आधुनिक भाषा में भूत प्रेत को योनि नही माना जाता। मरा हुआ व्यक्ति ही देहरहित कभी कभी दिखता है ऐसा मानते हैं।
आधुनिक भाषा में भूत प्रेत को योनि नही माना जाता। मरा हुआ व्यक्ति ही देहरहित कभी कभी दिखता है ऐसा मानते हैं।
प्रचीन भारत में ऐसी कोई अवधारणा नही थी।
पहले भूत यानि हुआ, हो चुका, जैसे आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि नामक पञ्च महाभूत जो क्रमशः शब्द (आकाश), स्पर्ष (वायु), रूप (अग्नि), रस (जल), गन्ध (भूमि) तन्मात्राओं से हुए / अवधि शब्द भये। ( भये प्रकट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी।)
और प्रेत मतलब शव होता था। मृत शरीर को प्रेत कहते थे। न कि, क्रियाशील निर्जीव व्यक्ति या सदा नशे में रहने वाले जाम्बी।
इस्लामिक काल के बाद यदि किसी भारतीय को कोई देवता भी दिखता होगा तो वह व्यक्ति भूत समझ कर भाग जाता होगा। गुलामी की जड़ें बहुत गहरी है। महाभारत काल में इन्हे देव योनियाँ कहा जात था।
जोरस्टर के पहले ईरानी अथर्वेद और अवेस्ता को मानने वाले इन्द्रावरुण के लिये होम करनें वाले वर्णाश्रम धर्मी मग और श्रमण संस्कृति के शैव मीढ होते थे।
इराकी अश्शुर संस्कृति के वाहक इस्लाम में भी देव मतलब भयानक और अश्शुर (असूर) विरोधी माना जाता है। इराक की अश्शुर संस्कृति से प्रभावित से जरथ्रुस्त (जोरस्टर) के अनुयाई बनने के बाद ईरान में जोरस्ट्रियन पारसी लोग असुर को पुज्य और देवी- देवताओं को भयंकर माननें लगे।
उनके देखादेखी भारतियों नें भी भूत की अवधारणा अपना ली और उनहें भी मानवेत्तर आसूरी योनियों को भी देवी-देवता बोलनें लगे। किन्तु ये कथित देवी-देवता श्रद्धेय, शरणाङ्गत वत्सल और भय निवारक न होकर भयकारी मानें जाते हैं। इनसे बचनें के लिये गायत्रीमन्त्र और हनुमान चालीसा पढ़कर वास्तविक देवी देवताओं की शरण ली जाती है।
एक ही शब्द देव के दो भावों में अलग अलग और विपरीत अर्थ होगये।
मूलतः जिन्हें भूत-प्रेत, जिन्न-जिन्नात बोला जाता है वे गन्धर्व, यक्ष, रक्षोहा (राक्षस), यातुधान या पिशाच आदि कोई योनि के जीव होते हैं। न कि, मरा हुआ व्यक्ति।
मरने के बाद वह व्यक्ति इनमें से गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, या पिशाच आदि किसी योनि में आ गया हो यह सम्भव है।
इसलिए मूलतः जिन्हें हम भूत-प्रेत समझते हैं वे गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, या पिशाच योनि के जीव हो सकते हैं।
यदि ये जीव हैं योनियाँ है, तो इनमें जैविक लक्षण श्वसन, ग्रहण, उत्सर्जन, प्रजनन, प्रचलन रोग और चिकित्सा आदि गुण होना आवश्यक है। इस सम्बन्ध में कई घटनाएँ पढ़ने सुनने में आती है। कुछ प्रसिद्ध घटनाएँ ये हैं -
१ कुछ प्रकरण ऐसे बतलाये जाते हैं जिसमें कोई मानवीय चिकित्सक को किसी प्रसुता की प्रसूति करवाने के लिए कोई वृद्ध बग्घी लेकर आते हैं और चिकित्सक को साथ में ही ले जाते हैं। दुसरी बार जब चिकित्सक वहाँ जाते हैं तो उस पुराने खण्डहर में सर्वत्र मकड़ी के जाले आदि पाते हैं। जहाँ वर्षों से कोई नही आया। लेकिन वहाँ उनके द्वारा प्रयोग किये गये इंजेक्शन एम्पूल, और गोली दवाइयों की स्ट्रिप्स पड़ी हुई मिलती है।
मतलब प्रजनन होता है।
२ चिकित्सा करवाने के लिए चिकित्सक को ले जाने के प्रकरण भी प्रचलित हैं।
२ कुछ प्रचलित प्रकरणों में तथाकथित भूत-प्रेत हाँपते हुए भी वर्णित हैं। अर्थात श्वसन करते हैं।
४ भूत-प्रेतों के मिठाई खरीदने, बीड़ी-सिगरेट मांगने जैसे किस्से तो इतने आम हैं कि, बहुत से लोग इससे परिचित होंगे।
अर्थात ग्रहण करते हैं। जब ग्रहण करते हैं तो उत्सर्जन करते होंगे यह तर्क लगाया जा सकता है।
५ चलते-फिरते हैं यह तो सर्वमान्य है। अर्थात प्रचलन भी होता है।
६ तथाकथित भूत-प्रेतों में परस्पर विवाह, भूत का मानवी स्त्री से विवाह और भूतनी/ चुड़ेल का मानव नर से विवाह होना तथा यौन सम्बन्ध होना भी बहुत प्रचलित है।
७ तथाकथित भूत प्रेतों में बच्चों का लालन-पालन कर उन्हें बड़ा करने के प्रकरण भी सुनने पढ़ने में आते हैं।
ये सभी प्रकरण नेट पर और भूत-प्रेत साहित्य में सहज उपलब्ध है।
कुल मिलाकर उक्त घटनाओं के आधार पर यह सिद्ध है कि, जीव विज्ञान में जीवित प्राणी के जितने लक्षण बतलाए हैं वे सब लक्षण तथाकथित भूत प्रेत में जीव के समस्त लक्षण पाये जाते हैं।
अतः यह सिद्ध होगया कि, ये जीव हैं। सनातन वैदिक धर्म दर्शन के अनुसार कोई व्यक्ति मरने के बारह दिन के अन्दर किसी न किसी योनि में प्रवेश कर ही लेता है। वह चाहे जड़ पाषाणादि योनि हो या विषाणु/ वायरस हो, एक कोशिय प्रोटोजोवा हो, बहुकोशिकीय स्थाणु पोरीफेरा हो, वृक्षगुल्म लता आदि स्थाणु हो, या सरल अकशेरुकी जन्तु हो या कशेरूकी जन्तु हो, कपि हो, वानर हो, पिशाच हो, राक्षस हो, दानव हो, दैत्य हो, यक्ष हो, मानव हो, किन्नर हो, गन्धर्व हों या कर्म देव हो, अग्नि, वायु आकाश आदि प्राकृतिक देवता अर्थात वैराज देव हो, रुद्र हो, वसु, आदित्य,, इन्द्र आदि आजानज देव (जन्मजात देवता) हो, प्रजापति, हिरण्यगर्भ, आदि ईश्वर श्रेणी के देवता अजयन्त देव हो
अन्ततः सब जन्मने मरने वाले हैं अर्थात योनियाँ ही है।
अतः हम मानवेत्तर सभी योनियों को कोई एक संज्ञा देना सम्भव नही है।
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