अयनांश परिभाषा* ---
*चित्रा तारे से १८०° स्थित स्थिर भचक्र के कल्पित आरम्भ बिन्दु से चलायमान वसन्त सम्पात की अंशात्मक दूरी अयनांश कहलाता है।*
भूमि के केन्द्र से आकाश में मध्य रेखीय अक्षांश परिकल्पित किया गया उसे विषुववृत कहते हैं।
और भूमि के सूर्य परिभ्रमण मार्ग या भूमि की कक्षा को क्रान्तिवृत कहते हैं।
सभी ग्रहों का परिभ्रमण मार्ग अर्थात ग्रह की कक्षा विषुववृत और क्रान्तिवृत्त का ही अनुसरण करतीं हैं।
जब भी कोई एक वृत्त दुसरे वृत्त को काटता है तो जिन दो बिन्दुओं पर काट (क्रास) बनता है उसे पात कहते हैं।
क्रान्तिवृत विषुववृत्त को दो बिन्दुओं पर परम क्रान्ति कोण अर्थात २३°२६'१२.८३" का कोण बनाते हुए काटता है। इन बिन्दुओं को सम्पात कहते हैं। उत्तर सम्पात को वसन्त सम्पात और दक्षिण सम्पात को शरद सम्पात कहते हैं। क्योंकि, ऋतुओं का कारण ये सम्पात ही है।
(भूमि से सूर्य की उत्तर मा दक्षिण की और कोणीय स्थिति को क्रान्ति कहते हैं। इसी क्रान्ति शब्द से संक्रान्ति शब्द बना है।)
आकाश में ताराओं के समुह द्वारा निर्मित विशिष्ट आकृति के आधार पर भारत में नक्षत्रों के नामकरण हुए हैं। क्योकि, तारे दीर्घ काल तक प्रायः एक ही स्थान पर दिखते हैं। इस कारण कुछ तारों का समुह मिलकर एक विशेष आकृति बन जाती है जिसे नक्षत्र कहते हैं। इनमें जिस तारे की द्यूति अधिक दिखती है उसे योगतारा कहते हैं। बेबिलोनिया में इसी आधार पर द्वादश राशियों का नामकरण हूआ।
नक्षत्र मण्डल भूमि ( भूमि के सापेक्ष में सूर्य) की परमक्रान्ति से प्रायः आठ-नौ अंश उत्तर और दक्षिण में ही सभी ग्रहों की परम क्रान्ति होती है। अतः विषुव वृत्त और क्रान्तिवृत के आसपास की यह पट्टी नक्षत्र मण्डल या भृचक्र कहलाता है। अंग्रेजी में इसे फिक्स्ड झाडिएक कहते हैं। क्यों कि, इसकी आकृतियाँ लम्बे समय तक प्रायः अपरिवर्तित रहती है।
भूकेन्द्रीय गणना में सूर्य चन्द्रमा और ग्रहों के ३६०° सायन विशुवांश की गणना विषुव वृत्त में करते हैं। और नाक्षत्रीय गणना में भचक्र में भचक्र में नक्षत्रों की गणना या क्रान्तिवृत में निरयन अंशादि की गणना की जाती है।
भचक में चित्रा तारे को विषुव वृत्त के मध्य अर्थात १८०° पर स्थित मानकर चित्रा के तारे से १८०° पर भचक्र का आरम्भ बिन्दु मान लिया गया है। क्योंकि
वर्तमान में इस स्थान/ बिन्दु पर कोई तारा नही है। इस बिन्दु को नाक्षत्रिय गणना में १३°२०' के निश्चित भोगमान वाले काल्पनिक सत्ताईस नक्षत्रों में अश्विनी नक्षत्र का आरम्भ बिन्दु मानते हैं।
और ३०° के निश्चित भोगमान वाली बारह राशियों में निरयन मेष राशि का आरम्भ बिन्दु मानते हैं।
वसन्त सम्पात लगभग २५७८० वर्ष में अपना परिभ्रमण चक्र पूर्ण करता है अतः विषुववृत में लगभग ५०.३" प्रतिवर्ष की वाम गति से पश्चिम की ओर खिसकता रहता है।
निरयन मेषादि बिन्दु और वसन्त सम्पात की दूरी अयनांश कहलाता है।
*तदनुसार अयनांश परिभाषा* ---
*चित्रा तारे से १८०° स्थित स्थिर भचक्र के कल्पित आरम्भ बिन्दु से चलायमान वसन्त सम्पात की अंशात्मक दूरी अयनांश कहलाता है।*
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