सोमवार, 22 अगस्त 2022

गोबर गणेश पूजन।

*गोबर गणेश पूजन।* 

*किसी भी देवता की धातु, रत्न, पत्थर, लकड़ी की मुर्ति का ही वर्णन पढ़ा है, गोबर का नही।
शायद ही किसी आम्नाय के किसी आगम लेखक नें गोबर से मुर्ति रचना की कल्पना की हो।
गणेश पूजन की परम्परा तो यह है कि, दाहिने हाथ के अंगूठे बराबर का मिट्टी के डली में ही गणपति की भावना कर स्थापना पूजन और विसर्जन किया जाता है।*

लेकिन दिवाली के दुसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा में गोबर के गोवर्धन पर्वत बना कर उसमें श्रीकृष्ण भाव से  पूजन होता है। 
कर्मकाण्ड हेमाद्रि प्रयोग में तो पूरे शरीर पर पञ्चगव्यलेप कर के स्नान करना और पञ्चगव्य पान करना (पीना) होता है।
अर्थात परम्परागत रूप से गोबर पूजा में स्वीकार्य है। और गोबर से बनी प्रतिमा की पूजा भी होती रही है।

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग नें तो विगत कुछ वर्ष पहले यह पहल आरम्भ की। तो लोगों नें विचार आरम्भ किया। तब भी किसी शास्त्री/ आचार्य/ सन्त/ महन्त ने आपत्ति नहीं उठाई।
*तार्किक दृष्टि से मल अन्ततः मल ही होता है। बेयर ग्रील भी संकट काल में ही हाथी के मल से पानी निकाल कर पीते है। अनावश्यक नही।*
गोबर गणेश मुहावरे से प्रभावित महेश्वर के किसी  व्यक्ति नें गोबर गणेश निर्माण कर  गोबर गणेश मन्दिर बना दिया और गोबर गणेशों ने गोबर गणेश की पूजा आरम्भ कर दी।
श्री अजय सिंह चौहान द्वारा लिखित अद्भुत है 500 साल पुरानी गोबर गणेश की यह प्रतिमा लेख और एक अन्य लेख से ज्ञात हुआ कि,
मध्य प्रदेश के नीमाड़ क्षेत्र में नर्मदा नदी के किनारे बसे *महेश्वर* नामक प्राचीन कस्बे *के महावीर मार्ग पर आने वाले भक्तों को गोबर गणेश का दक्षिण मुखी मंदिर का आकार हैरान कर देता है। एक तरफ मंदिर का बाहरी आकार किसी मस्जिद के गुंबद की तरह है तो वहीं मंदिर के अंदर की बनावट लक्ष्मी यंत्र की तरह लगती है। 
बताया जाता है कि औरंगजेब के शासन काल में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का प्रयास किया गया था, जिसके कारण मंदिर के गुंबद का आकार मस्जिद जैसा है।
दक्षिणमुखी मंदिर इस में विराजमान भगवान का नाम गोबर गणेश बुद्धूपन से संबंधित हिन्दी के एक बहुत ही प्रचलित मुहावरे की ओर संकेत करता है। 
महेश्वर नगर वासियों के अनुसार इस गोबर गणेश मन्दिर की स्थापना गुप्त काल में हो चुकी थी, इसी कारण यह मंदिर एक ऐतिहासिक महत्व का मंदिर है और क्रुर मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर के महत्व को देखते हुए इस क्षेत्र के अन्य मंदिरों की तरह ही गोबर गणेश के इस मंदिर को भी तूड़वाकर उस पर एक मस्जिद बनवाने का प्रयास किया था, जिसके कारण मंदिर के गुंबद का आकार आज भी मंदिर की तरह न होकर मस्जिद जैसा ही है, जबकि मंदिर के अंदर की बनावट लक्ष्मी यंत्र की तरह लगती है। लेकिन बाद में स्थानीय लोगों और अन्य श्रद्धालुओं ने यहां पुनः मूर्ति की स्थापना करके, इसमें पूजा-पाठ प्रारंभ कर दिया और इस मंदिर के महत्व को कायम रखा।*
आमतौर पर हर पूजा-पाठ में हम गोबर के गणपति बनाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। क्योंकि मिट्टी और गोबर की मूर्ति में पंचतत्वों का वास माना जाता है और खासकर गोबर में तो मां लक्ष्मी साक्षात वास करती हैं। इसलिए ‘लक्ष्मी तथा ऐश्वर्य’  प्राप्ती हेतु इसकी पूजा की जाती है।
पण्डितों का कहना है कि,भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को पूजन के लिए हमारे पूर्वज गोबर या मिट्टी से ही गणपति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते थे और आज भी यहां यह प्रथा प्रचलित है। इसी प्रकार गोबर एवं मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमाओं को ही पूजन में ग्रहण करते हैं।
*गोबर और मिट्टी से बनी गणेश जी की इस मूर्ति को बनाने में 70 से 75 फीसदी गोबर और 20 से 25 फीसदी मिट्टी और अन्य दूसरी सामग्री का प्रयोग किया गया है।*
गोबर गणेश की इस प्रतिमा की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई थी इसके विषय में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।लेकिन 
*पुरातत्व विद स्व.श्री विष्णुदत्त श्रीधर वाकणकर ने जब इस मूर्ति का निरीक्षण किया था तो उन्होंने पाया कि 10 फुट ऊंची यह मूर्ति लगभग 500 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है। जबकि कुछ लोग इसे करीब 900 वर्ष पुरानी प्रतिमा भी मानते हैं।
गणेश जी की प्रतिमा के हाथ में भी लड्डू हैं, रिद्धि-सिद्धि भी इनके साथ विराजित हैं और मूषक भी इनके चरणों में बैठे हुए है। कमल के फूल पर स्थापित गजानन की ये प्रतिमा* श्रृंगार होने के बाद ओर भी मनमोहक लगने लगती है।
गोबर गणेश मंदिर में आने वाले भक्तों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों को भगवान गणेश के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है। 
मान्यता है कि यहां जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर आता है वह उल्टा स्वास्तिक बनाकर लगाता है और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो स्वास्तिक को सीधा कर देते हैं। गौरतलब है कि अधिकतर गणेश मंदिर में उल्टा स्वस्तिक बनाने का विधान है। माना जाता है कि ऐसा करने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
*इस मंदिर की प्राचीनता व प्रसिद्धि के चलते मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मंदिर को धार्मिक स्थलों में शामिल किया गया है। मंदिर की देखरेख ‘श्री गोबर गणेश मंदिर जिर्णोद्धार समिति’ करती है।*

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