आजकल वाल्मीकि रामायण में उल्लेख के अनुसार भगवान श्री रामचन्द्र जी के जन्म समय की गणना करने का प्रयत्न किया जा रहा है। यह प्रयास उत्तम और प्रशंसनीय है।
वस्तुतः प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेखित कुछ ऐसे तथ्य इनके रचना काल या ग्रन्थ में वर्णित घटना की कालावधि जानने में सहायक होते हैं यथा---
(१) १२,८९० वर्ष का पात चक्र - सत्ताइस योगों में वसन्त सम्पात का भ्रमण। व्यतिपात और वैधृति पात जिस क्रम से बतलाये गये हैं और वास्तव में जब व्यतिपात और वैधृति पात होते हैं इसमें अन्तर करने से पता चलता है कि, इन योगों में वर्तमान में सत्रहवें स्थान पर व्यतिपात बतलाया है। जिस समय इन योगों का चलन हुआ जब वसन्त सम्पात वास्तव में व्यतिपात पर था। तदनुसार यह समय आजके लगभग २३,००० वर्ष पूर्व बैठता है।
(२) २५,७८० वर्ष का अयन चक्र। ऋतुओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका इसी अयन चक्र और भूमि के अक्षांशों की संयुक्त रूप से है। इससे लगभग सभी विद्वान परीचित हैं।
(३) १,०९,७१६ वर्ष का उपभू/अपभू (मन्दोच्च) चक्र - Perigee/Apogee भी चलनशील है। यह सूर्य से भूमि की अधिकतम और न्यूनतम दूरी दर्शक चक्र है इसका भी आंशिक प्रभाव जलवायु पर पड़ता है। तत्कालीन जलवायु के वर्णन में भी इसका प्रभाव दिखता है।
ऐसे आधारों का संयुक्तिकरण कर ठीक-ठीक समय के पर्याप्त निकट पहूँच सकते हैं।
ऐसे ही आधारों पर डॉ॰ वर्तक ने
अपने सुविख्यात ग्रंथ 'वास्तव रामायण' में मुख्यतः ग्रह गतियों के आधार पर गणित करके वाल्मीकीय रामायण में उल्लिखित ग्रहस्थिति के अनुसार राम की वास्तविक जन्म-तिथि ०४ दिसंबर ७३२३ ईसापूर्व को सुनिश्चित किया है। उनके अनुसार इसी तिथि को दिन में ०१:३० बजे से ०३:०० बजे के बीच श्री राम का जन्म हुआ होगा।
डॉ॰ पी॰ वी॰ वर्तक के शोध के अनेक वर्षों के बाद १९९४ ईस्वी से 'आई-सर्व' के एक शोध दल ने
महर्षि वाल्मीकि ने बाल काण्ड के सर्ग १८ के श्लोक ८ से १० में वर्णित भगवान श्रीरामचन्द्र जी के जन्म के समय की ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थितियों के आधार पर भगवान श्रीरामचन्द्र जी की जन्मतिथि निश्चित करने का प्रयत्न किया। -
वाल्मीकि ने बाल काण्ड के सर्ग १८ के श्लोक ८ से १० में वर्णित भगवान श्रीरामचन्द्र जी के जन्म समय का निम्नांकित वर्णन है---
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः ।
ततश्च द्वद्शे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ । ८ ।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु ।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह । ९ ।
प्रोद्दमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतं ।
कौसल्याजनयद् रामं दिव्यलक्षणसंयुतम् । १० ।
अर्थ – यज्ञ समाप्ति के पश्चात जब छः ऋतुएं बीत गईं, तब बारहवें मासमें चैत्र के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त, सर्वलोकवन्दित श्रीराम को जन्म दिया । उस समय पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा कर्क लग्न में चंद्रमा के साथ वृहस्पति विराजमान थे । लेकिन उस समय कौनसे ग्रह उच्च के थे और उस समय उक्त ग्रहों का उच्चांश क्या था यह नही लिखा है। जैसा कि मैंनें पहले बतलाया है कि, १,०९,७१६ वर्ष का उपभू/अपभू (मन्दोच्च) चक्र - Perigee/Apogee भी चलनशील है। ऐसे ही सभी ग्रहों के मन्दोच्च, शिघ्रोच्च का चक्र है। तदनुसार ग्रहों के उच्चांश, नीचांश परिवर्तनशील है। जबतक यह गणना नही होजाती कि, श्रीराम के जन्म समय ग्रहों के उच्चांश - नीचांश कितने राशि अंशादि पर थे, इस वर्णन के आधार पर कुछ भी सोचना व्यर्थ और निरर्थक है।
परम्परागत रुप से वर्तमान में सूर्य और ग्रहों उच्चांश को आधार मानकर सूर्य का उच्च स्थान मेष १०° तक माना। अतः बुध अपने उच्च स्थान अर्थात् कन्या में नहीं हो सकता । इसलिए वाल्मीकि जी द्वारा वर्णित पांच ग्रहों में बुध नहीं है । ऐसा मानकर लोगों ने मान लिया कि, अन्य ग्रहों नक्षत्रों की स्थितियों इस प्रकार थी :-
चैत्र माह, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न, सूर्य मेष में, चन्द्रमा कर्क राशि/ पुनर्वसु नक्षत्र में, मंगल मकर में, बृहस्पति कर्क में, शुक्र मीन में, शनि तुला में रहे होंगे ऐसा मानकर 'आई-सर्व' के शोध दल ने 'प्लेनेटेरियम गोल्ड' सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके पता लगाया कि,
अयोध्या अर्थात उत्तर अक्षांश २६°४८' तथा पूर्व देशांतर ८२°१२' पर ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की आकाशीय स्थिति श्री रामचन्द्र जी की कुण्डली से जिस दिन मैल खाते हैं। वह दिन १० जनवरी ५११४ ईसापूर्व में दोपहर के समय भगवान श्री रामचन्द्र जी का जन्म हुआ था। लेकिन यह गलत आधार पर निकला गलत निष्कर्ष है।
आई-सर्व' के शोध दल का मानना था कि इस तिथि को ग्रहों की वही स्थिति थी जिसका वर्णन वाल्मीकीय रामायण में है। परंतु यह समय काफी संदेहास्पद हो गया है। क्योंकि---
(१) 'आई-सर्व' के शोध दल ने जिस 'प्लेनेटेरियम गोल्ड' सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया वह वास्तव में ईसा पूर्व ३००० वर्ष से पहले का सही ग्रह-गणित करने में सक्षम नहीं है।
(२) वस्तुतः २०१३ ईस्वी से पहले इतने पहले का ग्रह-गणित करने हेतु सक्षम सॉफ्टवेयर उपलब्ध ही नहीं था।
(३) इस गणना द्वारा प्राप्त ग्रह-स्थिति में शनि वृश्चिक में था अर्थात उच्च (तुला) में नहीं था। चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में न होकर पुष्य के द्वितीय चरण में ही था तथा तिथि भी अष्टमी ही थी।
(४) बाद में अन्य विशेषज्ञ द्वारा "ejplde431" सॉफ्टवेयर द्वारा की गयी। तब सही गणना करने पर नवमी तिथि आई। परन्तु शनि वृश्चिक में ही आता है तथा चन्द्रमा पुष्य के चतुर्थ चरण में आता है।
इसके अलावा भी निम्नांकित आपत्तियों का उत्तर नही दिया जा सका ---
(५) अधिकांश विद्वानों नें श्रीराम के जन्मकालिक ग्रह वर्णन महर्षि वाल्मीकि की रचना नही माना। क्योंकि, महर्षि वाल्मीकि यदि बतलाते तो ग्रहों की स्थिति नक्षत्रों में बतलाते। पाँच ग्रह उच्च के नही बतलाते।
(६) प्रायः सभी विद्वानों की मान्यता है कि, होरा शास्त्र में प्रचलित उच्च के ग्रहों का तात्पर्य मन्दोच्च और शिघ्रोच्च से है जो गतिशील है। स्थिर नही।
अतः यह नही कहा जा सकता कि, श्री राम के जन्म समय में भी सूर्य-चन्द्र और ग्रहोंके उच्चांश वही होंगे जो वर्तमान में जातक/ होरा शास्त्र में प्रचलित हैं।
(७) Apogee भूमि से सबसे दूर सूर्य या चन्द्रमा होने पर सूर्य और चन्द्रमा उच्चांश का होता है।
Perigee भूमि से सबसे निकट सूर्य या चन्द्रमा होने पर सूर्य और चन्द्रमा नीचांश का होता है।
Aphelion सूर्य से ग्रह की अधिकतम दूरी मतलब उच्चांश का ग्रह।
Periphelion ग्रह का सूर्य के निकटतम होना नीचांश पर ग्रह।
उस समय के Apogee और Aphelion की गणना किये बिना उस समय सूर्य- चन्द्रमा तथा ग्रह उच्च के थे या नही ऐसा नही कहा जा सकता।
(८) ग्रेगोरियन केलेण्डर सायन सौर वर्ष से सम्बद्ध है। अतः अयोध्या में वसन्त ऋतु २०/२१ मार्च के आसपास ही रहेगी चाहे पचास हजार वर्ष ईसा पूर्व हो या पचास हजार ईस्वी हो।
(९) वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री रामचन्द्र जी के जन्म के समय के विवरण के अनुसार उस समय अयोध्या में वसन्त ऋतु थी।
(१०) वसन्त ऋतु में २२ मार्च २८५ ईस्वी को निरयन मेष संक्रान्ति हुई थी। इसके पहले २१ मार्च २५४९५ को निरयन मेष संक्रान्ति हुई थी। और आगे वसन्त ऋतु में २१ मार्च २६०६५ ईस्वी को निरयन मेष संक्रान्ति होगी।
(सुचना - वास्तव में संक्रान्ति शब्द सायन गणना में ही उचित है। नाक्षत्रीय गणना में नक्षत्र होते हैं , और निरयन गणना राशियाँ होती है, लेकिन सौर क्रान्ति (Declination) के बिना संक्रान्ति कैसे होगी? लेकिन यह विषयानन्तर है। अतः रोकता हूँ।)
(११) अयोध्या में दिसम्बर - जनवरी में वसन्त ऋतु होना सम्भव ही नही है।
वर्तमान में निरयन मकर संक्रान्ति में १४ जनवरी को होती है। इसके पहले वसन्त ऋतु में २१ मार्च १९०५० ई.पु. मे निरयन मकर संक्रान्ति होती थी। और
ई.पू.५११४ के आसपास की अवधि में। वसन्त ऋतु में वसन्त सम्पात के दिन २१ मार्च ४०१२ ई.पू. को निरयन मिथुन संक्रान्ति होती थी।तथा
२१ मार्च ६१६० ई.पू.वसन्त ऋतु में वसन्त सम्पात के दिन को निरयन कर्क संक्रान्ति हुई थी।
उक्त सभी वर्षों में २१ मार्च को वसन्त ऋतु ही रहेगी।
अर्थात यह सिद्ध है कि, १० जनवरी ५११४ में अयोध्या में वसन्त ऋत नही थी।
अर्थात उक्त विधि से भी श्री रामचन्द्र जी की तिथि वस्तुतः राम की जन्म-तिथि सिद्ध नहीं हो पाती है।
इसलिए मुझे इन गणनाओं में केवल मेण्टल जिम्नास्टिक से अधिक कुछ नहीं लगता है।
ऐसी स्थिति में या तो सॉफ्टवेयर द्वारा डॉ० पी० वी० वर्तक द्वारा पहले ही परिशोधित तिथि प्रमाणित नही होने तक तो नवीन तिथि के शोध का रास्ता खुला रहेगा। अथवा उचित तो यही होगा कि, सनातन धर्म के ग्रंथों या शास्त्रों में वर्णित तिथि ही सर्वमान्य प्रमाण माना जाये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें