कलियुग की कालावधि चार लाख बत्तीस हजार वर्ष होती है। कलियुग में एकमात्र कल्कि अवतार होते हैं।
कुछ लोग श्रीमद्भागवत पुराण में उल्लेख बतलाकर बिहार और नेपाल की सीमा पर लुम्बिनी नामक स्थाध पर ईसापूर्व 563 में राजा शुद्धोदन की पत्नी मायादेवी के गर्भ से जन्में सिद्धार्थ गोतम बुद्ध को विष्णुअवतार मानते हैं। किन्तु यह सही नही लगता क्योंकि,
1तथागत बुद्ध का वर्णन रामायण अयोध्या काण्ड/सर्ग 108 एवम् 109 में है। सर्ग 109 के 34 वें श्लोक में श्रीराम ने जाबालि को बुद्ध के मत को माननें वालों से वार्तालाप करना तक निषिद्घ और उन्हें चोर के समान दण्ड का पात्र बतलाया है। मतलब बुद्ध और उनके मतावलम्बी श्रीरामचन्द्रजी के पूर्व में भी थे। स्पष्टतः यह वर्णन श्रमण सम्प्रदाय का है जो वर्तमान में 1नागा,2 शैव, 3 शाक्त, 4 गाणपत्य, 4 नाथ,6 जैन और 7बौद्ध सम्प्रदाय के रूप में पाया जाता है।
श्रीबुद्ध नामक बुद्धावतार द्वापर युग में श्रीकृष्ण के बाद कीटक नामक स्थान पर आश्विन शुक्ल दशमी (विजयादशमी/ दशहरे) के दिन अजिन के घर हुआ।
हरिवंश पुराण 01/41, विष्णु पुराण 3/18, पद्म पुराण3-252 एवम् गरुड़ पुराण उ/15/26 में मायामोह और नग्न नाम से श्रमण और जैन सम्प्रदाय का वर्णन है।
सिद्धार्थ गौतम बुद्ध जिनका जन्म बिहार नेपाल सीमा वर्ती लुम्बिनी नामक स्थान पर 563 ई.पू. हुआ। उनके पिता राजा शुद्धोधन तथा माता का नाम माया देवी था। सिद्धार्थ के जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि, यह बालक चक्रवर्ती राजा होगा या बुद्ध होगा।
मतलब उनके जन्म के पहले कोई बुद्ध हो चुके थे। उन श्रीबुद्धावतार के अनुयायी और उनके पन्थ पर जैन तिर्थंकर और अन्य बुद्ध तथा सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भी चले थे।
जबकि भविषपुराण में तथागत गोतम बुद्ध को राक्षस कहागया है। और कल्कि पुराण में तो सिद्धार्थ गोतम बुद्ध और उनके माता मायादेवी और पिता शुद्दोधन पुनः उत्पन्न होकर अपने अनुयायी बौद्धों को साथ लेकर कल्कि अवतार से युद्ध करनें और परास्त होनें का वर्णन है।
अतः सिद्धार्थ विष्णु अवतार तो कदापि नही माने जा सकते।
(कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष युग की इकाई है।)
द्वापर की कालावधि कलियुग से दुगनी आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष होती है। द्वापर में श्रीकृष्ण और बलराम अथवा मतान्तर से श्रीकृष्ण और श्रीबुद्ध दो अवतार होते हैं।
पुराणों में उल्लेख और संकल्प बोले जानेवाले तथा पञ्चाङ्गो में लिखे जानेंवाले चौवीस अवतारों में से इक्कीसवें और दशावतारों में नौवे अवतार श्री बुद्धावतार द्वापर युग में श्रीकृष्ण जन्म के बाद आश्विन शुक्ल दशमी (विजयादशमी/ दशहरे) के दिन कीटक नामक स्थान पर अजिन के घर हुआ बतलाया जाता है। किन्तु कोई विशेष प्रामाणिक उल्लेख उपलब्ध नही है।
( 4,32,000 वर्ष × 2 = 8,64,000 वर्ष। है ना द्वापर।)
त्रेता की कालावधि कलियुग से तिगुनी बारह लाख छियानवे हजार वर्ष होती है। त्रेता में वामन, परशुराम और श्रीराम ये तीन अवतार होते हैं।
(4,32,000 वर्ष × 3 = 12,96,000 वर्ष। है ना त्रेता।)
कृतयुग (सतयुग) की कालावधि कलियुग से चौगुनी सत्रह लाख अट्ठाइस हजार वर्ष होती है। सतयुग में मत्स्यावतार (मधुकैटभ का वध कर ब्रह्मा जी को वेद / ज्ञान लोटानें वाले।।), कश्यप (समुद्रमंथन), वराह (हिरण्याक्ष वध कर भूमि सागर में लुप्त भूमि का उद्धार करनें वाले।) तथा नृसिंह (हिरण्यकशिपु का वध कर प्रहलाद के उद्धारक।) ये चार अवतार होते हैं।
4,32,000 वर्ष × 4 = 17,28,000 वर्ष। है ना कृतयुग।)
प्रत्येक महायुग उक्त चारों युगों की कालावधि का योग है। अर्थात 43,20,000 वर्ष में ये चारों युग एक एक बार आते हैं। अतः हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के एक दिन अर्थात 4,32,00,00,000 वर्ष में यानी एक कल्प में एक हजार बार आते हैं। हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के प्रत्यैक दिवस के बाद इतनी ही अवधि की रात्रि या नैमित्तिक प्रलय रहता है जिसमें पूरी सृष्टि बीज रूप में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के चित्त में रहती है और कल्पारम्भ में पुनः प्रकट होती है।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा का एक दिन अर्थात एक कल्प (4,32,00,00,000 वर्ष) प्रजापति ब्रह्मा की आयु होती है। 30,67,20,000 वर्ष का मन्वन्तर होता है। प्रत्यैक कल्प में पहले और 17,28,000 वर्ष यानी कृतयुग तुल्य सन्धि फिर मन्वन्तर, फिर सन्धि फिर मन्वन्तर ऐसे क्रम में चौदह मन्वन्तर और पन्द्रह सन्धि होती है। सं्धि की अवधि में जैविक प्रलय रहता है। केवल मन्वन्तर काल में ही जैविक सृष्टि रहती है। अर्थात एक कल्प में 4,29,40,80,000 वर्ष ही जैविक सृष्ट रहती है और 2,59,20,000 वर्ष जैविक प्रलय रहता है।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की आयु स्वयम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के सौ वर्ष के बराबर है अर्थात मानवीय वर्ष में ब्रह्मा की आयु इकतीस नील, दस खरब, चालिस अरब वर्ष है। (31,10,40,00,00,00,000 वर्ष है) इसमें 360×100 दिन होंगे।अर्थात 36,000 दिन। (ब्रह्मा की आयु में 36,000 कल्प होते हैं।)
अतः हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की पूरी आयु में 4,29,40,80,000 × 36000 = 15,45,86,88,00,00,000 वर्ष जैविक सृष्टि रहती है। और 15,64,53,12,00,00,000 वर्ष निर्जीव अवस्था ही रहती है।
36,000 × 1000 =3,60,00,000 महायुग होते हैं।
अर्थात ब्रह्मा की आयु में तीन करोड़, साठ लाख बार कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग की आवृत्ति होती है।
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