नक्षत्रों के देवताओं के आधार पर राशियों, नक्षत्रों और नक्षत्र चरणों (नवांशों) के स्वामी, नक्षत्र चरणानुसार जन्मनाम, और अंक विद्या। ---
नक्षत्र स्वामी ---
क्रमांक,नक्षत्र ,स्वामी, देवता
1 अश्विनी - शनि- अश्विनौ (शनि के सोतेले भाई।)
2 भरणी - शनि - यम (शनि के सोतेले भाई।)
3 कृतिका- मंगल- अग्नि (मंगल का नाम ही अङ्गारक है। )
4 रोहिणी- ब्रहस्पति- प्रजापति (दोनों देवगुरु हैं।)
5 मृगशीर्ष - चन्द्रमा - सोम (चन्द्रमा का नाम सोम है।)
6 आर्द्रा - शुक्र - रुद्र (शुक्राचार्य रुद्रोपासक और शंकर जी के शिश्य हैं।)
7 पुनर्वसु - नेपच्युन् (वरुण या इन्द्र) - अदिति (दोनों आदित्यों की माता,नेपच्युन् स्त्रैण ग्रह है।)
8 पुष्य- ब्रहस्पति - ब्रहस्पति (निर्विवाद।)
9 आश्लेषा - युरेनस - सर्प (वत्रासुर,राहु, नहुष और ड्रेगन भी सर्प है।)।
10 मघा - यूरेनस - पितृ (नहुष)
11 पूर्वाफाल्गुनी - मंगल-भग (ऊर्जा।)
12 उत्तराफाल्गुनी -शनि- अर्यमा (यम से सम्बधित आदित्य।)
13 हस्त - सूर्य -सवितृ (निर्विवाद।)
14 चित्रा -सूर्य- त्वष्टा (निर्विवाद/ दो पर्वतों के बीच उदयीमान सूर्य ।)
15 स्वाती - बुध - वायु (बुध वायवीय ग्रह है।)
16 विशाखा - नेपच्युन् - इन्द्राग्नि (इन्द्र।)
17 अनुराधा- बुध- मित्र (मैत्र ग्रह।)
18 ज्यैष्ठा-चन्द्रमा - वरुण / इन्द्र (सजल ग्रह/ पश्चिम दिशा।)
19 मूल-युरेनस - निऋति (आसुरी सम्पदा।)
20 पूर्वाषाढ़ा - चन्द्रमा - अप्.(सजल ग्रह।)
21 उत्तराषाढ़ा - मंगल- विश्वैदेवाः (पितरों के साथी, स्वधा से सम्बद्ध, स्वधा स्वाहा से सम्बद्ध।)
22 श्रवण - सूर्य - विष्णु (आदित्य।)
23 धनिष्टा - बुध - वसु (बुध धन सम्पत्ति का कारक ग्रह।)
24 शतभिषा - नेपच्युन् - इन्द्र/ वरुण (इन्द्र, सजल ग्रह।)
25 पूर्वाभाद्रपद - शुक्र - अजेकपात (रुद्र।)
26 उत्तराभाद्रपद - शुक्र- अहिर्बुधन्य (रुद्र।)
27 रेवती - ब्रहस्पति- पूषा (प्राचीन देव पुरोहित वृद्ध पुषा।)
उक्त आधार पर नक्षत्र स्वामी निर्धारित किये गये।
अब देखिये राशि स्वामी भी इन्ही नक्षत्रों के आधार पर निर्धारित किये है। जिस राशि में जिस ग्रह के नक्षत्रों का प्राधान्य वही राशि स्वामी है। ता कि, राशि और नक्षत्र मण्डल में उस राशि और नक्षत्र का कम से कम 13°20' का क्षेत्र का स्वामी एक ही रहे; में द्विविधता न हो (दुविधा न हो।)
सूर्य (केन्द्र, सूर्य और भूमि दोनों का प्रतीक, सूर्यकेन्द्रीय ग्रहों में भूमि और भू केन्द्रीय ग्रहों में सूर्य सदा 180° पर रहते हैं।),
ब्रहस्पति बड़ा ग्रह है, भविष्य का सूर्य है। और
चन्द्रमा सबसे निकटतम , मन का कारक
इस कारण इन तीनों ग्रहों को दो दो राशियाँ दी है। शेष को एक एक राशि। जबकि परम्परागत राशि स्वामी में सूर्य और चन्द्रमा को एक-एक राशि ही दी है।
राशियों के स्वामी ग्रह---
क्रमांक राशि, राशि स्वामी, सम्बन्धित नक्षत्र (जिनके स्वामी ही राशि के स्वामी माने हैं।)
1 मेष - शनि- अश्विनी (अश्विनौ), भरणी (यम)।
2 वृष - ब्रहस्पति - रोहिणी (प्रजापति)।
3 मिथुन - शुक्र - आर्द्रा (रुद्र)।
4 कर्क - ब्रहस्पति - पुष्य (ब्रहस्पति)।
5 सिंह - मंगल- पूर्वाफाल्गुनी (भग)।
6 कन्या - सूर्य - हस्त (सवितृ), चित्रा (त्वष्टा)।
7 तुला - बुध - स्वाती (वायु)।
8 वृश्चिक - चन्द्रमा - ज्यैष्ठा (वरुण/ इन्द्र)।
9 धनु - युरेनस - मूल (निऋति)।
10 मकर - सूर्य - श्रवण (विष्णु)।
11 कुम्भ - नेपच्युन् - शतभिषा (इन्द्र/ वरुण)।
12 मीन - शुक्र- पूर्वाभाद्रपद (अजेकपात), उत्तराभाद्रपद (अहिर्बुधन्य)।
नक्षत्र चरणों (नवांशों) के स्वामी --
क्रमांक,नक्षत्र ,नक्षत्र चरण स्वामी, नक्षत्र स्वामी, देवता।
1 अश्विनी - 1शनि, 2 बुध, 3 चन्द्रमा 4 शनि। (शनि- अश्विनौ )
2 भरणी -1शनि, 2 शनि, 3 शनि, 4 शनि। (शनि - यम )
3 कृतिका- 1 मंगल, 2 मंगल 3 मंगल,4 मंगल। (मंगल- अग्नि )
4 रोहिणी- 1ब्रहस्पति, 2 ब्रहस्पति 3 नेपच्युन्, 4 बुध। (ब्रहस्पति- प्रजापति )
5 मृगशीर्ष - 1चन्द्रमा, 2 चन्द्रमा, 3 चन्द्रमा, 4 चन्द्रमा। (चन्द्रमा - सोम )
6 आर्द्रा -1शुक्र,2 शुक्र,3 शनि 4 चन्द्रमा। (शुक्र - रुद्र )
7 पुनर्वसु - 1नेपच्युन्, 2नेपच्युन्, 3नेपच्युन्, 4 नेपच्युन्।(नेपच्युन् - अदिति )
8 पुष्य-1ब्रहस्पति, 2 ब्रहस्पति 3, ब्रहस्पति, 4 ब्रहस्पति। (ब्रहस्पति - ब्रहस्पति )
9 आश्लेषा - 1युरेनस, 2 यूरेनस, 3 युरेनस, 4 यूरेनस। (युरेनस - सर्प)
10 मघा - 1युरेनस, 2 युरेनस 3शनि, 4 चन्द्रमा। (युरेनस- पितृ)
11 पूर्वाफाल्गुनी - 1मंगल, 2 मंगल, 3 ब्रहस्पति 4 शुक्र। ( भग- मंगल )
उत्तराफाल्गुनी -1शनि, 2 शनि, 3 शुक्र, 4 चन्द्रमा।(शनि- अर्यमा )
13 हस्त -1सूर्य, 2 सूर्य, 3 सूर्य, 4 सूर्य। (सूर्य -सवितृ )
14 चित्रा -1सूर्य, 2सूर्य, 3 सूर्य,4 सूर्य। (सूर्य- त्वष्टा)
15 स्वाती -1बुध, 2 बुध, 3 बुध, 4 बुध। (बुध - वायु)
16 विशाखा -1नेपच्युन्, 2 नेपच्युन्, 3 मंगल ,4 मंगल । (नेपच्युन् - इन्द्राग्नि)
17 अनुराधा- 1बुध, 2 चन्द्रमा 3 शुक्र 4 बुध। (बुध- मित्र)
18 ज्यैष्ठा- 1चन्द्रमा -2 नेपच्युन्, 3 बुध 3 शुक्र । (चन्द्रमा- वरुण)
19 मूल -1युरेनस 2 युरेनस 3 युरेनस 4 युरेनस। (यूरेनस- निऋति)
20 पूर्वाषाढ़ा -1बुध, 2 चन्द्रमा, 3 शुक्र, 4 शुक्र। (चन्द्रमा - अप्)
21 उत्तराषाढ़ा -1मंगल, 2 मंगल, 3 ब्रहस्पति, 4 ब्रहस्पति। (मंगल- विश्वैदेवाः)
22 श्रवण - 1सूर्य, 2 सूर्य, 3 सूर्य 4 सूर्य। (सूर्य - विष्णु)
23 धनिष्टा -1बुध, 2 बुध, 3 मंगल 4 ब्रहस्पति। (बुध - वसु)
24 शतभिषा - 1 नेपच्युन्,2 नेपच्युन्, 3 नेपच्युन्, 4 नेपच्युन्। (नेपच्युन् - इन्द्र)
25 पूर्वाभाद्रपद - 1 शुक्र, 2 शनि,3 युरेनस, 4 शुक्र। शुक्र - अजेकपात
26 उत्तराभाद्रपद -1 शुक्र,2 शनि, 3 युरेनस, 4 शुक्र। (शुक्र- अहिर्बुधन्य)
27 रेवती - 1ब्रहस्पति, 2 ब्रहस्पति, 3 मंगल, 4 बुध। (ब्रहस्पति- पूषा)
शास्त्रों में ग्रहों के अधिदेवता प्रत्यधिदेवता ग्रहशान्ति प्रयोग के अन्तर्गत दिये गये है। उनके अतिरिक्त उनमे ये तीन और जोड़े जा सकते हैं।⤵️
भूमि की अधिदेवता श्रीदेवी और प्रत्यधिदेवता भूदेवी
युरेनस (हर्षल) के अधिदेवता निऋति और प्रत्यधिदेवता विरोचन।
नेपच्युन के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता वरुण।
2 - वैदिक कालीन दशाह पद्यति को इस रूप में पूनर्प्रचलित किया जाना उचित होगा।
(उल्लेखनीय है कि, वेदों में सप्ताह का उल्लेख नही मिलता क्योंकि, वैदिक काल में दशाह प्रचलित था।)
दशाह के वासर --
1रविवासर, 2 सौम्य वासर, 3 बुधवासर, 4 शुक्र वासर, 5 भूमिवासर, 6 मंगलवासर, 7 ब्रहस्पति वासर,8 शनिवासर, 9 निऋति वासर, 10 अदिति वासर।
जन्मनाम निर्धारण संस्कृत पद्यति से।
देखिये अग्निपुराण अध्याय 293 श्लोक 10 से 15 तक।
यह विधि अग्नि पुराण मन्त्र - विद्या के अन्तर्गत नक्षत्र - चक्र, राशि चक्र और सिद्धादादि मन्त्र शोधन प्रकार।से ली गई है।
जन्मलग्न के नक्षत्र चरण के अनुसार जन्मनाम/ देह नाम रखें।
नही बने तो अपवाद में दशम भाव स्पष्ट के नक्षत्र चरणानुसार कर्मनाम भी रख सकते हैं।
सुर्य के नक्षत्र चरणानुसार गुरु प्रदत्त अध्यात्मिक नाम / आत्म नाम।
तन्त्र क्रिया हेतु तान्त्रिक आचार्य प्रदत्त नाम मानस नाम जन्म कालिक चन्द्रमा के नक्षत्र चरणानुसार रखें।
राशि/नक्षत्र के चरणानुसार जन्म नाम का प्रथम वर्ण
राशि /नक्षत्र चरण 1 2 3 4
मेष / अश्विनि अ अ अ अ मेष / भरणी आ आ आ आ मेष / कृतिका इ
1 2 3 4
वृष / कृतिका इ ई ई
वृष / रोहिणी उ उ ऊ ऊ
वृष / मृगशिर्ष ऋ ऋ
1 2 3 4
मिथुन/ मृगशिर्ष ऋ ऋ
मिथुन/ आर्द्रा ए ए ऐ ऐ
मिथुन/पुनर्वसु ओ ओ औ
1 2 3 4
कर्क / पुनर्वसु औ
कर्क / पुष्य अं अं अः अः
कर्क / आश्लेषा क क ख ख
1 2 3 4
सिंह / मघा ग ग घ घ
सिंह/पुर्वाफाल्गुनि च च छ छ
सिंह/उत्तराफाल्गनि ज
1 2 3 4
कन्या/उत्तराफाल्गुनि ज झ झ
कन्या / हस्त ट ट ठ ठ
कन्या / चित्रा ड ड
1 2 3 4
तुला / चित्रा ढ ढ
तुला / स्वाती त त थ थ
तुला / विशाखा द द ध
1 2 3 4
वृश्चिक/ विशाखा ध
वृश्चिक/ अनुराधा न न न न
वृश्चिक/ ज्यैष्ठा प प फ फ
1 2 3 4
धनु / मुल ब ब भ भ
धनु / पुर्वाषाढ़ा म म म म
धनु / उत्तराषाढ़ा य
1 2 3 4
मकर/ उत्तराषाढ़ा य य य
मकर / श्रवण र र र र
मकर / धनिष्ठा ल ल
1 2 3 4
कुम्भ / धनिष्ठा ल ल
कुम्भ / शतभिषा व व व व
कुम्भ / पुर्वाभाद्रपद श श ष
1 2 3 4
मीन / पुर्वाभाद्रपद ष
मीन / उत्तराभाद्रपद स स स स
मीन / रेवती ह ह ह ह
मात्रा लगाने की विधि / नियम --
प्रथम एवम् त्रतीय चरण में मुल स्वर हैं। द्वितीय और चतुर्थ चरण में आ से औ तक की मात्रा वाले अक्षर जन्मनाम का प्रथमाक्षर रहेगा।
जिन नक्षत्रों में प्रथम और त्रतीय चरण में अलग अलग वर्ण हो उनमें द्वितीय चरण में प्रथम चरण के वर्ण में और चतुर्थ चरण में त्रतीय चरण के वर्ण में ००ं-००' से ००ं-२०' तक ा की मात्रा लगायें। तदनुसार ही आगे भी ००ं-२१' से ००-४०' तक ि की मात्रा लगायें।००ं-४१' से ०१ं-००' तक ई की मात्रा ।०१ं-०१' से ०१ं-२०' तक ु की मात्रा।०१ं-२१' से ०१ं-४०' तक ू की मात्रा।०१ं-४१' से ०२ं-००' तक ृ की मात्रा।०२ं-०१' से ०२ं-२०' तक े की मात्रा।०२ं-२१ से ०२ं-४०' तक ै की मात्रा। ०२ं-४१' से ०३ं-००' तक ो की आत्रा । और , ०३ं-००' से ०३ं-२०' तक ौ की मात्रा लगाकर नाम का प्रथमाक्षर रखें।
जबकि, जिन नक्षत्रों में चारों चरणों में एक ही व्यञ्जन हो वहाँ प्रथम एवम् द्वितीय चरण में मुल वर्ण से नाम का प्रथमाक्षर रहेगा।जबकि, तृतीय और चतुर्थ चरण में ००ं-००' से ००ं-४०' तक ा की मात्रा लगायें। तदनुसार ही आगे भी ००ं-४१' से ०१-२०' तक ि की मात्रा लगायें। ०१ं-२१' से ०२ं-००' तक ई की मात्रा ।०२ं-०१' से ०२ं-४०' तक ु की मात्रा । ०२ं-४१' से ०३ं-२० तक ू की मात्रा।०३ं-२१' से ०४ं-००' तक ृ की मात्रा।०४ं-०१' से ०४ं-४०' तक े की मात्रा।०४ं-४१ से ०५ं-२०' तक ै की मात्रा। ०५ं-२१ से ०६ं-००' तक ो की आत्रा । और , ०६ं-०१' से ०६ं-४०' तक ौ की मात्रा लगाकर नाम का प्रथमाक्षर रखें।】
नामकरण की सुविधार्थ अक्षरों के अंक⤵️
नाम की संस्कृत, / हिन्दी या मराठी वर्तनी के अक्षरों के अंक।
नाम सरनेम सहित जन्मसमय के सायन सौर गतांश का ईकाई अंक और नाम सरनेम सहित जन्म नाम के अंको को जोड़कर प्राप्त योगफल का ईकाई अंक एक ही हो।
0- अ, क, ट, प, ष, अः, क्ष, ऽ 0
1- आ, ख, ठ, फ, स, त्र , 1
2- इ, ई, ग, ड, ब, ह , 2
3- उ, ऊ, घ, ढ, भ, ळ 3
4- ऋ, ङ, ण, म, 4
5- ए, च, त, य, 5
6- ऐ, छ, थ, र, ज्ञ, 6
7- ओ, ज, द, द, ल, ड़,ॉ 7
8- औ, झ, ध, व, ढ़ ऴ 8
9- अं, ञ, न, श, 9
0- अ, क, ट, प, ष, अः, क्ष, ऽ 0
इसी प्रकार अंकविद्या में अंको का स्वामित्व भी इसप्रकार निर्धारित कर संस्कृत पद्यति से जन्मनाम निकालकर अंकविद्या अनुसार नाम निर्धारण किया जाना उचित होगा।
अनको के देवता और स्वामी ग्रह --
अंक स्वामी ग्रह। अधिदेवता / प्रत्यधिदेवता
0 सूर्य सवितृ / त्वष्टा 00
1 चन्द्रमा वरुण / सोम 01
2 शुक्र रुद्र / अहिर्बुधन्य 02
3 शनि यम / अश्विनौ 03
4 मङ्गल अग्नि / विश्वैदेवाः 04
5 भूमि विष्णु / विष्णु (सूर्य से 180° पर) 05
6 बुध वायु / वसु 06
7 ब्रहस्पति ब्रहस्पति / प्रजापति 07
8 युरेनस निऋति/ सर्प/ पितृ 08
9 नेपच्युन इन्द्र /अदिति 09
सुचना -- मेरी मंशा तो असमान भोगांश वाले अट्ठाइस नक्षत्रों के चरणों के अनुसार नामकरण करनें की विधि विकसित करनें की थी। किन्तु तैत्तरीय संहिता आदि प्राचीन वैदिक खगोलशास्त्रिय ग्रन्थों में स्थिर भृचक्र (Fixed Zodiac) में नक्षत्रों की दर्शाई गई आकृति के असमान भोगांश वाले अट्ठाइस नक्षत्रों के योगतारा को केन्द्र मानकर नक्षत्र योगतारा के आसपास असमान भोगांश वाले नक्षत्र के चरणानुसार नाम का प्रथमाक्षर निर्धारण करने की थी।
किन्तु ऐसे असमान भोगांश वाले अट्ठाइस नक्षत्रों की दर्शाई गई आकृति के आरम्भ और समाप्ति वाले भोगांश की सुची और नक्षत्र चरणों के आरम्भ और समाप्ति वाले भोगांश की सुची उपलब्ध न होनें से आधुनिक 13°20' के समान भोगांश वाले सत्ताईस नक्षत्र और 03°20' के समान भोगांश वाले नक्षत्र चरणानुसार जन्मनाम के प्रथम वर्ण निर्धारित करना पड़े।
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