्त वक्री या अत्यन्त क्षीण ग्रह के पौराणिक मन्त्र के जप करनें की विधि भी ठीक यही  है।

13  कागज पर मन्त्र लिख कर रख ले। याद रहे ना रहे। समय पर भूल सकते हैं। अतः प्रिण्ट निकाललें।

14   तुलसी की 108 मनकों की जप करनें की माला गौवर्धन नाथ मन्दिर या मारोठ्या इन्दौर में शंकर सुगन्धि के यहाँ मिल सकती है।

15 -गुगल पर सुर्योदय समय देख लें।
जैसे 21 मार्च को सुर्योदय समय 06:35  है। 

16 - परिवार जनों को पहले से समझादें ताकि जाते आते समय वे पूछताछ / टोका - टोकी ना करें।
घर से बिना बोले निकलें। निकटतम मन्दिर में 06:35 के पहलें नही पहूँचे और 06:55  के बाद रुके नही। इसी बीच में ही दान सामग्री अर्पण,प्रार्थना और जप करना है।  

17  सम्बन्धित  ग्रह के वार में प्रथम घटि उसी ग्रह की होती है। अतः सूर्योदय पूर्व स्नान कर अस्त, वक्री या अत्यन्त क्षीण/ निर्बल  ग्रह की दान सामग्रियाँ और  मन्त्र लिखा कागज लेकर घर से निकटतम मन्दिर के लिए निकलें।

18  अस्त,वक्री और अत्यन्त क्षीण/ निर्बल ग्रह के वार का सूर्योदय होते ही किसी भी निकटतम देवालय में पहूँच जायें। अर्थात ठीक सूर्योदय के समय मन्दिर की सीड़ियो, या द्वार पर पहूच जायें। 

19  सूर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही ईश्वर को सम्मुख अनुभव कर ईश्वर से प्रार्थना करें कि, कलिकाल के कारण मैं योग्यपात्र को खोज कर दान करनें में  असमर्थ हूँ अतः कृपया  (सम्बन्धि ग्रह का नाम लेकर कहें कि, अमुक) ग्रह की दान सामग्रियाँ योग्यपात्र तक पहूँचानें की कृपा कर (सम्बन्धित ग्रह का नाम लेकर कहें कि, अमुक) ग्रह के पौराणिक मन्त्र जप का अनुष्ठान सफलता पूर्वक पूर्ण करवाने की कृपा करें। यह प्रार्धना करते हुए उस अस्त/ वक्री या अत्यन्त क्षीण निर्बल ग्रह की दानसामग्रियाँ  ईश्वर को समर्पित कर दें ।

20  फिर कागज पर लिखे मन्त्र को पढ़कर वहीं से सम्बन्धित ग्रह के पौराणिक मन्त्र का जप आरम्भ कर दें।
 कम से कम एक बार या (सूर्योदय के बाद के) बीस मिनट पूर्ण होने तक जितनी बार  मन्त्र जप हो सके करें। 
फिर बिना कुछ बोले ही सीधे घर आजायें।

21 घर आनें के बाद फिर आवश्यक कर्तव्य कर्म पूर्ण कर सकते हैं। किन्तु प्रयत्न पूर्वक उसी दिन कमसे कम उस ग्रह के पौराणिक मन्त्र की एक माला जप अवश्य करलें।
तथा फिर नित्य कमसे कम एक माला जप अवश्य ही करें।

22 अपरिहार्य परिस्थिति में जप हो पाये ना हो पाये अतः सुर्योदय पश्चात या देरी से उठें तो सुबह जागते ही/ बिस्तर छोड़नें से पहले और नहाते समय तथा सामान्य पूजा करते समय बिना माला के  एक बार मन्त्र जप अवश्य करें। ता कि लांघा ना हो।

23 जनन अशोच (बिरदी) में, मरणाशोच (सूतक) में, ग्रहण, बिमारी में, यात्रा में, स्नान न हो पाये तो भी मन ही मन जप अवश्य करें किन्तु गीनें नही। गणना में न लें।

