भगवान आद्य शंकराचार्य जी का मुख्य कार्य ग्यारह उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता और आचार्य बादरायण रचित शारीरिक सूत्र का भाष्य कर अद्वैत वेदान्त मत को सुदृढ़ कर वैदिक अभेद दर्शन को शास्त्रीय स्वरूप प्रदान करने, स्मार्त मत स्थापना, बौद्धों को शास्त्रार्थ में और तानत्रिकों को उनके स्तर पर युद्ध आदि कर विजय कर उन्हें शुद्ध कर स्मार्त मत में सम्मिलित करना रहा है।
विभिन्न बौद्ध मठ मन्दिरों का अधिग्रहण तथा देवी-देवताओं के स्तोत्र रचना में तो परवर्ती शंकराचार्यों का योगदान भी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें