गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

कुछ महत्वपूर्ण एस्ट्रोनॉमिकल सुचनाएँ

(१) Fixed zodiac पर नक्षत्र पट्टी में चित्रा नक्षत्र के तारा से आरम्भ होकर उसी तारे पर भूमि के सूर्यपरिभ्रमण या सापेक्ष में निरयन मेषादि बिन्दु से आरम्भ होकर पूनः निरयन मेषादि बिन्दु पर सूर्य के लौटने पर एक नाक्षत्र वर्ष या निरयन सौर वर्ष पूर्ण होता है।
(२) क्रान्तिवृत के इस वृत्त के बारहवें भाग ३०° में भूमि के सापेक्ष सूर्य के रहने की अवधि को एक नाक्षत्र मास कहते हैं। और ३६० वें भाग अर्थात ००१° पार करने की अवधि को एक नाक्षत्र दिन कहते हैं।
(३) क्रान्ति Declination  से पूर्ण असम्बद्ध होनें के कारण नाक्षत्र मास के आरम्भ बिन्दुओं पर सूर्य की स्थिति को संक्रान्ति कहना अनुचित है किन्तु सिद्धान्त ग्रन्थों में इसके लिए निरयन संक्रान्ति शब्द रूढ़ हो गया है। 
(४) एस्ट्रोनॉमिकल इफेमेरीज /Nautical almanac में दिये जाने वाले नक्षत्र योगताराओं के सायन भोगांश कुछ वर्षों में परिवर्तित होते रहते हैं । जबकि, इन्हीं नक्षत्र योगताराओं के निरयन राशिअंशादि हजारों वर्ष तक अपरिवर्तित है।
(५) नक्षत्र पट्टी Fixed zodiac पर ही नक्षत्रों की आकृति हजारों वर्षों तक यथावत रहती हैं। इस कारण हमारे कृषक भी चलते रास्ते आकाश में देखकर बतला देते हैं कि, सूर्य, चन्द्रमा किस नक्षत्र पर है या शुक्र और ब्रहस्पति और मंगल किस नक्षत्र में हैं। सूर्योदय पूर्व और सूर्यास्त पश्चात आकाश अवलोकन करने वाले सूर्य किस नक्षत्र में हैं बतला देते हैं।
(६) इसी प्रकार मेसोपोटामिया की राशियों की आकृति भी इस नक्षत्र पट्टी Fixed zodiac पर ही हजारों वर्षों से अपरिवर्तित है।
जबकि सन २८५ ईस्वी में जो चित्र सायन और निरयन मेष राशि का था चित्र था सन २४३३ ईस्वी में वही चित्र निरयन मेष राशि तथा सायन वृष राशि का हो जायेगा।
इसी कारण नक्षत्रों को नाक्षत्रीय गणना/ निरयन गणना पर आधारित ही मानना होगा।
(७) लेकिन १३°२०' के एक समान निश्चित मान वाले न मानकर दो नक्षत्र योगताराओं के बीच के सन्धि स्थल से अगले दो  योग ताराओं के सन्धि स्थल तक नक्षत्रमान माना जाना उचित होगा।जैसा कि, जातक/ होरा शास्त्र में दो भावों की सन्धियों के बीच के अंशादि में भाव  माना जाता है।
जबकि, भाव स्पष्ट से भाव स्पट के बीच भाव House मानने वाली यूरोपिय पद्यति के अनुसार नक्षत्र योग तारा को आरम्भ बिन्दु  मानना भी अनुचित ही है।
(८) तदनुसार ही चैत्रादि मासों को निरयन संक्रान्तियों पर आधारित ही मानकर सायन संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्रवर्ष का आरम्भ मास बदलते हुए पीछे की ओर चलना पड़ेगा। जैसा कि वैदिक साहित्य में उल्लेख मिलता है। 
सन २४३३ ईस्वी में सायन सौर संस्कृत चान्द्र संवत्सर का आरम्भ फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से होगा।
(९) जैसा कि, वैदिक साहित्य में वैशाख मास (अक्षय तृतिया), माघ मास (लगधाचार्य का वेदाङ्ग ज्योतिष), और कभी मार्गशीर्ष मास/ अग्रहायण (श्रीमद्भगवद्गीता), कभी कार्तिक मास (गुजरात), कभी आश्विन मास (नवरात्र) से संवत्सर आरम्भ बतलाया जाता है।
(१०) भू केन्द्रीय सूर्य स्पष्ट में चित्रा के योगतारा पर सूर्य होने के समय पर या सूर्य केन्द्रीय Heliocentric position में चित्रा नक्षत्र के योग तारा तारे पर भूमि होनें के समय (अर्थात निरयन मेष संक्रान्ति के समय) सायन  सूर्य स्पष्ट  से और निरयन सूर्य मेष ००° के अन्तर को नोट कर स्पष्ट अयनांश ज्ञात किया जा सकता है। अथवा वसन्त सम्पात के समय भू केन्द्रीय निरयन ग्रहस्पष्ट में सूर्य का चित्रा नक्षत्र के योग तारा से १८०° पर स्थित निरयन मेषादि बिन्दु से अंशात्मक दूरी को नोट कर स्पष्ट अयनांश ज्ञात कर सकते हैं।
(११) १८वर्ष ११ दिन में  ग्रहण  पुनरावर्तित होता है। और १८ वर्ष १८ दिन में ४१ सूर्यग्रहण और २९ चन्द्रग्रहण होते हैं।
भास्कराचार्य के अनुसार १९,१२२ और १४१ वर्ष में अर्थात २८२ वर्ष में निरयन सौर वर्ष और निरयन सौर राशियों पर आधारित चान्द्र वर्ष यथावत पूनरावर्तित होते हैं।
(१२) अर्थात जैसे निरयन सौर संस्कृत चान्द्र पञ्चाङ्ग में तिथि, करण, नक्षत्र, निरयन सूर्य के अंशादि और विष्कुम्भादि योगों की आवृत्ति लगभग २८२ वर्षों में होती है ऐसे ही सायन सौर संस्कृत चान्द्र पञ्चाङ्ग में भी लगभग २८२ वर्षों में ही आवृत्ति हो सकती है। क्योंकि, २८२ वर्षों में अयनांश केवल ४° ही पीछे जायेगा। अर्थात सायन सौर वर्षारम्भ (वसन्तसम्पात) और निरयन सौर वर्षारम्भ (निरयन मेष संक्रान्ति) में केवल ४ दिन का अन्तर आयेगा।

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