भद्रा अर्थात विष्टि करण।
तिथ्यर्ध भाग को करण कहते हैं।
नाक्षत्रीय / निरयन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्र मास वाले तिथि पत्रक में करण बतलाये जाते हैं। और भद्रा अर्थात विष्टि करण को प्रायः त्याज्य माना जाता है।
शुक्ल पक्ष की एकादशी, पूर्णिमा तिथि तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया, सप्तमी, दशमी तिथियाँ शुभ मानी जाती है लेकिन इन तिथियों में निरयन कर्क-सिंह और कुम्भ- मीन के चन्द्रमा में भद्रा की अवधि अशुभ मानी जाती है। कुछ आचार्यों के मत में इसमें अत्यावशक कार्य होनें पर शुक्ल पक्ष की चतुर्थी एवम् एकादशी तिथि तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया एवम् दशमी तिथि के उत्तरार्ध वाली भद्रा यदि रात्रि में पड़े तो अशूभ तथा दिन में पड़े तो अशुभ नही मानी जाती। ऐसेही
शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी एवम् तिथि के पूर्वार्ध वाली भद्रा यदि दिन में रहे तो अशुभ लेकिन रात्रि भाग में अशुभ नहीं मानी जाती है।
इसी प्रकार अत्यावश्यक कार्य हो तो भद्रा पुच्छ में भी शुभकार्य किया जा सकता है।
कुछ नवीन आचार्यों का मत है कि, दोपहर पश्चात भद्रा के अशुभ फल कम हो जाते हैं। अतः आवश्यक कार्य किए जा सकते हैं।
*लेकिन इनके शुभाशुभ फलों का कोई तार्किक आधार कहीँ पढ़ने में नही आया।*
कर्क - सिंह और कुम्भ - मीन के चन्द्रमा के राशिचार में भी भद्रा वास भूमि पर सम्मुख भद्रा होने पर विष्टि करण भद्रा में विवाह संस्कार, मुण्डन संस्कार, गृह-प्रवेश, रक्षाबंधन,नया व्यवसाय प्रारम्भ करना, शुभ यात्रा, शुभ उद्देश्य हेतु किये जाने वाले सभी प्रकार के कार्य भद्रा काल में नही करना चाहिए।
कर्क - सिंह और कुम्भ - मीन के चन्द्रमा में भद्रा के भूमिवास / सम्मुख रहने के समय सम्बन्धित प्रहर का लगभग १घण्टा १२ मिनट अर्थात तिथि का ५१/५ भाग या भद्रा काल का ५१/१० भाग अर्थात ५.१ भाग को छोड़ शेष भाग त्याग देना चाहिए।
लेकिन
कर्क - सिंह और कुम्भ - मीन के चन्द्रमा के राशिचार में भी भद्रा वास भूमि पर सम्मुख भद्रा होने पर अति आवश्यक कार्य करना हो तो सम्बन्धित प्रहर का लगभग १घण्टा १२ मिनट अर्थात तिथि का ५१/५ भाग या भद्रा काल का ५१/१० भाग अर्थात ५.१ भाग में भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते हैं।
जब भद्रा पुच्छ का समय हो तो, विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भी भद्रा वाली तिथि के सम्बन्धित प्रहर की प्रारंभ की २ घण्टे (5 घटी) अर्थात भद्रा वाली तिथि का १/१२ भाग जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।
भद्रा ५ घटी मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है।
२ घटी कंठ में रहती है तो धन का नाश होता है।
११ घटी हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है।
और
३ घटी पुच्छ में स्थित रहती है तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
लेकिन
कर्क - सिंह और कुम्भ - मीन के चन्द्रमा के राशिचार में भी भद्रा वास भूमि पर सम्मुख भद्रा होने पर भद्रा की पुच्छ के अतिरिक्त समय में भी क्रूर कर्म, आपरेशन करना, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना,युद्ध करना, किसी को विष देना,अग्नि कार्य,किसी को कैद करना, अपहरण करना, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों का उपयोग,शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य इत्यादि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं।
भद्रा पुच्छ की अवधि ज्ञात करने का सुत्र -
मुहूर्त चिन्तामणि के अनुसार -
सुचना - भद्रा जिस तिथि में हो उस तिथि की अवधि के अनुसार गणना दी गई है।
शुक्ल पक्ष की
चतुर्थी तिथि का उत्तरार्ध में तिथि आरम्भ से तिथि मान का ७/८ भाग से १११/५ भाग भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात लगभग २१ घण्टे से २२घण्टे १२ मिनट तक।
अष्टमी तिथि का पूर्वार्ध में तिथि के आरम्भ से ६/५ भाग तक भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात भद्रा आरम्भ से लगभग ०१ घण्टा १२ मिनट तक।
एकादशी तिथि का उत्तरार्ध में तिथि आरम्भ से तिथि मान का ५/८ भाग से ८१/५ भाग भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात लगभग १५ घण्टे से १६ घण्टे १२ मिनट तक।
पूर्णिमा तिथि का पूर्वार्ध में पूर्णिमा तिथि आरम्भ से पूर्णिमा तिथिमान का १/४ भाग से ३६/५ भाग तक भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात तिथि आरम्भ से ०६ घण्टे से लगभग ०७ घण्टा १२ मिनट तक।
कृष्ण पक्ष में
(१८ वीं ) तृतीया तिथि उत्तरार्ध में तिथि आरम्भ से तिथि मान का ३/४ भाग से ९६/५ भाग भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात लगभग १७ घण्टे से १९ घण्टे १२ मिनट तक।
(२२ वीँ ) सप्तमी तिथि का पूर्वार्ध में तिथि आरम्भ से तिथि मान का १/८ भाग से ४१/५ भाग भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात लगभग ०३ घण्टे से ०४ घण्टे १२ मिनट तक।
(२५ वीं ) दशमी तिथि उत्तरार्ध में तिथि आरम्भ से तिथि मान का १/२ भाग से ६६/५ भाग भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात लगभग १२ घण्टे से १३ घण्टे १२ मिनट तक।
(२९ वीँ ) चतुर्दशी तिथि का पूर्वार्ध में तिथि आरम्भ से तिथि मान का ३/८ भाग से ५१/५ भाग भद्रा पुच्छ होता है। अर्थात लगभग ०९ घण्टे से १० घण्टे १२ मिनट तक।
सुचना - मुहुर्त चिन्तामणी में सुगमता की दृष्टि से तिथि मान से गणना दी है। लेकिन सुक्ष्मता की दृष्टि से यह त्रुटि पूर्ण है।
सुक्ष्मता की दृष्टि से करण अर्थात तिथ्यर्ध के आधार पर गणना होना चाहिए। तिथि मान १९ घण्टा ५९ मिनट से २६ घण्टा ४७ मिनट तक होता है। अतः तिथ्यर्ध अर्थात करण का मान लगभग १० घण्टे से १३ घण्टे २४ मिनट तक हो सकता है।
अतः तदनुसार गणना करना चाहिए।
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