शुक्रवार, 16 मई 2025

अन्धविश्वास और अन्ध अविश्वास दोनों ही समान हानिकारक है।

अन्धविश्वास हो या अन्ध अविश्वास हो इन्हीं दो मुर्खता के कारण सभी सम्प्रदायों का बण्टाढार हो गया।

पूर्ण सत्य तक तो मन्त्रदृष्टा ऋषिगण ही पहूँच पाते हैं।
लेकिन जैसे 

निम्बार्काचार्य और रामानुजाचार्य जी के तर्कों के समाधान के बिना शंकराचार्य जी का दर्शन अधूरा है। 
वैसे ही 

वेद मन्त्रों को समझने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ बने। ब्राह्मण ग्रन्थों के अलग-अलग विषयों को लेकर उपवेद और वेदाङ्ग बने।
(वेदाङ्ग के कल्प के अन्तर्गत ही शुल्ब सूत्र, श्रोत सूत्र, गृह्य सूत्र , और धर्मसूत्र आते हैं।)
फिर षड दर्शन बने, जिसमें वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों के पूर्वभाग कर्मकाण्ड के आधार पर बने शुल्ब सूत्र, श्रोत सूत्र, गृह्य सूत्र , और धर्मसूत्रके स्पष्टीकरण हेतु जेमिनी का पूर्व मीमांसा दर्शन और वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों के अन्तिम भाग आरण्यक और उपनिषदों के स्पष्टीकरण हेतु बादरायण का उत्तर मीमांसा दर्शन बना जिसमें स्मृति अर्थात रामायण-महाभारत और पुराणों तक के प्रमाणों को स्वीकार किया गया। 
इन सब के अध्ययन, मनन, चिन्तन और निदिध्यासन के बिना वेद मन्त्रों का अर्थ नही समझा जा सकता।

वेदों को मन्त संहिता कहते हैं और वेद मन्त्रों को ब्रह्म कहते हैं। तो मन्त्र दृष्टा हुए बिना ब्रह्म ज्ञान केवल दिवास्वप्न मात्र है।

अर्थात विश्व में कुछ भी ऐसा नहीं है जो उपयोग विहीन हो।

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