24 माला दाहिने हाथ (सीधे हाथ) की बड़ी उँगली मध्यमा पर रखकर अंगूठे की सहायता से अपनी ओर घुमाएँ।
 माला में एक फुन्दा/ फूल होता है उसे सुमेरु कहते हैं। सुमेरू आते ही सुमेरु को दोनों भौंहों (भृकुटी) के बीच आज्ञाचक्र से स्पर्ष करा कर नमन करे और फिर बड़ी उँगली मध्यमा और अंगुठा मिलाकर माला अंगूठे पर लेकर बड़ी उँगली मध्यमा में माला लेकर माला को उलट लें/ पलटी मारदें। क्योंकि, सुमेरु का उल्लंघन नही होता है।

25 यदि आसन पर बैठकर जप करें तो आसन का कोणा उठाकर उस जगह भूमि पर जल छिड़क कर दाहिने हाथ की बीच की दो उँगलियों (मध्यमा और अनामिका) सें उस गीली भूमि का स्पर्ष कर के वह जल भृकुटी मध्य और नैत्र त्रय पर लगायें। फिर उठें।

26 -- एक माला से कम हो तो ना गिनती में ना लें यानी नोट ना करें।
प्रयत्न पूर्वक एक बैठक में कमसे कम एक माला अवश्य पूर्ण करलें। 
जितनी माला पूर्ण होती जाये लिखते जायें। माना कि, पहले दिन पाँच माला हुई तो छोटी डायरी में 05 लिख कर माला के साथ ही रखदें। दुसरे दिन सात हुई तो दिनांक डालकर (पिछली पाँच और आज की सात मिलाकर) 12 लिखलें। तिसरे दिन दस माला की तो (पिछली बारह और आज की दस मिलाकर) 22 लिखलें।  माला संख्या पूर्ण होजायेगी तो स्वतः पता चल जायेगा।

 27  जब किसी को दो या दो से अधिक ग्रहों के मन्त्र जप करना हो तब ज्योतिषी  घातक फल रोकनें के लिए या वाञ्छित शुभ फल की तत्कालीन आवश्यकतानुसार  दशा और गोचर देखकर बतलायेंगे कि, पहले कौन से ग्रह के मन्त्र का जप करना है और कौनसा बाद में। 
यदि ऐसा नही बतलाए या किसी एक दो ग्रहों के लिए ही निर्देश देकर शेष ग्रहों के जप का वरीयता क्रम न बतलाये तो जिसकी जप संख्या (माला की संख्या) सबसे कम हो वह पहले करें ताकि, एक कार्य पूर्ण हो जाये। 
फिर बचे ग्रहों में से सबसे कम जप संख्या वाले दुसरे  ग्रह का जप करें। 
ऐसे क्रम से सबसे अन्त में अधिकतम माला (जप संख्या) वाले ग्रह का मन्त्र जप करें। 
 एस साथ करनें में कोई भी पूरा नही होगा।

28  चाहे तो दस या पाँच माला रोज करके एक सप्ताह में  दो सप्ताह में बुध मन्त्र जप  पूरा हो ही जायेगा।
दस माला करनें में डेड़ / दो घण्टा लगेंगे। पाँच माला भी की तो एक घण्टे से कम समय लगेगा। और जप धीरे धीरे पूरे होजायेंगे।

29 सभी देवता विष्णु को भोग लगा भोजन / नैवेद्य ही ग्रहण करते हैं।
अग्नि परमात्मा का मुख है अतः पहले  छोटी सी टिकड़ी जैसी रोटी बनाकर उसमें घीँ लगाकर थोड़ा सा गुड़ और तुलसी दल रखकर भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पण कर 
मन्त्र बोलकर ⤵️
 ॐ अग्नये स्वाहा स्वाहाः।इदम् अग्नये न मम्। बोलकर अग्नि में डालें अर्थात अग्नि को भोग लगायें। किन्तु तुलसीदल अग्नि में न डालें। 
फिर पहली रोटी बनें वह गौमाता को दीजाती है उसमें यह तुलसी दल (गायकी रोटी में) रखलें।

30 रोज पहली रोटी में सम्बन्धित ग्रह का की खाद्यवस्तु और अनाज रखकर देशी गाय को खिलाना चाहिए। और अन्तिम रोटी कुत्ते को खिलाना चाहिए। यह कर्म भी सपोर्टिंग सिस्टम का कार्य करेगा।

31 सुबह का भोजन बनाकर किसी को भी भोजन परोसनें के पहले भोजन बनाकर सर्वप्रथम तुलसी दल रखकर भगवान विष्णु को भोजन का नैवैद्य लगायें। तदुपरान्त ही पहले अतिथि को भोजन करायें, फिर घर के बुजुर्ग वृद्ध - वृद्धाओं को, प्रसुताओं को, बालक/ बालिकाओं को, और  घर में यदि कोई रोगी या अशक्त हो तो उन रोगियों को पहले भोजन करवायें। या उनके लिए पहले निकालें।  बादमें स्वयम् ग्रहण करें।
 
32 *नवग्रह स्तोत्र* 

सभी ग्रहों के मन्त्र और उनके हिन्दी अर्थ।
जिस मन्त्र का जप करना हो उसका अर्थ अच्छी तरह समझलें।

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।। (रवि)
जो जपा पुष्प के समान अरुणिमा वाले महान तेज से संपन्न अंधकार के विनाशक सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं 
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।। (चंद्र)
जो दधि, शंख तथा हिम के समान आभा वाले छीर समुद्र से प्रादुर्भूत भगवान शंकर के सिरो भूषण तथा अमृत स्वरूप है उन चंद्रमा को मैं नमस्कार करता हूं।


धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं ।। (मंगळ)
जो पृथ्वी देवी से उद्भूत विद्युत की कांति के समान प्रभाव आ दें कुमारावस्था वाले तथा हाथ में  शक्ति लिए हुए हैं उन मंगल को मैं प्रमाण प्रणाम करता हूं।


प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं ।। (बुध)
जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले अतुलनीय सौंदर्य वाले तथा सौम्य गुण से संपन्न है उन चंद्रमा के पुत्र बुद्ध को मैं प्रणाम करता हूं।


देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं (गुरु)
जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं स्वर्णिम आभा वाले हैं ज्ञान से संपन्न है तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूं।

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।। (शुक्र) 
जो हिमकुंद पुष्प तथा कमलनाल के तंतु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि ध्रुव के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूं। 

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।। (शनि)
जो नीले कज्जल के समान आभा वाले, सूर्य के पुत्र यम के जेष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तंड से उत्पन्न है उन शनिश्चर को मैं नमस्कार करता हूं।
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।। (राहू)
जो आधे शरीर वाले हैं महान पराक्रम से संपन्न है, सूर्य तथा चंद्रमा को ग्रसने वाले हैं तथा सिंह ही का के गर्भ से उत्पन्न उन राहों को मैं प्रणाम करता हूं।

पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।। (केतु)
पलाश पुष्प के समान जिनकी आभा है जो रुद्र शोभा वाले और रुद्र के पुत्र हैं भयंकर हैं तारक आधी ग्रहों में प्रधान है उनके तो को मैं प्रणाम करता हूं।

फलश्रुति :
इति व्यासमुखोदगीतं य पठेत सुसमाहितं दिवा वा यदि वा रात्रौ।
विघ्नशांतिर्भविष्यति नर, नारी, नृपाणांच भवेत् दु:स्वप्न नाशनं
ऐश्वर्यंमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनं।।
भगवान वेद व्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति को जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित होकर पाठ करता है उसके समस्त दिल शांत हो जाते हैं स्त्री पुरुष और राजाओं के दुख में दुख सपनों का नाश हो जाता है पाठ करने वाले को अतुलनीय ऐश्वर्या और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उसके पुष्टि की वृद्धि होती है

इति श्री व्यासविरचित आदित्यादि नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं

इसमें सभी ग्रहों की दान सामग्रियों का चार्ट बना दिया है। इसका एक बार सुबह एक बार शाम को करना चाहिए।

31 प्रत्यैक ग्रह की ग्यारह प्रकार की दान सामग्री दान करना होती है। ग्रहों ये दान सामग्रियाँ क्या है और कहाँ मिलेगी यह भी यह भी बतलाया है।⤵️

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें