बुधवार, 13 अप्रैल 2022

हिन्दू शब्द का सही अर्थ

सिन्धु शब्द के स का उच्चारण ह होनें का सिद्धान्त सरासर मिथ्या है। क्योंकि, भारत में सिकन्दर के आक्रमण के पहले से ईरान में प्रचलित हिन्दू शब्द प्राचीन ईरानी साहित्य में प्रचलित था।

एक लेख में उल्लेख है कि, जरथुस्त्र रचित- उनके धर्म गृन्थ की आयत 163 वें में लिखा है –

” अकनु विर हमने व्यास नाम अज हिन्द आमद दाना कि अकल चुनानेस्त वृं व्यास हिन्दी वलख आमद ,गस्ताशप जरतस्त रख ,ख्वानंद मन मरदे अम हिन्दी निजात व हिन्दुवा जगस्त”

मतलब ईरान में हिन्दू शब्द जरथुस्त्र के समय से प्रचलित है।

फारसी के प्राचीन शब्दकोशों के अनुसार हिन्दूशब्द का अर्थ काला, कलूटा,दास दस्यु ,चोर, डाकू, लुटेरा, सेंधमार , लूच्चा, लफङ्गा, बदमाश, मिथ्या भाषी (झूठा), आदि अर्थों में प्रयुक्त होता था।

अतः सिन्धु शब्द का फारसी उच्चारण हिन्दू कदापि सत्य नही हो सकता।

किन्तु सिकन्दर के आक्रमण के समय तो ठीक शकों और हूणों के आक्रमण तक भी किसी भारतीय नें अथवा भारतीय ग्रन्थ में हिन्दू जाति, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, या हिन्दूदेश हिन्दूस्थान या हिन्दूस्तान शब्द के प्रयोग भारतीय या संस्कृत ग्रन्थ और भारतीय इतिहास में नही पाया जाता है।

हिन्दू-कुश को संस्कृत साहित्य और इतिहास में पारियात्र पर्वत कहा जाता था और बाद में यह हिन्दू-कुश के नाम से प्रसिद्ध हो गया | फारसी भाषा में कुश शब्द का अर्थ होता है क़त्ल करना | जिस स्थान पर हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ हो वह स्थान हिन्दू-कुश कहलाता है, – जैसे खुद-कुशी |

भविष्य पुराण में हिन्दूस्थान शब्द आया है।किन्तु उसमें तो राजाभोज का इतिहास तो है ही पृथ्वीराज चौहान, जयचन्द , अकबर और विक्टोरिया तक का इतिहास भविष्यकालिन रूप में नही बल्कि भूतकालिक रूप में दिया है।

बृहस्पति आगम -- आचार्य बृहस्पतिजी ने विशालाक्ष शिव द्वारा रचित राजनीति शास्त्र के ग्रन्थ का सार संक्षेप बार्हस्पत्य शास्त्र नामक ग्रन्थ में किया। वराहमिहिर ने बृहत्संहिता की रचना की। बृहत्संहिता की रचनाके बाद लगभग 300 ई. में बृहस्पति-आगम की रचना हुई। अतः ब्रहस्पति आगम में हिन्दू शब्द या भारत को हिन्दस्थान कहना कोई आश्चर्यजनक नही है। क्योंकि, उस समय पारसी आक्रमणकारियों ने यही शब्द प्रचलित कर दिया था।

शैव तन्त्र के मेरुतंत्र नामक ग्रन्थ को बने हुए 300-400 वर्ष ही हुए हैं । अतः इसमें आये हिन्दू शब्द और उसका अर्थ देना कोई महत्व नही है।

पारिजात हरण नाटक लगभग 1325 ई. के आसपास अलाउद्दीन खिलजी के समकालीन मिथिलानिवासी उमापति उपाध्याय ने पारिजात हरण नाटक की रचना की थी। अतः इसमें आये हिन्दू शब्द और उसका अर्थ देना कोई महत्व नही है।

सम्राट विक्रमादित्य के समय 58 ई.पू. से 34 ई. के बीच रचित अमरकोश उपलब्ध कोषों में सबसे प्राचीन कोश है जिसमें हिन्दू शब्द नही है। शेष सभी कोश राजा भोज के समय 1000ई के बाद के हैं। उनमें से एक कल्पद्रुम नामक शब्दकोश भी परवर्ती ही है।कल्पद्रुम लक्ष्मीधर रचित है ।लक्ष्मीधर गडहवाल वंशी कन्नोजके राजपूत राजा गोपीचंद का मन्त्री था। जयचन्द गोपीचन्द का ही वंशज था जो ईसा की तेरहवीं सदी का है। अतः इसमें आये हिन्दू शब्द और उसका अर्थ देना कोई महत्व नही है।

माधव या माधव विद्यारण्य का समय 1296 -1386 का है वे विजयनगर साम्राज्य हरिहर राय और बुक्काराय के गुरु, संरक्षक,दार्शनिक सन्त थे। अतः माधवविजय भी ईसा की चौदहवीं सदी का ग्रन्थ है।

कालिका पुराण दसवी शताब्दी का ग्रन्थ है। और शारंगधर पद्धति रचना 1363 ई. मे हुई |

अर्थात उक्त समस्त ग्रन्थ भारत में इस्लामिक शासन स्थापित होजाने के पश्चातवर्ती हैं। अतः मुस्लिमों द्वारा भारतियों के प्रति कहेजानेवाले अपमानजनक शब्द हिन्दू को संस्कृत शब्द घोषित करना उनलोगों रचनाकारों द्वारा शर्म छुपाने का प्रयास मात्र था।

कुछ आलेखों में कहा गया कि ऋग्वेद के अष्टम मण्डल में द्वितीय सुक्त के 41 वें मन्त्र में विवहिन्दू नामक किसी दानी राजा का वर्णन है। किन्तु श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी का ऋग्वेद सुबोध भाष्य में 08/02/41 में विवहिन्दु नही मिला। विभिन्दो या विऽभिन्दो शब्द को भ्रमवश विवहिन्दू समझने की भूल हुई होगी।

मूल मन्त्र प्रस्तुत है---

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:2» मन्त्र:41 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:24» मन्त्र:6 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:41

देवता: विभिन्दोर्दानस्तुतिः ऋषि: मेधातिथिः छन्द: पादनिचृद्गायत्री स्वर: षड्जः

शिक्षा॑ विभिन्दो अस्मै च॒त्वार्य॒युता॒ दद॑त् । अ॒ष्टा प॒रः स॒हस्रा॑ ॥

पद पाठ

शिक्ष॑ । वि॒भि॒न्दो॒ इति॑ विऽभिन्दो । अ॒स्मै॒ । च॒त्वारि॑ । अ॒युता॑ । दद॑त् । अ॒ष्ट । प॒रः । स॒हस्रा॑ ॥ ८.२.४१

पदार्थान्वयभाषाः -(विभिन्दो) हे शत्रुकुल के भेदन करनेवाले (ददत्) दाता ! आप (अस्मै) मेरे लिये (अष्टा, सहस्रा, परः) आठ सहस्र अधिक (चत्वारि, अयुता) चार अयुत (शिक्षा) देते हैं ॥४१॥

भावार्थभाषाः -सूक्त में क्षात्रधर्म का प्रकरण होने से इस मन्त्र में ४८००० अड़तालीस हज़ार योद्धाओं का वर्णन है अर्थात् कर्मयोगी के प्रति जिज्ञासुजनों की यह प्रार्थना है कि आप शत्रुओं के दमनार्थ हमको उक्त योद्धा प्रदान करें, जिससे शान्तिमय जीवन व्यतीत हो ॥४१॥

अन्य प्रकार से अर्थ ऐसा हो सकता है।

पदार्थान्वयभाषाः -(विभिन्दो) हे पुरन्दर=दुष्ट जनों का विशेषरूप से विनाश करनेवाले और शिष्टों के रक्षक ईश ! (ददत्) यद्यपि तू आवश्यकता के अनुसार सबको यथायोग्य दे ही रहा है। तथापि (अस्मै) इस मुझ उपासक को (चत्वारि) चा२र (अयुता) अयुत १०००× दश सहस्र=१००००×४=४०००० अर्थात् चालीस सहस्र धन (शि३क्ष) दे तथा (परः) इससे भी अधिक (अष्ट+सहस्रा) आठ सहस्र धन दे ॥४१॥

भावार्थभाषाः -यद्यपि परमात्मा प्रतिक्षण दान दे रहा है, तथापि पुनः-पुनः उसके समीप पहुँच कर अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्त्यर्थ निवेदन करें और जो नयनादि दान दिए हुए हैं, उनसे काम लेवें ॥४१॥

टिप्पणी:१−विभिन्दु−भिदिर् विदारणे। पुरन्दर और विभिन्दु दोनों एकार्थक हैं। जो दुष्टों के नगरों को छिन्न-भिन्न करके नष्ट कर देता है, वह विभिन्दु।

सम्भवतः वि॒भि॒न्दो॒ या विऽभिन्दो शब्द से यह भ्रम हुआ है।

अब उचित समय है इस शब्द को त्याग कर वेदिकालीन शब्द ब्राह्म धर्म (अर्थात वेदिक धर्म) या परम्परागत सनातन धर्म ही अपनाना ही उचित होगा।

उल्लेखनीय है कि, वेदमन्त्रों को ब्रह्म कहते हैं अतः वेद आधारित धर्म ब्राह्म धर्म और दृढ़तापूर्वक ब्राह्म धर्मांचरणरत व्यक्ति ब्राह्मण कहलाता था। ब्राह्मण जाति नही थी। श्रोत्रिय, वेदिक और ब्राह्मण समानार्थी शब्द थे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें